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हिन्दी दिवस: भारत की सीमा से बाहर कितनी सफल या असफल है हिन्दी?

विदेशों में चालीस से अधिक देशों के 600 से अधिक विश्वविद्यालयों और स्कूलों में हिन्दी पढ़ाई जा रही है।
हिन्दी दिवस: भारत की सीमा से बाहर कितनी सफल या असफल है हिन्दी?

आज विश्व के तमाम देशों में हिन्दी भाषी लोग रहते हैं। 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मात्र औपचारिकता ना बने इसके लिए जरूरी है कि यह भी जाना जाए कि वाकई में देश से बाहर भी 'राजभाषा' हिन्दी का प्रचार-प्रसार हो रहा है या नहीं? वह विदेशों में कितनी सफल या असफल है?

विदेशों में चालीस से अधिक देशों के 600 से अधिक विश्वविद्यालयों और स्कूलों में हिन्दी पढ़ाई जा रही है। भारत से बाहर जिन देशों में हिन्दी का बोलने, लिखने-पढने तथा अध्ययन और अध्यापक की दृष्टि से प्रयोग होता है, उनमें से कुछ देशों में हिन्दी की स्थिति पर बात करते हैं।

मॉरिशस

यहां भारतीय मूल के लोगों की जनसंख्या कुल आबादी की आधे से अधिक है। मॉरिशस की राजभाषा अंग्रेजी और फ्रेंच की लोकाप्रेम है। फ्रेंच के बाद हिन्दी ही एक ऐसी महत्वपूर्ण एवं सशक्त भाषा है जिसमें पत्र-पत्रिकाओं तथा साहित्य का प्रकाशन होता है। मॉरिशस में भारतीय प्रवासियों का विधिवत आगमन चीनी उद्योग के बचाव तथा उसके विकास हेतु 1834 में शुरू हुआ था। यूरोप में चीनी की बढती मांग को ध्यान में रखकर तत्कालीन प्रशासकों ने भारतीयों को सशर्त यहां लाकर स्थायी रूप से बसने का प्रावधान किया। मॉरिशस में भारतीय प्रवासी वर्ष 1834 से बंधुआ मजूदरों के रूप में आने लगे थे। ये लोग अधिकांशत: भारत के बिहार प्रदेश के छपरा, आरा और उत्तर प्रदेश के गाजीपुर, बलिया, गोंडा आदि जिलों के थे। भारतीय श्रमिकों ने विकट परिस्थितियों से गुजरते हुए भी अपनी संस्कृति एवं भाषा का परित्याग नहीं किया। अपने प्रवासकाल में महात्मा गांधी जब 1901 में मॉरिशस आए तो उन्होंने भारतीयों को शिक्षा तथा राजनीतिक क्षेत्रों में सक्रिय भाग लेने के लिए प्रेरित किया। हिन्दी प्रचार कार्य में हिंदुस्तानी पत्र का योगदान महत्वपूर्ण है।

धार्मिक तथा सामाजिक संस्थाओं के उदय होने से यहां हिन्दी को व्यापक बल मिला। वर्ष 1935 में भारतीय आगमन शताब्दी समारोह मनाया गया। उस समय यहां से हिन्दी के कई समाचारपत्र प्रकाशित होते थे, जिनमें आर्यवीर, जागृति आदि उल्लेखनीय है। वर्ष 1941 में हिन्दी प्रचारिणी सभा ने हिन्दी साहित्य सम्मेलन तथा हिन्दी पुस्तक प्रदर्शनी का आयोजन किया। 1943 में हिन्दू महायज्ञ का सफल आयोजन किया गया। 1948 में जनता के प्रकाशन के माध्यम से दर्जनों नवोदित हिन्दी लेखक साहित्य सृजन क्षेत्र में आए।

