समलैंगिक अधिकारों के पक्ष में खड़े लोगों के लिए सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से राहत भरी खबर आई है।
सुप्रीम कोर्ट धारा 377 पर अपने ही फैसले पर फिर से विचार करने के लिए तैयार है। बता दें कि दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को बदलते हुए 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने बालिग समलैंगिकों के शारीरिक संबंध को अवैध करार दिया था।
LGBT Case: Three-judge bench of Supreme Court, headed by CJI said, it would reconsider and examine the Constitutional validity of section 377. pic.twitter.com/vyqOnNY2c1
— ANI (@ANI) January 8, 2018
सुप्रीम कोर्ट ने LGBT समुदाय के पांच लोगों की एक याचिका पर केंद्र को भी नोटिस भेजा है। समुदाय के इन लोगों का कहना था कि अपने नैसर्गिक सेक्सुअल प्राथमिकता की वजह से उन्हें लगातार पुलिस के डर में जीना पड़ता है।
SC also issues notice to the Centre seeking response on a writ petition filed by five members of LGBT community, who say they live in fear of Police because of their natural sexual preferences.
— ANI (@ANI) January 8, 2018
सुप्रीम कोर्ट के 2013 के फैसले पर क्यूरेटिव पिटिशन डाली गई थी जिसमें संवैधानिक अधिकार का हवाला दिया गया था। पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल याचिकाकर्ताओं के इस मामले में वकील थे।
इस मामले में 2009 में दिल्ली हाई कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटाने का फैसला दिया था। केंद्र सरकार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। जिसके बाद दिसंबर 2013 में हाई कोर्ट के आदेश को पलटते हुए समलैंगिकता को IPC की धारा 377 के तहत अपराध बरकरार रखा।
बता दें कि देश भर में इस वक्त कई संगठन हैं जो समलैंगिकों को समान अधिकार और गरिमा के साथ जीवन जीने के अधिकार के लिए काम कर रहे हैं। विश्व के कई देशों में समलैंगिकों को अब शादी का अधिकार भी मिल चुका है। हाल ही में ऑस्ट्रेलिया ने समलैंगिकों को विवाह का अधिकार दिया है।