शिक्षकों ने साथ ही दावा किया कि विश्वविद्यालय का आंतरिक तंत्र पूरी तरह विकृत लग रहा है और संस्थान की स्वायत्ता का आत्मसमर्पण कर दिया गया है। सामाजिक विज्ञान के एक प्रोफेसर ने अपना नाम सार्वजनिक नहीं करने की इच्छा जताते हुए कहा, उस विश्वविद्यालय को राष्ट्र विरोधी करार देना क्या गलत नहीं है जो शैैक्षणिक एवं लोकतांत्रिक संस्कृति के प्रतीक के रूप में हमेशा खड़ा रहा है। इसे राष्ट्र विरोधियों का गढ़ बताकर इसकी छवि क्यों खराब करें?
उन्होंने कहा, हमने यहां सालों से पढ़ाया है, हमें पता है कि जेएनयू में होना कैसा होता है। हम लोगों से अपील करते हैं कि वे वर्तमान विवाद के इतर देखें और जेएनयू के साथ राष्ट्र विरोधी का विशेषण ना जोड़ें। भाषाविज्ञान विभाग के एक प्रोफेसर ने कहा, विश्वविद्यालय जांच कर रहा है, पुलिस मामले की जांच कर रही है, दिल्ली सरकार ने मजिस्टेट जांच का आदेश दिया है। क्या हम चीजें सामने आने का इंतजार नहीं कर सकते? विश्वविद्यालय को आतंकियों का गढ़ क्यों करार दें?
शिक्षक छात्र संघ के नेता कन्हैया कुमार के भी समर्थन में आ गए है। कन्हैया को आयोजन के सिलसिले में देशद्रोह के आरोपों के तहत पुलिस हिरासत में रखा गया है। शिक्षकों ने कहा कि अगर छात्रों ने कुछ गलत किया है तो यह अनुशासनहीनता का मुद्दा है ना कि देशद्रोह का।
विश्वविद्यालय के भाषाविज्ञान केंद्र की एक दूसरी प्रोफेसर आयशा किदवई ने कहा, विश्वविद्यालय बहस और विरोध का मंच है। विचारों की विचारों से प्रतिस्पर्धा होनी चाहिए और विचारों के दमन के लिए हिंसा का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। मनमाने तरीके से होने वाली गिरफ्तारियां रूकनी चाहिए और हमारे आतंरिक तंत्र को स्थिति से निपटना चाहिए।
शिक्षकों को आज शाम परिसर में होने वाले एकजुटता मार्च में हिस्सा लेने के बुलाया गया है। मार्च में कन्हैया को रिहा करने और पुलिस की गश्ती के बिना विश्वविद्यालय को उसके हाल पर छोड़ने की मांगें की जाएंगी। जेएनयू शिक्षक संघ ने कहा, जेएनयू को उसके लोकतांत्रिक प्रकृति के लिया जाना जाता है। हम परिसर में इस तरह का तनावपूर्ण माहौल नहीं चाहते जहां छात्रों को यह डर सताए कि उन्हेें आतंकी कहा जा सकता है। अगर कुछ छात्र संविधान का अपमान करते हैं तो विश्वविद्यालय उन्हें दंडित करेगा लेकिन विश्वविद्यालय के जांच किए बिना छात्रों को गंभीर आरोपों के साथ निशाना ना बनाया जाए।