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7 साल कैसे दबा रहा देश का सबसे बड़ा बैंकिंग घोटाला? "पीएमओ से हुई थी शिकायत"

देश के सामने भले ही पीएनबी घोटाला बुधवार को सामने आया, लेकिन कांग्रेस का दावा है कि प्रधानमंत्री...
7 साल कैसे दबा रहा देश का सबसे बड़ा बैंकिंग घोटाला?

देश के सामने भले ही पीएनबी घोटाला बुधवार को सामने आया, लेकिन कांग्रेस का दावा है कि प्रधानमंत्री कार्यालय में इस घोटाले की शिकायत डेढ़ साल पहले हो चुकी थी। पंजाब नेशनल बैंक के सीएमडी सुनील मेहता ने माना है कि यह घपलेबाजी 2011 से चल रही थी। लेकिन हैरानी की बात है कि बरसों से फर्जी लेटर ऑफ अंडरटेकिंग (गारंटी पत्र) के आधार पर कर्ज दिलवाने का यह खेल पकड़ में नहीं आया। बैंक के भीतर या बाहर किसी ने सवाल नहीं उठाया? भारतीय बैंकों के लिए मुसीबत बन चुकी डूबते कर्ज की समस्या के बीच यह मामला बैंकों की कार्यप्रणाली में गंभीर खामियों को उजागर करता है।

बुधवार को पंजाब नेशनल बैंक ने बांबे स्टॉक एक्सचेंज को बताया था कि दक्षिणी मुंबई स्थित उसकी एक ब्रांच के जरिए करीब 11,400 करोड़ रुपये का फर्जीवाड़ा सामने आया है। पीएनबी का कहना है कि उसके दो कर्मचारियों ने हीरा कारोबारी नीरव मोदी की कंपनियों को फर्जी तरीके से लेटर्स ऑफ अंडरटेकिंग (एलओयू) जारी किए और भारतीय बैंकों की विदेशी शाखाओं से कर्ज दिलवाने में मदद की। इस मामले में पीएनबी ने अपने 10 कर्मचारियों को सस्पेंड कर दिया है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि वर्षों तक यह फर्जीवाड़ा आखिर चलता कैसे रहा? इसे पकड़ने में इतने साल क्यों लगे?

आज पीएनबी के सीएमडी सुनील मेहता ने प्रेस कांफ्रेंस कर बैंक के 123 साल के इतिहास की दुहाई देते हुए दोषियों को कड़ी सजा दिलवाने का दावा किया है। उनका कहना है कि सबसे पहले खुद बैंक ने इस मामले को पकड़ा और जांच एजेंसियों को कार्रवाई करने को कहा है। हालांकि, गत 29 जनवरी को जब पीएनबी ने इस मामले की शिकायत सीबीआई से की, तब तक नीरव मोदी, मेहुल चौकसी और उनके साथी देश से बाहर जा चुके थे। आशंका है कि इस मामले का हश्र भी कहीं विजय माल्या जैसा न हो जाए!

गारंटी का खेल

लेटर्स ऑफ अंडरटेकिंग (एलओयू) किसी गारंटी-पत्र की तरह होता है, जो बैंक एक-दूसरे बैंक को देते हैं। इंटरनेशनल बैंकिंग में यह काफी प्रचलित है। पीएनबी के मामले में इसके कर्मचारियों ने नीरव मोदी व इससे जुड़ी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए बैंकिंग सिस्टम में ब्यौरा दिए बगैर एलओयू जारी कर दिए। बैंक को भी पता नहीं चला कि उसकी गारंटी पर विदेशों में कर्ज बांटा जा रहा है।   

पीएनबी के सीएमडी सुनील मेहता का कहना है कि बैंक को इस मामले की जानकरी एक ग्राहक के केस की पड़ताल के दौरान मिली। उन्‍होंने माना कि कर्मचारियों की मिली-भगत से इस घोटाले को अंजाम दिया गया। बैंक के सीबीएस में एलओयू दर्ज नहीं हुआ था इसलिए घोटाले की जानकारी नहीं मिल पाई। 

फर्जीवाड़ा दोहराने की कोशिश

गत 16 जनवरी को पीएनबी के जरिए फर्जीवाड़ा करने की कोशिश की जा रही थी, लेकिन इस बार मामला पकड़ में आ गया। बैंक के अधिकारियों ने एलओयू के एवज में 100 फीसदी कैश मार्जिन देने को कहा तो नीरव मोदी की कंपनियों ओर से पहले भी ऐसा किए जाने की बात कही गई। छानबीन की तो बैंक में इस तरह के लेनदेन का कोई रिकॉर्ड नहीं मिल पाया। शुरुआती जांच में पता चला कि बैंक के दो  कर्मचारियों ने इलाहाबाद बैंक और एक्सिस बैंक की हांगकांग शाखाओं के लिए फर्जी एलओयू जारी किए। पीएनबी ने 29 जनवरी को सीबीआई से इस मामले में एफआईआर दर्ज करने का कहा था, लेकिन यह मामला काफी बड़ा निकला। अब तक तीन अलग-अलग शिकायतों में पीएनबी ने सीबीआई को कुल 150 फर्जी एलओयू की लिस्ट सौंपी हैं, जिनके जरिए करीब 11400 करोड़ रुपये के घोटाले का आरोप है। 

अब चूंकि फर्जी एलओयू के तौर पर गारंटी पीएनबी है, इसलिए इस देनदारी का बोझ भी पीएनबी को उठाना पड़ सकता है। हालांकि, अभी यह स्पष्ट नहीं है कि करीब 11,400 करोड़ रुपये के इस घोटाले का कितना भार पीएनबी पर पड़ेगा, लेकिन घाटे और डूबते कर्ज के बोझ से दबे देश के बैंकिंग सेक्टर के लिए यह एक नई आफत है। पीएनबी के सीएमडी का दावा है कि फ्रॉड पर अंकुश लगाने के लिए बैंक की अन्य शाखाओं की छानबीन की गई है। जाहिर है देश के बाकी सरकारी बैंक भी इस घपले की चपेट में आ सकते हैं। 

"पीएमओ को डेढ़ साल से थी जानकारी"

गुरुवार को कांग्रेस के कम्युनिकेशन विभाग के इंचार्ज रणदीप सुरजेवाला ने आरोप लगाया कि डेढ़ साल से प्रधानमंत्री को इस घोटाले की जानकारी थी, लेकिन नीरव मोदी और मेहुल चौकसी सरकार की नाक के नीचे पूरे बैंकिंग सिस्टम को ठगते रहे। इसके लिए कौन जिम्मेदार है? जिस व्यक्ति के खिलाफ सरकार को कार्रवाई करनी चाहिए थी, वह प्रधानमंत्री के साथ दावोस में फोटो खिंचवा रहा था।  

26 जुलाई, 2016 को प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजी गई शिकायत में आरोप गया है कि महज 25-30 करोड़ रुपये की संपत्ति के आधार पर मेहुल चौकसी से जुड़े कंपनियों को 31 बैंकों ने करीब 9872 करोड़ रुपये का कर्ज दिया है, जो डूब सकता है। 

 

 

 

 

 

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