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गांव में मधुमेह और टीबी का प्रकोप

देश की करीब 70 प्रतिशत आबादी गांव में निवास करती है और छोटी छोटी बीमारियों के उपचार के लिए लोगों को कर्ई कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। गांव देहात में स्वास्थ्य केंद्रों एवं डॉक्टरों की भारी कमी है, वहीं देश में मधुमेह, टीबी से प्रभावित लोगों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। ऐसे में पंचायत स्तर पर स्वास्थ्य केंद्रों का व्यवस्थित नेटवर्क बनाने, पर्याप्त कोष देने एवं डॉक्टरों की तैनाती सुनिश्चित करने की मांग की गई है।
गांव में मधुमेह और टीबी का प्रकोप

जाने माने चिंतक के एन गोविंदाचार्य ने भाषा से कहा कि देश की आजादी के 67 वर्ष गुजरने के बाद भी गांव देहात में स्वास्थ्य से जुड़ी बुनियादी सुविधाओं का विकास नहीं हो पाया है। आज भी लोगों को छोटी छोटी बीमारियों के उपचार के लिए कई कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। उन्होंने कहा कि ऐसे में देश की ग्राम पंचायतों को केंद्रीय बजट की 7 प्रतिशत राशि सीधे उपलब्ध कराई जाए ताकि ग्रामीण स्तर पर ठोस बुनियादी स्वास्थ्य व्यवस्था का विकास किया जा सके।

 

विश्व स्वास्थ्य दिवस पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की क्षेत्रिय निदेशक पूनम खेत्रापाल ने कहा कि मधुमेह आज लोगों में तेजी से बढ़ रहा है। भारत समेत दक्षिण एशिया के देशों को मधुमेह की रोकथाम के लिए सुनियोजित पहल करनी चाहिए जो बेहद घातक बनता जा रहा है। साल 2030 से यह सातवां सबसे बड़ा जानलेवा कारक बन सकता है। ऐसे में सरकारों को बच्चों के भोजन के नियम और उपभोक्ताओं के लिए खाद्य पदार्थों के सटीक लेबल की व्यवस्था करनी चाहिए।

 

एक रिपोर्ट के मुताबिक, ब्राजील में जहां अस्पतालों में प्रति हजार बेड की उपलब्धता 2.3 है, वहीं भारत में 0.7 है। श्रीलंका में यह 3.6 और चीन में 3.8 है। डॉक्टरों की उपलब्धता का वैश्विक औसत 1.36 है जबकि भारत में यह 0.39 है। भारत में करीब 70 प्रतिशत लोग गांव में रहते हैं लेकिन 75 प्रतिशत डाक्टर शहरों में अवस्थित हैं।

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