हॉस्टल शुल्क में प्रस्तावित बढ़ोतरी को पूरी तरह से वापस लेने की मांग को लेकर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रों ने 18 नवंबर को संसद की ओर मार्च किया था। मार्च को रोकने के लिए दिल्ली पुलिस ने सड़कों पर बैरिकेड लगाए थे। यह मार्च संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन हुआ था। छात्रों ने आउटलुक से बातचीत में बताया कि उनका न सिर्फ पुलिस ने यौन उत्पीड़न किया बल्कि उन पर ब्लेड से हमला भी किया।
छात्राओं को चुभोई गई पिन
बिहार में रहने वाली एमए प्रथम वर्ष की छात्रा प्रियंका भारती भी उन हजारों छात्रों में से एक थीं, जो संसद की ओर मार्च कर रहे थे। छात्रों ने कैंपस के पास ही रखे गए पहले बैरीकेड को पार किया तब तक प्रियंका बाबा गंगनाथ मार्ग पर रखे दूसरे बैरीकेड को पार करने की कोशिश करने लगीं। प्रियंका बताती हैं, “जब मैं बैरीकेड पर चढ़ी तो एक महिला कॉन्सटेबल ने मुझे दूसरी ओर खींच कर नीचे गिरा दिया और पिन चुभोने लगीं।” पिन चुभोने के निशान उनके हाथ पर अब भी देखे जा सकते हैं। भारती ने बताया कि जिन भी लोगों ने हमें पकड़ा और नीचे गिराया उनमें से किसी ने भी बैज या यूनिफॉर्म नहीं पहना हुआ था।
भारती ने बताया कि जब अन्य छात्र बैरिकेड पर चढ़ने और उसे तोड़ने का प्रयास कर रहे थे, तब दो महिला कांस्टेबलों ने भारती को पकड़ लिया। उन्होंने कहा, “फिर, एक पुरुष कांस्टेबल ने अश्लील तरीके से मेरे शरीर को छुआ।” भारती कहती हैं, “पहले तो मुझे लगा कि यह अनायास ही हुआ है लेकिन जब मैंने उसकी तरफ देखा तो वो मुझे देख कर मुस्करा रहा था। उसने जानबूझ कर ऐसा किया था। मैं उस पुलिसवाले का चेहरा कभी नहीं भूल सकती। वो हमेशा मेरे दिमाग पर हावी रहता है।”
भारती ने बताया कि वे लगातार चिल्लाती रहीं लेकिन महिला कॉन्सटेबलों ने उन्हें जाने नहीं दिया। दूसरे छात्रों की तरह उन्हें भी लाठियों से पीटा गया। इस पिटाई से उनकी पीठ और कंधे पर जख्म हो गए हैं।
जबर्दस्ती छूने की गई कोशिश
वह अकेली छात्रा नहीं हैं जिन्होंने पुलिस पर जबर्दस्ती छूने की कोशिश के आरोप लगाए हैं। एक और छात्रा ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि उनके साथ भी यौन दुर्व्यवहार हुआ। उन्होंने बताया, “महिला कॉन्सटेबलों के एक समूह ने मुझे बहुत खराब ढंग से पकड़ा और एक पुरुष कॉन्सटेबल आया और उसने मेरे शरीर के उपरी हिस्से को बहुत अश्लील तरीके से छुआ। मैं जोर से चिल्लाई। यहां तक कि वहां खड़ी महिला कॉन्सटेबलों को भी इसकी कोई परवाह नहीं थी कि क्या हो रहा है।”
जेएनयू के छात्र प्रस्तावित हॉस्टल फीस वृद्धि के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं, जिसका उल्लेख विश्वविद्यालय के नए हॉस्टल मैनुअल में किया गया है। विश्वविद्यालय की 2017-18 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, कम से कम 43 प्रतिशत छात्र कम आय वाले परिवारों से आते हैं और वे संस्थान की फीस वृद्धि को "भारी-भरकम" और विश्वविद्यालय के "मिजाज के खिलाफ" बताते हुए पूर्ण रोल-बैक की मांग कर रहे हैं। आउटलुक से बात करने वाले कई छात्रों ने कहा कि अगर नए हॉस्टल मैनुअल को लागू किया गया तो उन्हें अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ेगी, क्योंकि वे ऐसी "मोटी" राशि वहन नहीं कर पाएंगे। लगभग एक महीने से, विश्वविद्यालय "लॉकडाउन" रहा है।
छात्रों पर हुआ लाठीचार्ज
