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यूजीसी के नए नियमों के खिलाफ डीयू शिक्षकों का संसद तक मार्च

विश्वविद्यालय शिक्षकों पर काम को बोझ बढ़ाने औऱ अपने अकादमिक प्रदर्शन के आकलन के लिए यूजीसी के नए मानदंडों के विरोध में दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने सोमवार को बड़ी संख्या में संसद तक मार्च निकाला।
यूजीसी के नए नियमों के खिलाफ डीयू शिक्षकों का संसद तक मार्च

विश्वविद्यालय शिक्षकों की दलील है कि नए संशोधनों से 50 प्रतिशत तक नौकरियां कम होंगी और उच्च शिक्षा में छा़त्र-शिक्षक अनुपात तेजी से बढ़ जाएगा। उनके प्रदर्शन का आज सातवां दिन था। प्रदर्शनकारियों में डीयू के शिक्षक, राष्ट्रीय राजधानी में अन्य विश्वविद्यालयों के कर्मचारी संघों के सदस्य और जेएनयू के छात्रों का एक समूह शामिल था। हालांकि शिक्षकों के जत्थे को बीच में ही संसद मार्ग थाने के पास पुलिस ने रोक लिया। इसके बाद कुछ आंदोलनकारी शिक्षक मानव संसाधन विकास मंत्रालय गए और अधिकारियों को मांग का ज्ञापन सौंपा।

 

दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) के पूर्व अध्यक्ष आदित्य नारायण मिश्रा ने कहा, यूजीसी के नियमों में इस तरह के प्रतिगामी संशोधन लाकर यह सरकार देश की शैक्षणिक प्रतिभा को वैश्विक ज्ञान समाज के आखिर कतार में पहुंचा रही है। मिश्रा ने आरोप लगाया कि यूजीसी के द्वारा केंद्र की सरकार अपना एजेंडा यानी सरकारी शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त कर प्राईवेट विश्वविद्यालयों को बढ़ावा देना चाहती है। उन्होंने बताया कि नए नियमों से हजारों हजार शिक्षक बेरोजगार हो जाएंगे। पूर्व डूटा अध्यक्ष ने कहा कि सरकार लगातार उच्च शिक्षा पर प्रहार कर रही है। और इसके खिलाफ हम अपना आंदोलन जारी रखेंगे।   

 

नई राजपत्रित अधिसूचना से सहायक प्रोफेसरों का कार्यसमय 16 घंटे के सीधे शिक्षण से 18 घंटे का सीधा शिक्षण और छह घंटे का ट्यूटोरियल यानी कुल 24 घंटे का हो गया है। इसके अलावा शिक्षकों के एपीआई के संबंध में भी नए सरकारी नियम से शिक्षकों को आपत्ति है। हालांकि मंत्रालय ने पिछले हफ्ते यूजीसी के नए मानकों का बचाव करते हुए कहा था कि इससे और लचीलापन आएगा। (एजेंसी इनपुट)

 

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