ग्रोवर का यह भी कहना है कि सरकार की गलत धारणा है कि बच्चों को ‘एडल्ट’ मानने से वे सुधर जाएंगे या महिलाएं सुरक्षित हो जाएंगी। इस विधेयक के जरिये हत्या और दुष्कर्म जैसे संगीन अपराधों में शामिल 16 से 18 साल के किशोरों पर मुकदमा चलाने के फैसले का हक किशोर न्याय बोर्ड को दिया जाएगा। मामला और आरोपी को देख कर बोर्ड तय करेगा कि मुकदमा किशोर न्याय बोर्ड में चलाया जाए या सामान्य अदालत में। नाबालिग की उम्र घटाने को लेकर देश के अलग-अलग लोगों नें अलग-अलग राय है। यहां तक कि नेता भी इसमें एकमत नहीं है।
निर्भया कांड में नाबालिग की भूमिका को लेकर उठे सवालों के बाद किशोर न्याय कानून में संशोधन कर नाबालिग की उम्र घटाने की मांग जोर शोर से उठी थी। उस सामूहिक दुष्कर्म के आरोपियों में से एक आरोपी जिसने पीड़िता के साथ सबसे ज्यादा क्रूरता और बर्बरता दिखाई थी वह 18 वर्ष से कुछ महीने कम का था। जिसको लेकर लोगों के मन में आक्रोश था कि नाबालिग होने की वजह से वह सजा के दायरे से बाहर हो गया है।
हालांकि विभिन्न वर्गों की नाबालिग की उम्र पर अलग अलग राय रही है। इस वर्ष मार्च में सर्वोच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय बेंच ने किशोरों की उम्र घटाकर 16 वर्ष करने की याचिका खारिज करते हुए किशोर न्याय कानून को अंतरराष्ट्रीय सिद्धांतों के अनुरूप बताया था। जस्टिस जेएस वर्मा समिति ने भी किशोरों की उम्र घटाने के सुझाव को अव्यावहारिक बताकर खारिज कर दिया था लेकिन बीते दिनों सर्वोच्च न्यायालय की ही एक बेंच ने राज्य सरकारों से पूछा था कि हत्या, बलात्कार व अपहरण जैसे जघन्य अपराधों में शामिल आरोपी को क्या सिर्फ इसलिए छोड़ देना चाहिए, क्योंकि उसने अभी 18 साल की उम्र पूरी नहीं की है। उसके बाद केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने भी बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों के नाबालिग आरोपियों से वयस्क अपराधियों के समान बर्ताव किए जाने की वकालत की थी। अब राजग सरकार ने बीच का रास्ता निकाला है जिसमें सीधे तौर पर तो नाबालिग की उम्र नहीं घटाई जा रही है लेकिन इसके जरिये गंभीर अपराध में शामिल आदतन अपराधी हो चुके किशोरों को दंडित करने की व्यवस्था हो रही है। उम्मीद की जा रही है कि सरकार संसद के इसी सत्र में इस संशोधन विधेयक को पेश कर देगी ताकि जल्दी से कानून प्रभावी हो सके।