दिल्ली कृषि मवेशी संरक्षण कानून के प्रावधानों में मवेशियों के वध, मांस और गौमांस के परिवहन, निर्यात और उपभोग पर प्रतिबंध लगाया गया है। इसके तहत पांच साल तक की सजा का और 10 हजार रूपए तक के जुर्माने का प्रावधान है।
पुलिस का पक्ष रखने के लिए आए वकील ने मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा, हम :दिल्ली पुलिस: एक कानून प्रवर्तन एजेंसी हैं और हम इस अदालत के समक्ष चुनौती का विषय बने किसी प्रावधान की संवैधानिकता पर काम नहीं करते। अदालत एक विधि छात्रा और एनजीओ की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दिल्ली कानून के उन प्रावधानों को दरकिनार करने की मांग की गई थी, जो गौमांस को रखने और उपभोग को अपराध की श्रेणी में रखते हैं। इसी बीच, दिल्ली सरकार ने इस याचिका पर प्रतिक्रिया देने के लिए अगली सुनवाई यानी आठ मई तक का समय मांगा है। याचिका में दावा किया गया कि कानून के प्रावधान विधायिका के अपने अधिकार क्षेत्र को लांघने का मामला है।
इसमें दावा किया गया है कि कानून के अनुसार गौमांस रखने और उसके सेवन पर रोक याचिकाकर्ताओं और ऐसे ही अन्य लोगों के मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन है क्योंकि यह उनकी निजी आजादी में दखलंदाजी करता है और ऐसा शत्रुतापूर्ण भेदभाव पैदा करता है, जिसका इस कानून के उद्देश्यों से कोई लेना-देना नहीं है।
जनहित याचिका में कहा गया, अपनी पसंद का भोजन करने का अधिकार किसी के जीवन एवं स्वतंत्रता के अधिकार का एक अहम हिस्सा है। इसमें कहा गया कि संविधान सरकार को बाध्य करता है कि वह किसी धर्म विशेष को बढ़ावा देने के लिए कानून न बनाए।
याचिकाकर्ताओं ने यह भी दावा किया कि यह कानून अपनी पसंद का भोजन चुन सकने के याचिकाकर्ताओं के अधिकारों का बड़ा अतिक्रमण है। इसमें कहा गया कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अकसर मांस आदि का सेवन करते हैं। इसमें दावा किया गया कि इस कानून को लागू किए जाने से ये समुदाय सीधे तौर पर प्रभावित हुए हैं। भाषा