जामिया मिलिया इस्लामिया में इस्लामी अध्ययन विभाग के प्रोफेसर जुनैद हारिस के अनुसार तलाक की जो व्यवस्था मौजूदा समय में पर्सनल लॉ बोर्ड ने स्वीकारी है वो कुरान और इस्लाम के नजरिये से मेल नहीं खाती है।
प्रोफेसर हारिस ने भाषा से कहा, हमारे देश में एक साथ तीन तलाक की जो व्यवस्था है और पर्सनल लॉ बोर्ड ने जिसे मान्यता दी है वो पूरी तरह कुरान और इस्लाम के मुताबिक नहीं है। तलाक की पूरी व्यवस्था को लोगों ने अपनी सहूलियत के मुताबिक बना दिया है। इसमें कुरान के मुताबिक संशोधन की सख्त जरूरत है। हाल ही में उत्तराखंड की महिला सायरा बानो के उच्चतम न्यायालय जाने और कुछ महिलाओं के तलाक के मामले सामने आने के बाद से तीन तलाक के मुद्दे को लेकर बहस तेज हो गई है। उच्चतम न्यायालय ने इस मामले पर सरकार का रुख जानने के लिए नोटिस जारी किया था। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सरकार पर धार्मिक मामले में दखल देने का आरोप लगाते हुए कहा कि तलाक के मुद्दे पर कोई बदलाव नहीं होगा क्योंकि वह शरीयत के दायरे से बाहर नहीं जा सकता।
दूसरी ओर, हारिस कहते हैं कि कुरान में स्पष्ट किया गया है कि एकसाथ तीन तलाक नहीं कहा जा सकता। एक तलाक के बाद दूसरा तलाक बोलने के बीच करीब एक महीने का अंतर होना चाहिए। इसी तरह का अंतर दूसरे और तीसरे तलाक के बीच होना चाहिए। ये व्यवस्था इसलिए की गई है ताकि आखिरी समय तक सुलह की गुंजाइश बनी रहे। ऐसे में एकसाथ तीन तलाक मान्य नहीं हो सकता।
मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठन भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन (बीएमएमए) ने हाल ही में तीन तलाक की व्यवस्था को खत्म करने की मांग को लेकर देश भर से 50,000 से अधिक महिलाओं के हस्ताक्षर लिए और राष्ट्रीय महिला आयोग से इस मामले में मदद मांगी। बीएमएमए की संयोजक नूरजहां सफिया नियाज का कहना है, मुस्लिम महिलाओं को भी संविधान में अधिकार मिले हुए हैं और अगर कोई व्यवस्था समानता और न्याय के बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ है तो उसमें बदलाव होना चाहिए।
दूसरी तरफ, पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य कमाल फारूकी ने कहा, पर्सनल लॉ बोर्ड ने तो हमेशा से तलाक के खिलाफ काम किया है। 20 साल पहले हम मॉडल निकाहनामा लेकर आए थे। पर्सनल लॉ में सारी चीजें स्पष्ट हैं और महिलाओं के अधिकारों का पूरा खयाल रखा गया है। गलतफहमियां फैलाई जा रही हैं कि हम लोग झुकने को तैयार नहीं है। जो बात शरीयत के मुताबिक नहीं होगी उसे कैसे माना जा सकता है। मियां-बीबी के रिश्ते में तलाक आखिरी विकल्प होना चाहिए और हम इसी पर जोर देते हैं। उन्होंने आरोप लगाया, कुछ संगठन शरीयत के मामले में दखल देने की कोशिश कर रहे हैं। पिछले दरवाजे से समान आचार संहिता को लागू करने के लिए यह सब किया जा रहा है।