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दुनियादारी: रिहाई का इंतजार

केरल के पलक्कड़ जिले के कोल्लेंगोड में पैदा हुईं निमिषा के मजदूर माता-पिता ने स्थानीय चर्च की मदद से...
दुनियादारी: रिहाई का इंतजार

केरल के पलक्कड़ जिले के कोल्लेंगोड में पैदा हुईं निमिषा के मजदूर माता-पिता ने स्थानीय चर्च की मदद से उसे नर्सिंग की पढ़ाई पूरी कराई। घर को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने का सपना लेकर निमिषा 2008 में यमन चली गई। यमन में उसने एक सरकारी अस्पताल में नर्स का काम शुरू किया। वहां उसकी पहचान तलाल अब्दो महदी से हुई। ज्यादा पैसा कमाने की चाह में उसने महदी के साथ मिल कर 2014 में 14 बिस्तरों वाला अल अमन मेडिकल क्लिनिक शुरू किया। यमन के कानून के अनुसार, विदेशी अकेले कोई व्यवसाय शुरू नहीं कर सकते हैं इसलिए स्थानीय साझेदार के रूप में निमिषा को महदी की जरूरत पड़ी। स्थानीय कपड़ा दुकानदार तलाल अब्दो महदी इसके लिए तैयार हो गया। तब निमिषा को भी नहीं पता था कि यह साझेदारी उनके जीवन को हमेशा के लिए बदल कर रख देगी।

जल्द ही यह साझेदारी खटास में बदल गई। निमिषा का आरोप है कि महदी क्लिनिक की पूरी कमाई अकेले हड़प लेता था। महदी ने उनका पासपोर्ट भी रख लिया और उन्हें शारीरिक और भावनात्मक रूप से प्रताड़ित करने लगा। निमिषा का दावा है कि महदी ने फर्जी दस्तावेज बनाकर खुद को उनका पति बताया और उन्हें यमन छोड़ने से रोक दिया। निमिषा का कहना है कि 2016 में, उन्होंने स्थानीय पुलिस में शिकायत की थी, लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। हताश होकर, जुलाई 2017 में निमिषा ने अपना पासपोर्ट वापस लेने के लिए महदी को केटामाइन सेडेटिव देकर बेहोश करने की योजना बनाई। लेकिन दवा की खुराक ज्यादा होने से महदी की मृत्यु हो गई। निमिषा ने अपनी सहयोगी हनान की मदद से, शव को टुकड़ों में काटकर पानी के टैंक में छुपाने की कोशिश की, लेकिन अगस्त 2017 में यमन-सऊदी सीमा के पास वे पकड़ी गईं।

निमिषा पर 2017 में महदी की हत्या के लिए मौत की सजा सुनाई गई है और उनकी सहयोगी हनान को उम्र कैद की सजा हुई। तब से निमिषा सना सेंट्रल जेल में बंद हैं। 2018 में हूती नियंत्रित सना की एक अदालत में निमिषा पर मुकदमा हुआ। लेकिन इसमें कई खामियां थीं। निमिषा के लिए पैरवी कर रहे सुप्रीम कोर्ट के वकील के.आर. सुभाष चंद्रन के अनुसार, सुनवाई पूरी तरह अरबी में हुई, जो निमिषा को समझ नहीं आती थी। उन्हें न दुभाषिया दिया गया, न कोई कानूनी मदद। 2020 में सना की ट्रायल कोर्ट ने उन्हें मौत की सजा सुनाई, जिसे नवंबर 2023 में हूती नियंत्रित सुप्रीम ज्यूडिशियल काउंसिल ने बरकरार रखा। एमनेस्टी इंटरनेशनल सहित आलोचकों ने इस मुकदमे को अनुचित ठहराया, क्योंकि उसमें पारदर्शिता की कमी थी।

