दिल्ली हाई कोर्ट की न्यायमूर्ति गीता मित्तल और न्यायमूर्ति अनु मल्होत्रा की पीठ ने इसे दर्दनाक बताते हुए कहा कि नरसंहार में 42 लोगों की जान जाने के बावजूद राज्य सरकार के पास इस बारे में सबूत नहीं है कि उस दिन कौन से हथियार और गोलियां दी गई थीं। अदालत ने कहा, हमें बताया गया कि कानूनी प्रावधानों के बावजूद जिला स्तरीय विधिक सेवा प्राधिकरण दूर के रिश्तेदारों को मदद देने की कोशिश कर रहा है जो मुआवजे के हकदार नहीं हैं। पीठ ने कहा, हमें यह भी बताया गया कि पीड़ितों के आश्रितों के बीच मुआवजे का वितरण भी उचित तरीके से नहीं हुआ। यह दिलासा नहीं दे सकता। अदालत ने साथ ही यह भी कहा कि मुआवजा केवल पीड़ितों और उनके आश्रितों में बांटे जाने के लिए है।
हालांकि, अदालत ने सबूत के पहलुओं के संबंध में कोई आदेश पारित नहीं किया परंतु उसने मुआवजा बांटने वाले जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव को अगली सुनवाई तक मुआवजे की रकम का वितरण रोकने का आदेश दिया है। मामले की अगली सुनवाई 12 जनवरी 2017 को तय की गई है। अदालत ने मुआवजे के लिए पहचान किए गए व्यक्तियों की सूची भी उसके समक्ष पेश करने का निर्देश प्राधिकार को दिया है। इस मामले की संक्षिप्त सुनवाई के दौरान पीड़ितों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रेबेक्का जॉन ने अदालत से कहा कि मुआवजे की राशि पीड़ितों के आश्रितों और इस नरसंहार में जीवित बचे लोगों को नहीं बल्कि दूर के रिश्तेदारों में वितरित की जा रही है।