गृह मंत्रालय को उस समय झटका लगा जब दिल्ली उच्च न्यायालय ने गैर सरकारी संगठन ग्रीनपीस पर विदेशी फंड पर लगी रोक को हटा दिया। अदालत ने विदेशी चंदे को प्राप्त करने पर लगाई गई रोक को असंवैधानिक, एकपक्षीय और गैरकानूनी कदम माना। इस फैसले को गैर सरकारी संगठनों ने लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी की जीत बताया। गौरतलब है कि पिछले साल ग्रीनपीस को मिलने वाले विदेशी फंड पर गृह मंत्रालय ने रोक लगा दी थी। सरकार का आरोप था कि ग्रीनपीस अपने अभियानों से विकास योजनाओं को नुकसान पहुंचा रही है और इसके लिए उसे विदेश से पैसा मिल रहा है। गृह मंत्रालय के एक अधिकारी के अनुसार खुफिया एजेंसी की एक रिपोर्ट में बताया गया कि ग्रीनपीस कार्यकर्ताओं द्वारा षडय़ंत्र रचा जा रहा है। इस सूचना के आधार पर मंत्रालय ने रोक लगाई। अधिकारी का तर्क था कि संस्था द्वारा बिजली और खनन के क्षेत्रों में की जा रही रोक-टोक से देश की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ रहा है। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब कुछ दिन पहले ग्रीनपीस की कार्यकर्ता प्रिया पिल्लई को दिल्ली के इंदिरा गांधी हवाई अड्डïे पर लंदन जाने वाले विमान से उतार दिया गया था। प्रिया वहां ब्रिटिश सांसदों से मध्य प्रदेश स्थित सिंगरौली के जंगल महान में एस्सार द्वारा मानवाधिकार उल्लंघन के बारे में बात करने वाली थी क्योंकि वहीं एस्सार कंपनी का मुख्यालय स्थित है। एस्सार कंपनी सिंगरौली, महान में कोयला खदान खोलने के लिये प्रयासरत है। जिस बात का ग्रीनपीस के कार्यकर्ता विरोध कर रहे हैं। पिल्लई को विदेश जाने से क्यों रोका गया, यह एक रहस्य ही है क्योंकि न तो गृह मंत्रालय की ओर से और न खुफिया ब्यूरो की तरफ से आधिकारिक तौर पर कोई एक भी कारण बताने के लिए तैयार था।
एक अखबार के मुताबिक जिस दिन प्रिया पिल्लई को जाने से रोका गया उसके एक दिन बाद ही पता चला कि गृह मंत्रालय के आंतरिक आदेश पर खुफिया ब्यूरो ने लुकआउट नोटिस जारी करने के लिए विशेषाधिकार का इस्तेमाल किया और उन्हें दूसरी जगह पर जाने से रोका। पिल्लई के खिलाफ कोई आपराधिक मामला नहीं था, फिर भी उनके साथ ऐसा बर्ताव किया गया। यूपीए सरकार के दौरान गृह मंत्रालय द्वारा जारी आधिकारिक आदेश में व्यक्तियों के खिलाफ लुकआउट प्रक्रिया का विवरण है और इसके तहत विशेष मामलों में ज्यादा अधिकार दिए जाने की बात है। लेकिन इस आदेश में कहा गया है कि विशेष मामलों में लुकआउट सर्कुलर (तलाशी अभियान) सभी मानदंडों के बगैर भी जारी किए जा सकते हैं और राष्ट्र के व्यापक हित में अपराधियों, संदिज्धों, आतंकवादियों, असामाजिक तत्वों के खिलाफ मामले की विस्तृत रिपोर्ट के बगैर भी इन्हें जारी किया जा सकता है। इससे जाहिर है कि कभी भी किसी व्यक्ति को विदेश जाने से बिना कारण बताए रोका जा सकता है। गृह मंत्रालय के इस आदेश को भी एक तरह से माना जा रहा है कि सरकार असहमति और अधिकार को दबाना चाहती है।
ग्रीनपीस को विदेशी फंड को लेकर लगी रोक पर अदालत ने यह भी माना कि गैर सरकारी संगठनों को सरकार से इतर अपना दृष्टिकोण रखने का हक है और इसका मतलब यह नहीं है कि गैर सरकारी संगठन राष्ट्रीय हित के खिलाफ हैं। फैसले के बाद ग्रीनपीस के कार्यकारी निदेशक समित आईच ने कहा कि यह फैसला हमारे काम और भारत के विकास में गैर सरकारी संगठनों की विश्वसनीय भूमिका को स्वीकार करता है। आईच ने कहा कि यह फैसला बहुत ही महत्वपूर्ण समय पर आया है जब सरकार का एक वर्ग हमें और अन्य कई दूसरे संगठनों को परेशान करने पर आमदा है। उन्होने कहा कि हम खुश हैं कि न्यायालय के फैसले से यह साबित हुआ है कि सरकार द्वारा लिया गया निर्णय कानून सम्मत नहीं था।