वर्ष 1950 में यहां हिन्दी अध्यापकों का प्रशिक्षण प्रारंभ हुआ और 1954 से भारतीय भाषाओं की विधिवत पढाई शुरू हुई। मॉरिशस सरकार ने स्कूलों में छठी कक्षा तक हिन्दी पढाने की व्यवस्था की। वर्ष 1961 में मॉरिशस हिन्दी लेखक संघ की स्थापना हुई। यह संघ प्रतिवर्ष साहित्यिक प्रतियोगिताओं, कवि सम्मेलनों, साहित्यकारों की जयंतियां आदि का आयोजन करता है। मॉरिशस में हिन्दी भाषा का स्तर ऊंचा उठाने में हिन्दी प्रचारिणी सभा का योगदान अतुलनीय है। यह संस्था हिन्दी साहित्य सम्मेलन (प्रयाग) की परीक्षाओं का प्रमुख केन्द्र है। औपनिवेशिक शोषण और संकट के समय 1914 में हिन्दुस्तानी, 1920 में टाइम्स और 1924 में मॉरिशस मित्र दैनिक पत्र थे। आज मॉरिशस में वसंत, रिमझिम, पंकज, आक्रोश, इन्द्रधनुष, जनवाणी एवं आर्योदय हिन्दी में प्रकाशित होते हैं। वर्ष 2001 में विश्व हिन्दी सचिवालय की स्थापना भी मॉरिशस में हो चुकी है।

फिजी

फिजी दक्षिण प्रशांत महासागर में स्थित 322 द्वीपों का समूह है। यहाँ के मूल निवासी काईबीती है। देश की आबादी लगभग 8 लाख है। इसमें 50 प्रतिशत काईबीती, 44 प्रतिशत भारतीय तथा 6 प्रतिशत अन्य समुदाय के हैं। 5 मई 1871 में प्रथम जहाज लिओनीदास ने 471 भारतीयों को लेकर फिजी में प्रवेश किया था। गिरमिट प्रथा के अंतर्गत आए प्रवासी भारतीयों ने फिजी देश को जहां अपना खून-पसीना बहाकर आबाद किया वहीं हिन्दी भाषा की ज्योति भी प्रज्जवलित की जो आज भी फिजी में अपना प्रकाश फैला रही है।

फिजी की संस्कृति एक सामासिक संस्कृति है, जिसमें काईबीती, भारतीय, आस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैंड के निवासी है। इनकी भाषा काईबीती (फीजियन) हिन्दी तथा अंग्रेजी है। फिजी का भारतीय समुदाय हिन्दी में कहानी, कविताएं लिखता है। हिन्दी प्रेमी लेखकों ने हिन्दी समिति तथा हिन्दी केन्द्र बनाए हैं जो वहां के प्रतिष्ठित लेखकों के निर्देशन में गोष्ठियां, सभा तथा प्रतियोगिताएं आयोजित करते हैं। इनमें हिन्दी कार्यक्रम होते हैं कवि और लेखक अपनी रचनाएं सुनाते हैं।

फिजी में औपचारिक एवं मानक हिन्दी का प्रयोग पाठशाला के अलावा शादी, पूजन, सभा आदि के अवसरों पर होता है। शिक्षा विभाग द्वारा संचालित सभी बाह्य परीक्षाओं में हिन्दी एक विषय के रूप में पढाई जाती है। फिजी के संविधान में हिन्दी भाषा को मान्यता प्राप्त है। कोई भी व्यक्ति सरकारी कामकाज,अदालत तथा संसद में भी हिन्दी भाषा का प्रयोग कर सकता है। हिन्दी के प्रचार-प्रसार में पत्र-पत्रिकाओं तथा रेडियो कारगर माध्यम हैं। हिन्दी के प्रचार-प्रसार में फिजी हिन्दी साहित्य समिति वर्ष 1957 से बहुमूल्य योगदान दे रही है। इस संस्था का मुख्य उद्देश्य है हिन्दी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति को बढावा देना। फिजी में हिन्दी प्रगति के पथ पर है तथा इसका भविष्य उज्ज्वल है।

नेपाल

भौगोलिक और राजनीतिक दृष्टि से भारत और नेपाल संप्रभु राष्ट्र है, दोनों देशों के बीच पौराणिक काल से संबंध चला आ रहा है, खुली सीमाएं, तीज-ज्यौहार, धार्मिक पर्व-समारोह तथा इन्हें मानाने की शैली और पध्दति की समानता के अतिरिक्त नेपाल में हिन्दी-प्रेम हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए काफी है। नेपाली भाषा हिन्दी भाषी पाठकों लिए सुबोध है। यदि इसमें कोई अंतर है तो लिप्यांतरण का है।

