पिछले दिनों इंटरनेट इन खबरों से भर गया कि चंडीगढ़ के एक सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले 12वीं के छात्र हर्षित शर्मा को गूगल में नौकरी मिल गई है। दावा था कि उसकी सैलरी 12 लाख रूपए महीने होगी। लेकिन बाद में गूगल ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए बताया कि हमारे पास इस नाम के लड़के का कोई रिकॉर्ड ही नहीं है।
हर्षित शर्मा महोदय बढ़ा-चढ़ाकर अपनी खुशी का इजहार भी कर रहे थे और अपनी इस ‘सफलता‘ का श्रेय भी दूसरों को बांट रहे थे।
हर्षित शर्मा पहला ऐसा लड़का नहीं है जिसके दावों की पोल खुली हो। गूगल और नासा जैसी बड़ी जगहों से अपना नाम जोड़ने के चक्कर में कई दूसरे लड़के-लड़कियों ने झूठे दावे किए। इनमें से ज्यादातर ने अमेरिका की प्रतिष्ठित स्पेस एजेंसी नासा का नाम लिया। देखिए, उनमें से कुछ नमूने-
बराक ओबामा के जाली दस्तखत करने वाला अंसार शेख
मध्य प्रदेश में एक 20 साल का लड़का अंसार शेख तो इतना 'काबिल' निकला कि उसके पास साक्षात नासा का आई-कार्ड ही आ गया था। यही नहीं, इस लड़के ने अपनी 'काबिलियत' का पूरा परिचय देते हुए तत्कालीन अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा का जाली दस्तखत भी बना लिया था। आई-कार्ड पर नासा के हेड का दस्तखत भी था।
2016 की एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, इस लड़के का दावा था कि उसे नासा के स्पेस और फूड प्रोग्राम में 1.85 करोड़ के सालाना पैकेज पर नौकरी मिली है। इतने तक यह लड़का रुक जाता तो भी ठीक था लेकिन इसने कमलापुर में अपने सम्मान में एक समारोह भी रखा और प्रशासन के लोगों को खुद बुलाने भी पहुंचा। जब वह सीनियर पुलिस अफसर शशिकांत शुक्ला के घर आई-कार्ड गले में डालकर पहुंचा, जिस पर बराक ओबामा के हस्ताक्षर थे, तब उस पर शक हुआ।
पुलिस ने जांच की और पाया कि वह एक धोखेबाज है। उसने नासा में नौकरी मिलने के नाम पर कई लोगों से उधार भी ले रखा था। पुलिस ने बताया कि एक लोकल फोटो स्टूडियो में उसने यह आई-कार्ड बनवाया था।
2 साल तक पूरे मीडिया को झांसे में रखने वाला पीवी अरूण
19 सितंबर 2012 को ‘द हिंदू’ अखबार ने एक खबर छापी। केरल के एक लड़के पीवी अरूण को नासा में रिसर्च सांइटिस्ट के तौर पर चुना गया है। खबर यह भी थी कि उसे अमेरिका की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी एमआईटी में भी दाखिला मिला है। जश्न का माहौल बन गया। अरूण नए लड़कों का आदर्श था और पुराने लोगों के लिए गर्व करने का मौका। दो सालों तक मीडिया को एहसास भी नहीं था कि एक बड़ा झूठ पीवी अरूण ने रचा था। कई बड़े अखबार इस बात को नहीं पकड़ पाए कि नासा ने कभी अरूण को नहीं चुना। वहां के तत्कालीन एसपी (टेलीकम्युनिकेशन) जयनाथ ने बताया कि जांच में पता चला कि अरूण ने जुलाई 2013 से जुलाई 2014 के बीच भूटान की रॉयल यूनिवर्सिटी में बतौर लेक्चरर काम किया था। बाकी सारी बातें उसने गढ़ी थीं।
फेसबुक से नासा में इंटर्नशिप पाने का दावा करने वाली सतपर्णा मुखर्जी
नासा से जुड़ी यह कहानियां अभी खत्म नहीं हुई हैं। हफिंगटन पोस्ट की 2 मार्च 2016 की एक खबर के मुताबिक, कोलकाता की एक लड़की सतपर्णा मुखर्जी को नासा की तरफ से गोदार्द इंटर्नशिप प्रोग्राम का ऑफर मिला। इस खबर को बाद में हफिंगटन पोस्ट ने भी गलत बताया। सतपर्णा मुखर्जी ने दावा किया था कि उसने फेसबुक ग्रुप ‘एस्ट्रोफिजिक्स ‘ पर ब्लैक होल थ्योरी पर कुछ बातें लिखीं थीं, जिसकी वजह से नासा के एक अधिकारी ने उससे यह विचार नासा की वेबसाइट पर लिखने को कहा। इसके बाद उसने दावा किया कि उसे यह ऑफर नासा के गोदार्द इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस स्टडीज, लंदन से आया था।
