जलवायु परिवर्तन का कहर भारत सहित पूरी दुनिया को अपनी गिरफ्त में लेने को तैयार है। इस बार कश्मीर का तापमान पिछले 76 सालों के रिकॉर्ड को तोड़ते हुए फरवरी में 20 डिग्री सेलसियस तापमान तक पहुंच गया था। श्रीनगर में इस तरह का गरम मौसम देखकर पर्यावरणविद् और मौसम विशेषज्ञों को चिंता सता रही है कि बसंत बहुत पहले आ गया, जिसका सीधा असर फूलों पर पड़ा। फूलों के पहले ही खिल जाने से पर्यटन पर बुरा असर पड़ा है।
उधर जलवायु परिवर्तन से होने वाले जान-माल को नुकसान का खतरे की आशंका पूरे विश्व में बढ़ती जा रही है। नवीतम शोध के मुताबिक जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाली बिमारियों, कुपोषण और आपदाओं के चलते कम से कम 2050 तक पांच लाख मौतें हो सकती हैं। विश्व विख्यात पत्रिका लैंसेंट मेडिकल जर्नल में प्रकाशित विशेषज्ञों के अध्ययन में इस तथ्य को सामने लाया गया कि पूरी दुनिया इस संकट का शिकार होने जा रही है। इस अध्ययन में पहली बार विस्तार से बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से किस तरह की बिमारियां ज्यादा होती है। इसमें स्ट्रोक, कैंसर और दिल की बिमारियों का उल्लेख है। रिपोर्ट में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन से बाढ़ और भीषण गरमी का प्रकोप बढ़ेगा। पौष्टिक भोजन की उपलब्धता कम हो जाएगी। इसकी वजह से प्रति व्यक्ति को रोजाना 99 कैलोरी कम मिला करेगी। साथ ही फलों, सब्जियों, दालों की उपलब्धता भी कम होगी। यानी कुपोषण बड़े पैमाने पर बढ़ेगा। इस अध्ययन को करने वाली टीम के प्रमुख मेक्रो स्प्रिंगमैन, जो ऑस्कफॉर्ड विश्वविद्यालय में हैं, का कहना है कि जलवायु परिवर्तन का रिश्ता बिमारियों और कुपोषण से जोड़कर देखना जरूरी है। वरना हम इसके खतरनाक असर को सही ढंग से माप नहीं पाते।
सवाल यह है कि जिस तरह से श्रीमगर या भारत के दूसरे हिस्सों में इस बार सर्दी कम पड़ी है, उसे जलवायु परिवर्तन से जोड़कर देखा जाना चाहिए या नहीं ? और, इससे निपटने के लिए किस तरह की रणनीति पर विचार होना चाहिए, क्या हम उसके लिए तैयार हो रहे हैं?