प्रचीन काल में नेपाली में संस्कृत की प्रधानता थी। हिन्दी और नेपाली दोनों भाषाओं में संस्कृत के तत्सम और तद्भव शब्दों की प्रचुरता और इनके उदार प्रयोग के अतिरिक्त नेपाली भाषा में अरबी, फारसी, उर्दू, अंग्रेजी एवं कई अन्य विदेशी शब्दों का हिन्दी के समान ही प्रयोग हिन्दी और नेपाली भाषी जनता को एक दूसरे की भाषा समझने में सहायक रहा है। प्रारंभिक दिनों में नेपाल के तराई क्षेत्रों में स्कूलों में तो शिक्षा का माध्यम हिन्दी बना। काठमांडू से हिन्दी में पत्र-पत्रिका का प्रकाशन हाता है। प्रख्यात नेपाली लेखक, कहानीकार एवं उपन्यासकार डा. भवानी भिक्षु ने तो अपने लेखन कार्य का श्रीगणेश हिन्दी से ही किया। गिरीश वल्लभ जोशी, रूद्रराज पांडे, मोहन बहादुर मल्ल, हृदयचंद्र सिंह प्रधान आदि की एक न एक कृति हिन्दी में ही है।

श्रीलंका

श्रीलंका में भारतीय रस्म-रिवाज, धार्मिक कहानियां जैसे जातक कथा का भंडार आज भी सुरक्षित है। श्रीलंका की संस्कृति वही है जो भारत की है। वहां हिन्दी का प्रचार अत्यंत सुचारू एवं सुव्यवस्थित ढंग से होता रहता है। फिल्म प्रदर्शन, भाषण विचार गोष्ठी आदि का आयोजन होता रहता है। भारत से आई पत्र-पत्रिकाओं जैसे बाल भारती, चंदा मामा, सरिता आदि श्रीलंका में बड़े चाव से पढी ज़ाती हैं। श्रीलंका रेडियो पर भारतीय शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम प्रसारित होते हैं। वहां विश्वविद्यालय में हिन्दी पढाI जा रही है।

संयुक्त अरब अमीरात

संयुक्त अरब अमीरात देश की पहचान सिटी ऑफ गोल्ड दुबई से है। यूएई में एफ. एम. रेडियो के कम से कम तीन ऐसे चैनल हैं, जहां आप चौबीसों घंटे नए अथवा पुराने हिन्दी फिल्मों के गीत सुन सकते हैं। दुबई में पिछले अनेक वर्षों से इंडो-पाक मुशायरे का आयोजन होता रहा है, जिसमें हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के चुनिंदा कवि और शायर भाग लेते रहे हैं। हिन्दी के क्षेत्र में खाड़ी देशों की एक बड़ी उपलब्धि है, दो हिन्दी (नेट) पत्रिकाएं जो विश्व में प्रतिमाह 6,000 से अधिक लोगों द्वारा 120 देशों में पढी ज़ाती हैं। अभिव्यक्ति व अनुभूति www.abhivykti-hindi.org तथा www.anubhuti-hindi.org के पते पर विश्वजाल (इंटरनेट) पर मुफ्त उपलब्ध हैं। इन पत्रिकाओं की संरचना सही अर्थों में अंतर्राष्ट्रीय है क्योंकि इनका प्रकाशन और संपादन संयुक्त अरब अमीरात से, टंकण कुवैत से, साहित्य संयोजन इलाहाबाद से और योजना व प्रबंधन कनाडा से होता है।

ब्रिटेनवासियों ने हिन्दी के प्रति बहुत पहले से रुचि लेनी आरंभ कर दी थी। गिलक्राइस्ट, फोवर्स-प्लेट्स, मोनियर विलियम्स, केलाग होर्ली, शोलबर्ग ग्राहमवेली तथा ग्रियर्सन जैसे विद्वानों ने हिन्दीकोष व्याकरण और भाषिक विवेचन के ग्रंथ लिखे हैं। लंदन, कैंब्रिज तथा यार्क विश्वविद्यालयों में हिन्दी पठन-पाठन की व्यवस्था है। यहां से प्रवासिनी, अमरदीप तथा भारत भवन जैसी पत्रिकाओं का प्रकाशन होता है। बीबीसी से हिन्दी कार्यक्रम प्रसारित होते हैं।

