प्रशासन का तर्क है कि लोग गांव छोड़कर चले जाएं क्योंकि उन्हें दस लाख रुपये मुआवजा दे दिया गया है। दूसरी ओर गांववासियों का कहना है कि कहां और कैसा मुआवजा जबकि गांववासियों के पास तो बैंक खाते की पासबुक भी नहीं है। लोगों का कहना है कि उनके पास इस बात का सुबूत तक नहीं है कि प्रशासन ने रकम उनके खाते में जमा कर दी है। ऐसे में इन लोगों ने फैसला लिया है कि रकम मिलने तक वे अपना गांव, जमीन, मवेशी छोड़न नहीं चाहते।
इस गांव में अप्रैल 2014 के सर्वे के अनुसार 102 पुरुष, 137 महिलाएं और 43 बच्चे (0-6 साल के हैं)। गांव के लोग पास की पत्थर खदानों में 100 से 200 रुपए रोजाने की मजदूरी, निर्माण मजदूरी या फिर जंगल से सूखी लकड़ियां बटोरकर बाजार में बेचकर किसी तरह गुजारा कर रहे हैं। इस मामले की पैरवी कर रहे युसूफ बाग का कहना है कि यह गांव एनडीएमसी की पन्ना डायमंड माइंस के अंतर्गत आता है। अब चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने एनडीएमसी को पहले पन्ना टाइगर रिजर्व में खदान की दोबारा अनुमति दे दी है लेकिन जिला प्रशासन अब उमरावन गांव के लोगों को वहां से हटाना चाहता है ताकि खदान चल सके।
पन्ना टाइगर रिजर्व की अपनी मुआवजा व्यवस्था है। वे 10 लाख रुपए का एकमुश्त पैकेज देते हैं। जमीन के बदले जमीन की कोई मांग उन्हें आसानी से मंजूर नहीं होती, क्योंकि इस प्रक्रिया में कई पेंच हैं। एक तो जमीन नहीं है, दूसरे पुनर्वास का पूरा कानून इसमें लागू होता है, जो कि राज्य सरकार की आदर्श पुनर्वास नीति भी है। पुनर्वास को लेकर राजनीति भी होती है, इसलिए प्रशासन और वन विभाग हमेशा यही चाहता रहा है कि किसी तरह मामला एकमुश्त पैकेज देकर निपट जाए।