कानून मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 1,079 न्यायाधीशों के स्वीकृत पदों के विपरीत 24 उच्च न्यायालय महज 621 न्यायाधीशों के भरोसे काम कर रहे हैं। हाईकोर्टों में 458 न्यायाधीशों की कमी है। एक जून के इन आंकड़ों से पहले उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम ने संशोधित मेमोरेंडम ऑफ प्रोसिजर (एमओपी) के मसौदे को सरकार को वापस भेज दिया था। उच्चतम न्यायालय ने इसमें राष्ट्रहित के आधार पर कॉलेजियम की सिफारिश खारिज करने के सरकार के अधिकार पर सवाल खड़ा करते हुए इसे वापस भेजा था। इस कॉलेजियम ने 30 मई को संशोधित एमओपी सरकार को लौटा दिया था और इसके कुछ उपबंधों में बदलाव का सुझाव दिया था। इस एमओपी में उच्चतम न्यायालय और 24 उच्च न्यायालयों में न्यायधीशों की नियुक्ति पर मार्गदर्शन दिया गया है।
मौजूदा व्यवस्था में उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश और चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों वाले इस कॉलेजियम की सिफारिश स्वीकार करने के लिए सरकार बाध्य है, अगर वह अपनी सिफारिश को दोहराती है। संशोधित एमओपी में यह भी प्रावधान है कि अगर एक बार केंद्र ने किसी नाम की सिफारिश को खारिज कर दिया तो वह इसपर पुनर्विचार करने को मजबूर नहीं होगी, भले ही कॉलेजियम ने इसे दोहराया हो। सूत्रों ने बताया कि एमओपी पर कॉलेजियम की टिप्पणियों का जवाब देने के लिए सरकार को कम से कम तीन सप्ताह का समय लगेगा। आंकड़ों के मुताबिक, इलाहाबाद उच्च न्यायालय में सबसे अधिक 81 पद रिक्त हैं, जबकि इस न्यायालय में 160 न्यायधीशों की नियुक्ति की मंजूरी है। वहीं पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय और मद्रास उच्च न्यायालय में 37 पद रिक्त हैं। वहीं देश के सात उच्च न्यायालय, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, इलाहाबाद, पंजाब व हरियाणा, केरल, मध्य प्रदेश, पटना व राजस्थान कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश के साथ काम कर रहे हैं।