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कोरोना से दंगा पीड़ितों के सामने दोहरा संकट, ईदगाह कैंप छोड़कर जाएं तो कहां जाएं

पिछले महीने तीन दिन के दंगों, लूट और हत्याओं के बाद सैकड़ों दंगापीड़ितों की तो दुनिया ही उजड़ गई थी।...
कोरोना से दंगा पीड़ितों के सामने दोहरा संकट, ईदगाह कैंप छोड़कर जाएं तो कहां जाएं

पिछले महीने तीन दिन के दंगों, लूट और हत्याओं के बाद सैकड़ों दंगापीड़ितों की तो दुनिया ही उजड़ गई थी। उसके बाद से सैकड़ों परिवार पुराना मुस्तफाबाद के ईदगाह के राहत शिविर में रहने को मजबूर हैं। अब दिल्ली सरकार का नया फरमान उनके लिए नई मुश्किल लेकर आया है। कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए सरकार ने शिविर छोड़ने के निर्देश दिए हैं। दंगों के बाद वायरस की मार से इन सैकड़ों परिवारों का जीवन और भविष्य अनिश्चितता में झूल रहा है।

बड़ी संख्या दंगा पीड़ितों को मुआवजा नहीं मिला

शिविर में रहे सैकड़ों दंगा पीड़ित परिवारों की चिंताएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। दिल्ली सरकार ने उनके लिए मुआवजे की जो घोषणाएं की थीं, तमाम लोगों को कोई मुआवजा और राहत अभी तक नहीं मिल पाई है। दंगाइयों ने तीन दिनों के दौरान सैकड़ों मकानों को आग के हवाले कर दिया और लूट लिया। दंगों में 50 से ज्यादा लोग मारे गए और सैकड़ों लोग बेघर हो गए।

आज खाली कराएंगे शिविर- आप विधायक

आम आदमी पार्टी के स्थानीय विधायक हाजी यूनुस कहते हैं कि हम पीड़ितों को वित्तीय मदद दे रहे हैं। वे किराए के मकानों में शिफ्ट हो सकते हैं। उनका दावा है कि ईदगाह कैंप आज यानी मंगलवार तक खाली करा लिया जाएगा।

अधिकांश को पांच लाख रुपये मुआवजे का इंतजार

लेकिन पीड़ितों की शिकायत है कि दिल्ली सरकार ने पांच लाख रुपये मुआवजे की घोषणा की थी ताकि वे अपने घरों की मरम्मत करा सकें लेकिन किसी को भी यह राहत अभी तक नहीं मिली है। एक पीड़ित ने अपना नाम उजागर न करने की शर्त पर बताया कि कुछ लोगों को 25,000 रुपये की शुरुआती वित्तीय मदद अवश्य मिली है। इस दंगा पीड़ित ने कहा कि एसडीएम ने बकाया राशि 4.75 लाख रुपये हमारे बैंक खाते में एक मार्च तक देने का वादा किया था। लेकिन हमें तीन हफ्ते से ज्यादा समय गुजर जाने के बाद भी यह राशि नहीं मिली।

बिना मुआवजा जीवनयापन मुश्किल  में

एक अन्य दंगा पीड़ित ने कहा कि स्थानीय प्रशासन राहत शिविर से जाने के लिए दबाव डाल रहा है। यहां सोशल डिस्टेंसिंग सुनिश्चित करना संभव नहीं है, इसलिए कोरोना वायरस का खतरा ज्यादा है। लेकिन हम जाएं तो कहां जाएं, जब जीवनयापन के लिए हमारे पास पैसा नहीं है। कई लोग आरोप लगा रहे हैं कि सरकारी अधिकारियों ने मकान किराए पर लेकर शिफ्ट होने के लिए मात्र 3,000 रुपये की मदद देने की पेशकश की है। एक महिला पीड़ित ने कहा कि इतनी कम राशि में हमें किराए का मकान कहां मिलेगा।

किराए के लिए भी पैसा नहीं

दंगा पीड़ितों का कहना है कि छोटे से फ्लैट को किराए पर लेने के लिए कम से कम 3500 से 5000 रुपये मासिक किराया लगता है। इसके अलावा मकान मालिक एक महीने का एडवांस किराया मांगता है। शिव विहार में घर जलाए जाने से शिविर में रहने को मजबूर एक अन्य पीड़ित ने कहा कि किराए के अलावा हमें खाने-पीने की वस्तुएं और दूसरी घरेलू चीजें जुटानी होंगी। हम सभी को कोरोना वायरस के खतरे का एहसास है लेकिन हमारे पास कोई विकल्प नहीं बचा है।

कोरोना के चलते पैसा ट्रांसफर करना भी मुश्किल

जिन दंगा पीड़ितों के घरों में आंशिक नुकसान हुआ है, वे अपने घरों को वापस चले गए हैं लेकिन बाकी लोगों के पास जाने के लिए कोई जगह नहीं है। यूनुस मानते हैं कि कोरोना वायरस के चलते पीड़ितों को मुआवजा देने में देरी हो रही है। उनका कहना है कि करीब 90 फीसदी लोगों को 25,000 रुपये राहत सामग्री मिल गई है। हम बाकी 4.75 लाख रुपये मुआवजा राशि जारी कराने का प्रयास कर रहे हैं। कोरोना वायरस के कारण इस काम में बाधा आ रही है क्योंकि बैंकिंग सेवाएं प्रभावित हैं।

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