यमन में शरिया आधारित कानूनी ढांचा है। पीड़ित का परिवार दोषी को माफ कर वित्तीय मुआवजा स्वीकार कर सकता है इसे ‘दिया’ कहते हैं। कुछ परिवार ‘किसास’ चुनते हैं यानी कानून उन्हें समान सजा की मांग करने का अधिकार देता है। मतलब खून के बदले खून। महदी के परिवार, विशेष रूप से उनके बड़े भाई अब्देल फतेह महदी ने निमिषा के लिए किसास की मांग की है। फिलहाल उन्होंने दिया को अस्वीकार कर दिया है। उनके इस रुख ने निमिषा की रिहाई के प्रयासों को जटिल बना दिया है।

16 जुलाई 2025 को निमिषा की फांसी निर्धारित थी, लेकिन भारत सरकार और अन्य मध्यस्थों के तेज राजनयिक और अनौपचारिक प्रयास के बाद इसे कुछ समय के लिए स्‍थगित कर दिया गया है। अभी फांसी की नई तारीख निर्धारित नहीं की गई है। निमिषा को बचाने के लिए 2020 में उनके रिश्तेदारों ने ‘सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल’ बनाई है, जिसमें उन लोगों ने दिया देने के लिए लगभग 58,000 अमेरिकी डॉलर जुटाए हैं।

महदी परिवार के रवैये के कारण यह अस्थायी राहत समाधान की संकरी राह में फंस गया है। निमिषा को बचाने के लिए उनकी मां, प्रेमा कुमारी, अप्रैल 2024 से यमन में हैं। वे लगातार महदी परिवार से माफी मांगने की कोशिश कर रही हैं।

भारत सरकार ने भी निमिषा के मामले को गंभीरता से लिया है। लेकिन वहां कोई निर्वाचित सरकार न होने से परेशानी आ रही है। सरकार चला रहे हूती विद्रोहियों के साथ भारत के कोई औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं है। इससे मामला जटिल हो गया है। 2015 से यमन में भारत का दूतावास बंद है। फिर भी विदेश मंत्रालय ने सना के जेल अधिकारियों और अभियोजक कार्यालय के साथ नियमित संपर्क बनाए रखा है, निमिषा को कानूनी सहायता दी है और एक यमन का वकील भी नियुक्त किया है।

भारत सऊदी अरब और ईरान जैसे ‘मैत्री देशों’ के जरिए हूतियों से बातचीत का भी प्रयास कर रहा है। फरवरी 2025 में, ईरान के विदेश मंत्री सैयद अब्बास अरागची ने हूती दूत से मुलाकात के बाद निमिषा की रिहाई की अपील की थी। रियाद में भारतीय दूतावास ने स्थानीय और जनजातीय नेताओं के साथ समन्वय कर इस मामले को आगे बढ़ाया है। केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस मामले में हस्तक्षेप की अपील की थी।

फांसी स्थगित करने में केरल के प्रमुख सुन्नी विद्वान और भारत के ग्रैंड मुफ्ती, कंथापुरम ए.पी. अबूबकर मुसलियार की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही है। 94 वर्षीय मुसलियार ने यमन के मजहबी नेताओं के साथ बातचीत कर फांसी टालने में मदद की। खबरें हैं कि वे महदी परिवार के एक सदस्य को बातचीत के लिए राजी करने में सफल रहे। हालांकि, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने मुसलियार की भूमिका पर टिप्पणी करने से इनकार किया।

उनके अलावा 1999 से यमन में रहने वाले भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता सैमुअल जेरोम भी इस मामले में बहुत मदद कर रहे हैं। जेरोम महदी परिवार के साथ संपर्क में हैं और सेव निमिषा प्रिया एक्शन काउंसिल के साथ समन्वय में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। जेरोम का कहना है कि वे फिर से ‘‘पुल को बनाने की कोशिश” कर रहे हैं। इन दोनों के अलावा, यमन के सूफी विद्वान शेख हबीब उमर बिन हाफिज भी बातचीत में शामिल हैं, जो यमन के जनजातीय और शरिया-आधारित कानूनी ढांचे में धार्मिक नेताओं की भूमिका को देखते हैं। जो भी हो, इंसाफ साफ और पारदर्शी होना चाहिए।

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