2002 में हुए गुजरात दंगों के इर्द गिर्द 'सवाल', 'सियासत' और 'साजिशों' की इतनी परतें हैं कि दो दशक के बाद भी लोग जांच और इंसाफ को लेकर मुतमईन नजर नहीं आते। इस बीच अब 24 जून को आए शीर्ष अदालत के फैसले ने हलचल और तेज कर दी है। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगों में राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और 63 अन्य को एसआइटी की ओर से दी गई क्लीनचिट पर मुहर लगा दी और मारे गए कांग्रेस नेता एहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी की याचिका खारिज कर दी। जकिया ने एक बड़ी साजिश का आरोप लगाया था। अदालत ने मामले को दोबारा शुरू करने के लगभग सभी रास्ते बंद करते हुए कहा कि जांच के दौरान एकत्रित की गई सामग्री से मुसलमानों के खिलाफ सामूहिक हिंसा भड़काने के लिए ‘‘सर्वोच्च स्तर पर आपराधिक षड्यंत्र रचने संबंधी कोई संदेह उत्पन्न नहीं होता है।’’ इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने उन अधिकारियों और कथित रूप से सामाजिक कार्यकर्ताओं को कटघरे में खड़े करने की भी पैरवी की, जिन्होंने 'प्रक्रिया का दुरुपयोग' किया। अदालत का निर्णय जहां प्रधानमंत्री मोदी के लिए बड़ी राहत के तौर पर आया है, वहीं उनके खिलाफ मामले को आगे तक ले जाने वाली सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ अब गुजरात पुलिस के आतंकवाद निरोधी दस्ता (एटीएस) के शिकंजे में हैं। तीस्ता सीतलवाड़ के संगठन ने एक दशक से भी ज्यादा समय तक चली इस कानूनी लड़ाई में याचिकाकर्ता जकिया जाफरी का साथ दिया था। अब अदालत के फैसले के बाद एक दिन से भी कम वक्त में एटीएस ने सीतलवाड़ को उनके मुंबई स्थित घर से गिरफ्तार कर लिया। बाद में उन्हें एक स्थानीय पुलिस थाने में ले जाया गया और फिर अहमदाबाद ले जाया गया। 2 जुलाई को अहमदाबाद स्थित एक अदालत ने सीतलवाड़ को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया।
तीस्ता सीतलवाड़ की गिरफ्तारी और सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले की अहमियत का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि बीते दिन देश के गृहमंत्री अमित शाह ने भी इसे लेकर बयान दिया। शीर्ष अदालत के याचिका खारिज करने के अगले दिन गृहमंत्री अमित शाह ने एक साक्षात्कार में तीस्ता सीतलवाड़ का नाम लिया था। अमित शाह ने कहा था, "सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जकिया जाफ़री किसी और के निर्देश पर काम करती थीं। सब जानते हैं कि तीस्ता सीतलवाड़ की एनजीओ ये सब कर रही थी। ये केवल मोदी जी की छवि खराब करने के लिए किया गया।"
वहीं प्रधानमंत्री मोदी को क्लीनचिट मिलने पर शाह ने न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय के निर्णय से यह फिर एक बार सिद्ध हुआ है कि नरेंद्र मोदी जी पर लगाए गये आरोप एक राजनीतिक षड्यंत्र था। मोदी जी बिना एक शब्द बोले, सभी दुखों को भगवान शंकर के विषपान की तरह 18-19 साल तक सहन करके लड़ते रहे। अब सत्य सोने की तरह चमकता हुआ बाहर आया है, यह गर्व की बात है।’’