संयुक्त राज्य अमेरिका 

संयुक्त राज्य अमेरिका में येल विश्वविद्यालय में 1815 से ही हिन्दी की व्यवस्था है। वहां आज 30 से अधिक विश्वविद्यालयों तथा अनेक स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा हिन्दी में पाठ्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। 1875 में कैलाग ने हिन्दी भाषा का व्याकरण तैयार किया था। अमेरीका से हिन्दी जगत प्रकाशित होती है।

रूस

रूस में हिन्दी पुस्तकों का जितना अनुवाद हुआ है, उतना शायद ही विश्व में किसी भाषा का हुआ हो। वारान्निकोव ने तुलसी के रामचरितमानस का अनुवाद किया था। त्रिनीडाड एवं टोबेगो में भारतीय मूल की आबादी 45 प्रतिशत से अधिक है। युनिवर्सिटी ऑफ वेस्टइंडीज में हिन्दी पीठ स्थापित की गई है। यहां से हिन्दी निधि स्वर पत्रिका का प्रकाशन होता है। गुयाना में 51 प्रतिशत से अधिक लोग भारतीय मूल के हैं। यहां विश्वविद्यालयों में बी.ए. स्तर पर हिन्दी के अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था की गई है। पाकिस्तान की राजभाषा उर्दू है, जो हिन्दी का ही एक रूप है। मात्र लिपि में ही अंतर दिखाई देता है। मालदीव की भाषा दीवेही भारोपीय परिवार की भाषा है। यह हिन्दी से मिलती-जुलती भाषा है। फ्रांस, इटली, स्वीडन, आस्ट्रिया, नार्वे, डेनमार्क तथा स्विटजरलैंड, जर्मन, रोमानिया, बल्गारिया और हंगरी के विश्वविद्यालयों में हिन्दी के पठन-पाठन की व्यवस्था है।

चीन

चीन में हिन्दी पढ़ाने की शुरुआत सन् 1942 में खुनमिड़ के "ऑरियंटल स्कूल आफ लैंग्वेजेज एण्ड लिटरेचर" में दो वर्षीय पाठयक्रम से हुई थी। पेइचिंग विश्वविद्यालय में सन् 65 तक विधिवत हिन्दी का पठन-पाठन चला। सन् 1966 में चीन में महाक्रान्ति के दौरान कॉलेजों में ताले डाले गए। 1971 में पेइचिंग विश्वविद्यालय में फिर से हिन्दी का पठन-पाठन शुरू हुआ। आजकल वहां बी.ए., एम.ए. तथा पीएच.डी. की उपाधि के लिए हिन्दी का पठन-पाठन जारी है। इस विश्वविद्यालय में संसार के कई देशों के विद्यार्थी हिन्दी पढ़ने आते हैं। "रामचरितमानस", प्रेमचन्द और वृन्दावनलाल वर्मा सहित अनेक लेखकों के साहित्य का चीनी अनुवाद यहां काफी लोकप्रिय हुआ है।

नार्वे

नार्वे के ओसलो विश्वविद्यालय में हिन्दी का पठन-पाठन होता है। सन् 1993 में देश में हुई बजट कटौती का भार हिन्दी पर भी पड़ा जिसके परिणामस्वरूप वहां के विद्यालयों में पढ़ाई जाने वाली हिन्दी की शिक्षा बन्द हो गई। अब हिन्दी यहां मात्र सहयोगी भाषा के रूप में पढ़ाई जाती है।

फिनलैंड

फिनलैंड में पिछले 30 वर्षों से हेलासिंकी विश्वविद्यालय में एशियाई अफ्रीकी संस्थान में संस्कृत के साथ-साथ हिन्दी भाषा की पढ़ाई होती है। यहां बी.ए., एम.ए. और पीएच.डी. की उपाधियों के लिए हिन्दी का पठन-पाठन होता है। प्रेमचन्द के गोदान का फिन्निश भाषा में अनुवाद हुआ है।

हंगरी

हंगरी के बुड़ापैश्त के "ओल्पीश लोरान्द" विश्वविद्यालय में हिन्दी व संस्कृत पढ़ाई जाती है। यहां हिन्दी पढ़ने के लिए उन्हीं छात्रों को प्रवेश दिया जाता है, जो पहले वर्ष में अधिक अंक प्राप्त करते हैं।