सतपर्णा का यह झूठ तब पकड़ में आया जब पता चला असल में नासा के इस इंस्टीट्यूट की लंदन में कोई ब्रांच ही नहीं है। इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक कथित इंटर्नशिप प्रोग्राम सिर्फ उनको मिलता है, जो नासा के आस-पास न्यूयॉर्क में 50 मील की दूरी पर रहते हों। निश्चित ही कोलकाता इस सीमा के अंदर नहीं पड़ता है। डीएनए इंडिया को भेजे एक मेल में नासा ने इस बात की पुष्टि भी की। नासा ने कहा कि हमारे पास नासा से जुड़े किसी इंस्टीट्यूट, प्रोग्राम या सेंटर में इस नाम का कोई शख्स नहीं है।
अमेरिकी सेना से पहले नासा में काम करने का दावा करने वाला मोनार्क शर्मा
इसी साल मई 2017 में भारत के मोनार्क शर्मा के संयुक्त राज्य अमेरिका की सेना में चुने जाने की खबरें आई थीं हालांकि इस कहानी में भी थोड़ी गड़बड़ है। मोनार्क शर्मा का दावा था कि वह 2013 में नासा के मास कम्युनिकेशन विंग में जूनियर साइंटिस्ट था। वहां पर उसके काम को देखते हुए ही उसे सेना में चुना गया। हफिंगटन पोस्ट के मुताबिक, वह कभी नासा गया ही नहीं। नासा में डिप्टी एसोसिएट फॉर एडमिनिस्ट्रेटर फॉर कम्युनिकेशन बॉब जैकब्स ने हफपोस्ट इंडिया को बताया कि हमें इस बात की कोई जानकारी नहीं है। एलार्ड ब्यूटल ने हफपोस्ट इंडिया को बताया कि हमारे पास मोनार्क नाम के किसी शख्स के नासा की किसी गतिविधि में हिस्सा लेने की कोई खबर नहीं है।
साथ ही नासा में काम करने के लिए और अमेरिकी सेना में जाने के लिए अमेरिका की नागरिकता लेनी होती है। मोनार्क का दावा था कि नासा ने उसे ग्रीन कार्ड दिया है। जबकि बॉब जैकब्स के मुताबिक यह नासा का काम नहीं है। फिर जिस तरह मोनार्क ने नागरिकता हासिल करने की बात कही, उससे उसके आर्मी में चुने जाने की खबर पर भी शक होता है। बाद में जब मोनार्क से संपर्क करने की कोशिश की गई तो उसने जवाब नहीं दिया। बॉब जैकब्स ने इन खबरों की किरकिरी करते हुए यह भी कहा कि भारत में लोग आए दिन नासा में नौकरी मिलने की गलत जानकारी फैलाते हैं।
नासा का अवॉर्ड जीतने का दावा करने वाला सौरभ सिंह
ऐसा ही 2005 का एक किस्सा है, जब उत्तर-प्रदेश का 17 साल का सौरभ सिंह सुर्खियों में आया था। उसका दावा था कि उसने लंदन में नासा का एक अवॉर्ड जीता है। लेकिन जब उससे इस बात के सबूत मांगे गए तो उसने कहा मेरे सारे दस्तावेज कोटा के बंसल क्लासेज में हैं।
यह संभव है कि इनमें से कुछ को नौकरी का झांसा दिया गया हो क्योंकि आजकल नौकरी दिलाने के नाम पर बहुत से ऑनलाइन पोर्टल भी चल रहे हैं लेकिन ज्यादातर के मामले में यही लगता है कि वे जानबूझकर ऐसा कर रहे थे।
इस तरह खुद के बारे में झूठे दावे करने की सोच के पीछे सामाजिक संरचना भी कुछ हद तक काम करती है, जहां बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी, बड़ा सैलरी पैकेज या बड़े सरकारी, राजनीतिक पद को आश्चर्य और सम्मान के मिले-जुले भाव के साथ देखा जाता है। लोग कुछ पलों के लिए खुद के लिए अहमियत चाहते हैं, इसलिए भी इस तरह के कदम उठा लेते हैं। ऐसे लोगों की वजह से कई बार बाहर तक भी अविश्वसनीयता का संदेश जाता है, जैसा नासा के बॉब जैकब्स ने कहा।
साथ ही ऐसी खबरों को फौरन 'भारत के गर्व' से जोड़कर शेयर करने से पहले क्रॉस-चेक जरूर किया जाना चाहिए। मीडिया की भी यह जिम्मेदारी है कि बगैर जांच-पड़ताल के ऐसी खबरों को फैलाने से बचे।