एसआईटी की रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर
शीर्ष अदालत ने कांग्रेस के दिवंगत नेता एहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी की याचिका खारिज कर दी। उन्होंने एक बड़ी साजिश का आरोप लगाया था और एसआईटी के फैसले के खिलाफ उनकी याचिका को खारिज करने के गुजरात उच्च न्यायालय के 5 अक्टूबर, 2017 के आदेश को चुनौती दी थी। एसआईटी ने 8 फरवरी, 2012 को (अब प्रधानमंत्री) नरेंद्र मोदी और वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों सहित 63 अन्य लोगों को क्लीन चिट देते हुए एक ‘क्लोजर रिपोर्ट’ दाखिल की थी, जिसमें कहा गया था कि उनके खिलाफ ‘‘मुकदमा चलाने योग्य सबूत नहीं है।’’ शीर्ष अदालत ने कहा कि एसआईटी अपनी जांच के दौरान एकत्रित सभी सामग्रियों पर विचार करने के बाद इस राय पर पहुंची थी।
न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की पीठ ने कहा कि 2002 में संबंधित अवधि के दौरान अल्पसंख्यक समुदाय के विरुद्ध सामूहिक हिंसा करने और भड़काने को लेकर बड़े आपराधिक षड्यंत्र (उच्चतम स्तर पर) के संबंध में आठ फरवरी, 2012 को अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करने में एसआईटी के दृष्टिकोण में कोई दोष नहीं पाया जा सकता है। पीठ ने कहा कि यह मजबूत तर्क द्वारा समर्थित है, विश्लेषणात्मक सोच को उजागर करता है और आरोपों को खारिज करने के लिए सभी पहलुओं से निष्पक्ष रूप से विचार करता है। पीठ ने आगे कहा, ‘‘संबंधित अवधि के दौरान अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ राज्य भर में बड़े पैमाने पर हिंसा का कारण बनने या भड़काने के लिए बड़ा आपराधिक षड्यंत्र किए जाने के संबंध में संबंधित आरोपों के एसआईटी के किए गए विश्लेषण के बाद हमें इस तरह की राय को स्वीकार करने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि नामित आरोपियों के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता।’’
पीठ ने कहा कि उच्चतम स्तर पर एक बड़े षड्यंत्र के आरोप के संबंध में नयी सामग्री, सूचना की उपलब्धता पर आगे की जांच का सवाल उठता, जो इस मामले में सामने नहीं आई।
सीतलवाड़ की गिरफ्तारी, आरोपों की झड़ी
गुजरात पुलिस ने निर्दोष व्यक्तियों को झूठा फंसाने की साजिश रचने के आरोप में पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) आर. बी. श्रीकुमार और सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को गिरफ्तार किया। अहमदाबाद अपराध शाखा के एक अधिकारी की शिकायत के आधार पर दर्ज प्राथमिकी में पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट का भी नाम है, जो पहले से ही एक अन्य मामले में सलाखों के पीछे हैं।
अहमदाबाद अपराध शाखा के निरीक्षक डी. बी. बराड की ओर से दायर की गई शिकायत के आधार पर प्राथमिकी दर्ज की गई। जिसने सीतलवाड़, भट्ट और श्रीकुमार पर आरोप लगाया कि उन्होंने कई लोगों को एक अपराध में दोषी ठहराने के लिए झूठे सबूत गढ़कर कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने की साजिश रची है। शिकायत के मुताबिक, उन्होंने ‘‘कई लोगों को ठेस पहुंचाने के इरादे से निर्दोष लोगों के खिलाफ झूठी और दुर्भावनापूर्ण आपराधिक कार्रवाई शुरू की, और झूठे रिकॉर्ड तैयार किए ताकि कई लोगों को नुकसान और ठेस पहुंचाई जा सके।’’