बेल्जियम

बेल्जियम के गेंट विश्वविद्यालय में विगत 119 वर्षों से संस्कृत का विधिवत अध्ययन-अध्यापन हो रहा है। जो केन्द्र संस्कृत के लिए आरम्भ किया गया था, वही बाद में भारत विद्या-विभाग के रूप में बदल दिया गया। सन् 1988 में गेंट विश्वविद्यालय के भारत विद्या विभाग में हिन्दी को भी स्थान दिया गया। गेंट में ओरियंथाल नामक एक भाषा शिक्षण संस्थान भी है, जहां अरबी, तुर्की, फारसी के साथ हिन्दी का भी कामचलाऊ ज्ञान कराया जाता है।

जापान

जापान में टोक्यो विदेशी भाषा विश्वविद्यालय तथा ओसाका विदेशी भाषा विश्वविद्यालय में भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् हिन्दी का पठन-पाठन शुरू हुआ। पश्चिमी जापान के एक गैरसरकारी विश्वविद्यालय "ओत्तेमेन गाकूइन" में भी हिन्दी पढ़ाई जाती है। रेडियो जापान से हिन्दी में भी समाचार प्रसारण की व्यवस्था है। यहां सन् 1980 में "ज्वालामुखी" नाम की एक हिन्दी प्रत्रिका का प्रकाशन शुरू हुआ था। इसमें लिखने वाले सभी जापानी लेखक थे। वर्तमान में इसका प्रकाशन बन्द पड़ा है। प्रेमचन्द, यशपाल, जैनेन्द्र कुमार, मोहन राकेश तथा हजारीप्रसाद द्विवेदी सरीखे साहित्यकारों के साहित्य का जापानी भाषा में पर्याप्त अनुवाद हुआ है।

इटली

इटली के रोम विश्वविद्यालय के "क्लासिकल स्टडीज" विभाग में उच्च शिक्षा के रूप में संस्कृत और हिन्दी के अध्ययन की सुविधा है।

इसके अलावा वेनिस में एक महिला प्रो. मारियोला भाषा और साहित्य पढ़ाती हैं। लगभग 100 विद्यार्थी प्रतिवर्ष हिन्दी साहित्य की शिक्षा पाते हैं। इटली के कुल 20 बड़े विश्वविद्यालयों में से 5में हिन्दी सिखाने की व्यवस्था है।

इन देशों के अलावा दक्षिण अफ्रीका, सूरीनाम तथा अन्य करेबियन देशों में हिन्दी साहित्य प्रेमियों की संख्या बढ़ रही है। इन देशों में हिन्दी का पठन-पाठन व प्रसारण हो रहा है। इसके अतिरिक्त जिन देशों में हिन्दी का पठन-पाठन नहीं हो रहा है वहां भी बोल-चाल या बाजार की भाषा के रूप में हिन्दी अपनी जड़ें मजबूत करती जा रही है। आंकड़ों के अनुसार विश्व के 180 देशों में हिन्दी भाषा का प्रयोग हो रहा है।

इस प्रकार हिन्दी आज भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के विराट फलक पर अपने अस्तित्व को आकार दे रही है। आज हिन्दी विश्व भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त करने की ओर अग्रसर है। अब तक भारत और भारत के बाहर सात विश्व हिन्दी सम्मेलन आयोजित हो चुके हैं। पिछले सात सम्मेलन क्रमश: नागपुर (1975), मॉरीशस (1976), नई दिल्ली (1983), मॉरीशस (1993), त्रिनिडाड एंड टोबेगो (1996), लंदन (1999), सूरीनाम (2003) में हुए थे। अगला विश्व हिन्दी सम्मेलन 2007 में न्यूयार्क में होगा। इसके अतिरिक्त विदेश मंत्रालय क्षेत्रीय हिन्दी सम्मेलन का भी आयोजन करता रहा है। अभी तक ये सम्मेलन ऑस्ट्रेलिया और अबूधाबी में फरवरी, 2006 तथा तोक्यो में जुलाई 2006 में किए गए थे। 

(स्रोत - विकीबुक्स)

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