रिसर्च स्कॉलर और स्टूडेंट्स यूनियन की सदस्य अर्पिता प्रियदर्शनी ने कहा कि संसद में मार्च से ठीक पहले पुलिस ने बैरिकेड्स लगा दिए जाने के बाद वे कैंपस के अंदर फंस गए। 18 नवंबर की सुबह, छात्रों ने कैंपस के गेट के ठीक बाहर पहले बैरिकेड को पार किया फिर दूसरे को भी तोड़ने में कामयाब रहे। प्रियदर्शनी ने बताया कि बाबा गंगा नाथ मार्ग पर तीसरे बैरिकेड पर, कई पुलिसकर्मी सादी वर्दी में या बिना बैज के मौजूद थे। उन्होंने बताया, “वहां भारी पुलिस बल तैनात था।” उन्होंने बताया, “जैसे ही छात्र बैरिकेड तोड़ने की कोशिश करने लगे, सादे कपड़ों में मौजूद पांच महिला कॉन्सेटबलों ने मुझे खींचा और मेरे कपड़े खींचने लगीं। जैसे ही वे लोग मेरे कपड़े फाड़ने लगीं, मैंने उन्हें चेतावनी दी कि वे लोग सेक्चुअल हेरासमेंट कर रही हैं।” हालांकि उसकी चेतावनी ने उन्हें उसके कपड़े फाड़ने से रोक दिया, लेकिन उन लोगों ने प्रियदर्शनी को पकड़ा और बैरिकेड के दूसरी तरफ फेंक दिया। बाद में उन्हें हिरासत में लिया गया और दिल्ली कैंट पुलिस स्टेशन ले जाया गया। शाम 6 बजे के आसपास उन्हें रिहा कर दिया गया। रिहाई के बाद, प्रियदर्शनी जोर बाग गई, जहां छात्र एक ब्रीफिंग के लिए रुके थे। प्रियदर्शिनी बताती हैं कि “अचानक तभी, पुलिस का एक विशाल दल लहर की तरह आया और सभी स्ट्रीट-लाइट बंद कर छात्रों को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज कर दिया।” प्रियदर्शिन बताती हैं, पुलिसवाले इतने पर ही नहीं रुके, “उन्होंने अपने हाथ हमारे सीने पर रखे और हमें पीछे धकेलने लगे।” वहां मौजूद सैकड़ों छात्राओं जिसने साथ ऐसा ही व्यवहार किया जा रहा था ने उनकी इस हरकत का विरोध किया।
पुलिस ने उत्पीड़न का आरोप किया खारिज
वसंत कुंज (नॉर्थ) पुलिस स्टेशन के एसएचओ ऋतुराज का कहना है कि छात्रों ने इस तरह की घटनाओं के बारे में बताया है। ऋतुराज ने आउटलुक से कहा, “ये गलत आरोप हैं।” यह मामला वसंत कुंज थाने के न्यायक्षेत्र में है। जेएनयू से स्नातकोत्तर कर रहीं कृष्णा पुलिस के दावे को झुठलाती हैं। उन्होंने बताया कि उनके सामने उनकी एक महिला मित्र को पुलिसवालों ने जमीन पर पटका, जिससे वह घायल हो गई। कृष्णा ने बताया कि जब पुलिस छात्रों को खदेड़ने के लिए उनका पीछा कर रही थी तब कुछ छात्राओं आइएनए मेट्रो स्टेशन के पास सार्वजनिक शौचालय में छुप कर खुद का बचाव करती रहीं। “लेकिन पुलिस ने अंदर झांक कर छात्राओं को न सिर्फ बाल पकड़ कर खींचा बल्कि पटाई भी की।” कृष्णा बताती हैं कि छात्रों के साथ जानवरों की तरह व्यवहार किया गया।” वह कहती हैं, “हमारा पूरा शरीर चोट से भर गया है। कुछ घाव तो ऐसी जगह हैं जो हम दिखा भी नहीं सकते।”
जेएनयू स्टूडेंड की सदस्य और एक अन्य छात्रा सुचेता, प्रियदर्शिनी और कृष्णा की बातों की तसदीक करती हैं। सुचेता कहती हैं, “पुरुष कॉनस्टेबलों ने हमारी छाती पर हाथ रख कर हमें पीछे धकेला।
पुलिस ने छात्रों को ब्लेड मारी
आउटलुक से बात करने वाले सैकड़ों छात्रों ने कहा कि यौन उत्पीड़न के अलावा, पुलिस कई छात्रों को ब्लेड से भी घायल किया। पुलिस अपने साथ ब्लेड लेकर आई थी। सुचेता ने बताया कि महिला कॉनस्टेबलों ने अपने बैज की पिन का इस्तेमाल छात्राओं के सीने में चुभोने के लिए इस्तेमाल कीं। सुचेता के पैर में एक चीरा लग गया है। सुचाता का कहना है कि यह पुलिस की ब्लेड के कारण लगा है। वह कहती हैं कि वह इकलौती नहीं हैं, कई छात्रों को इस तरह के चीरे लगे हैं। कई हैं जो ब्लेड से घायल हुए हैं।
इतना सब होने के बाद भी छात्रों का कहना है कि करीब महीने भर से चली आ रही वे “अन्याय के खिलाफ अपनी लड़ाई” जारी रखेंगे। भारती कहती हैं, “इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमें कितना पीटा गया, हमें बस इतना पता है कि हम नहीं रुकेंगे। मैं गरीबी के उस नर्क में वापस नहीं जाना चाहती जहां से मैं आई हूं।”