प्राथमिकी भारतीय दंड संहिता की धाराओं 468, 471, 194, 211,218, 120 (बी) के तहत दर्ज की गई है।
सीतलवाड़ पर गवाहों को प्रभावित करने और उन्हें पहले से टाइप किए गए हलफनामों पर हस्ताक्षर करने का भी आरोप लगाया गया था। शिकायत में कहा गया है कि जकिया जाफरी को भी सीतलवाड़ ने बरगलाया था, जैसा कि 22 अगस्त 2003 को नानावती आयोग के समक्ष उनके बयान से स्पष्ट है।
सियासत गरम
हालिया घटनाक्रम को लेकर सियासी पार्टियां भी एक दूसरे के खिलाफ बोलने से नहीं चूक रही हैं। सीतलवाड़ की गिरफ्तारी के खिलाफ आयोजित एक विरोध प्रदर्शन में शामिल होने पर कांग्रेस को आड़े हाथों लेते हुए भाजपा प्रवक्ता गौरव भाटिया ने आरोप लगाया कि ऐसे मामले में आरोपियों का समर्थन करना और सुविधानुसार न्यायिक कार्रवाई का विरोध करना न्यायपालिका के प्रति विपक्षी पार्टी के विश्वास पर सवालिया निशान खड़े करता है। वहीं भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली तत्कलीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार, विशेष रूप से उसके शिक्षा मंत्रालय ने सीतलवाड़ द्वारा संचालित एक एनजीओ को 1.4 करोड़ रुपए दिए थे। पात्रा ने दावा किया कि इस धन का इस्तेमाल मोदी के खिलाफ अभियान चलाने और भारत को बदनाम करने के लिए किया गया। पात्रा ने आरोप लगाया कि कांग्रेस और उसकी अध्यक्ष सोनिया गांधी 2002 के गुजरात दंगों को लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ सीतलवाड़ के अभियान के पीछे प्रेरक शक्ति थीं।
हालांकि कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने इन आरोपों की निंदा करते हुए इसे सीधे तौर पर सर्वोच्च अदालत के फैसले की अवमानना करार दिया। उन्होंने कहा, ‘‘भाजपा प्रवक्ताओं का यह आरोप कि तीस्ता सीतलवाड़ ने कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी के इशारे पर काम किया, पूरी तरह से फर्जी और बेबुनियाद है।’’
वहीं कांग्रेस ने जकिया जाफरी की याचिका को लेकर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निराशाजनक करार देते हुए सवाल किया कि क्या 2002 के सांप्रदायिक दंगों के समय नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री नहीं थे और क्या हिंसा को लेकर राज्य सरकार और मुख्यमंत्री कभी जवाबदेह ठहराए जाएंगे। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने एक बयान में कहा, ‘जकिया जाफरी के मामले में उच्चतम न्यायालय का फैसला बहुत निराशाजनक है।’ उन्होंने सवाल किया, ‘क्या व्यापक सांप्रदायिक दंगों के मामलों में मुख्यमंत्री और राज्य सरकार की संवैधानिक और नैतिक जिम्मेदारी होती है? ऐसे मामलों में क्या सिर्फ कलेक्टर और पुलिस उपाधीक्षक की जिम्मेदारी होती है, राजनीतिक पदों पर आसीन लोगों की नहीं? अगर राज्य हिंसा और दंगों की चपेट में जाता है तो क्या मुख्यमंत्री, कैबिनेट और राज्य सरकार कभी जवाबदेही नहीं होंगे?’
कई मानवाधिकार संगठनों ने भी तीस्ता सीतलवाड़ की गिरफ्तारी के लिए गुजरात पुलिस की आलोचना की है।अधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने कहा, ‘प्रख्यात मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को भारतीय अधिकारियों द्वारा हिरासत में लेना उन लोगों के खिलाफ सीधा प्रतिशोध है, जो मानवाधिकारों के लिए सवाल उठाने की हिम्मत करते हैं। यह सिविल सोसायटी को एक डरावना संदेश देता है और देश में असहमति के लिए स्थान को और कम करता है।’
सीतलवाड़ के खिलाफ कार्रवाई को लेकर संयुक्त राष्ट्र में मानवाधिकार के लिये उच्चायुक्त कार्यालय (ओएचसीएचआर) ने भी चिंता व्यक्त करते हुए उन्हें तत्काल रिहा करने की मांग की है। हालांकि विदेश मंत्रालय ने ओएचसीएचआर की टिप्पणी को ‘पूरी तरह से अवांछित’ करार देते हुए उसे खारिज कर दिया और कहा कि यह देश की स्वतंत्र न्यायिक व्यवस्था में हस्तक्षेप करती है।
कुलमिलाकर, सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले को लंबी अदालती लड़ाई का पटाक्षेप माना जाएगा या नहीं यह जरूर भविष्य के गर्भ में है लेकिन सीतलवाड़ की गिरफ्तारी ने विवादों के नए सिरे जरूर खोल दिए हैं।
घटनाक्रम
27 फरवरी 2002 : अयोध्या से लौट रही साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन में यात्रा कर रहे 59 कार सेवकों पर कथित तौर पर हमला किया गया और गोधरा रेलवे स्टेशन पर ट्रेन के डिब्बों को आग के हवाले कर दिया गया
28 फरवरी 2002 : भीड़ ने मेघानीनगर में गुलबर्ग सोसाइटी में रह रहे लोगों पर हमला किया, जिसमें अपीलकर्ता जकिया के पति अहसान जाफरी समेत 69 लोगों की मौत हो गई
6 मार्च 2002 : गुजरात सरकार ने गोधरा कांड और उसके बाद हुए दंगों की जांच के लिए एक आयोग गठित की
9 अक्टूबर 2003 : राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने निष्पक्ष जांच की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक रिट याचिका दाखिल की, साथ ही शीर्ष अदालत ने वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे को न्याय मित्र नियुक्त किया
8 जून 2006 : जकिया जाफरी ने 2002 के दंगों के पीछे बड़ी साजिश होने का आरोप लगाते हुए नरेंद्र मोदी और अन्य के खिलाफ शिकायत दाखिल की
26 मार्च 2008 : सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई के पूर्व निदेशक आरके राघवन के नेतृत्व में एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया
1 मई 2009 : सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई पर से रोक हटाई और विशेष अदालतों में मामलों के अभियोजन और एसआईटी को मामले पर हुई कार्रवाई के संबंध में एक रिपोर्ट देने का निर्देश दिया
6 मई 2010 : सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि निचली अदालत अगले आदेश तक अंतिम फैसला न सुनाए
11 सितंबर 2011 : सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी के प्रमुख को निर्देश दिया कि वह मामले में एकत्रित की गई पूरी सामग्री के साथ एक अंतिम रिपोर्ट अदालत को भेजे
8 फरवरी 2012 : एसआईटी ने मोदी और 63 अन्य को क्लीन चिट देते हुए अंतिम रिपोर्ट दाखिल की और कहा कि उनके विरुद्ध कोई मुकदमा चलाने योग्य साक्ष्य नहीं मिले हैं
15 अप्रैल 2013 : जकिया जाफरी ने गुलबर्ग सोसाइटी दंगा मामले में नरेंद्र मोदी और अन्य को क्लीन चिट देने वाली एसआईटी रिपोर्ट को खारिज करने की मांग करते हुए एक स्थानीय अदालत में याचिका दायर की
26 दिसंबर 2013 : मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ने जकिया की याचिका खारिज करते हुए एसआईटी की अंतिम रिपोर्ट स्वीकार की
5 अक्टूबर 2017 : इस फैसले के विरुद्ध हाईकोर्ट ने भी जकिया की याचिका को खारिज कर दिया
12 सितंबर 2018 : जकिया ने एसआईटी के फैसले के खिलाफ उनकी याचिका को खारिज करने के गुजरात हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया
26 अक्टूबर 2021 : सुप्रीम कोर्ट ने नियमित आधार पर जकिया की याचिका पर सुनवाई शुरू की
9 दिसंबर 2021 : जकिया की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा
24 जून 2022 : सुप्रीम कोर्ट ने जकिया की याचिका खारिज की और मोदी तथा अन्य को एसआईटी के क्लीन चिट देने के फैसले को बरकरार रखा