Advertisement

'किलर बैच' के विवादित एनकांउटर स्पेशलिस्ट की कहानी, जिसने दाऊद के भाई को गिरफ्तार किया

अस्सी के दशक में मुंबई में जावेद और रहीम नाम के दो हिस्ट्री शीटर ने आतंक मचा रखा था। उन्हें रंगा-बिल्ला...
'किलर बैच' के विवादित एनकांउटर स्पेशलिस्ट की कहानी, जिसने दाऊद के भाई को गिरफ्तार किया

अस्सी के दशक में मुंबई में जावेद और रहीम नाम के दो हिस्ट्री शीटर ने आतंक मचा रखा था। उन्हें रंगा-बिल्ला भी कहा जाता था। उन दिनों पुलिस के असली दोस्त मुखबिर होते थे और पुलिस का खौफ होता था लेकिन मुखबिर भी पैसे बनाने के चक्कर में पुलिस को गलत खबरें दिया करते थे। रंगा-बिल्ला के बारे में भी पुलिस को कई बार गलत जानकारी दी गई, लेकिन हर मुखबिर ऐसा नहीं था। 

साल 1989- अगस्त की एक रात। पुलिस कंट्रोल रूम को खबर मिली कि घाटकोपर की एक चॉल में रहीम और जावेद छिपे हुए हैं। घाटकोपर पुलिस स्टेशन के एक सब-इंस्पेक्टर और तीन सिपाही मौके पर भेजे गए।

ये लोग इस चॉल में पहुंचे तभी रहीम और जावेद ने पुलिस वालों पर हमला कर दिया। रहीम के हाथ में तलवार थी। पुलिस वालों की उम्मीद नहीं थी कि इस तरह उन पर हमला होगा। एक सिपाही के हाथ में रहीम ने गहरा घाव कर दिया। वो घिर चुके थे। तभी सब-इंस्पेक्टर ने रिवॉल्वर निकाली और एक के बाद एक गोलियां दागनी शुरू कीं। जावेद और रहीम का काम खत्म हो चुका था। इस सब-इंस्पेक्टर का नाम था, प्रदीप शर्मा। एनकांउटर स्पेशलिस्ट प्रदीप शर्मा। जिसने मंगलवार को अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम कासकर के भाई इकबाल कासकर को गिरफ्तार किया।

''किलर बैच''

1983 से 84 तक एक साल की ट्रेनिंग के बाद शर्मा ने 1984 में पुलिस फोर्स जॉइन किया था। यही वह दौर था, जब दाऊद के नाम पर मुंबई में गर्मी बढ़ने लगी थी। 1983 बैच को ''किलर बैच'' भी कहा जाता है, क्योंकि इसी बैच से प्रफुल भोसले, विजय सालस्कर, रविंद्र आंगरे, असलम मोमिन जैसे अफसर निकले थे। कहा जाता है कि इस बैच ने 500 से ज्यादा एनकांउटर और गैर-न्यायिक हत्याएं की हैं।

प्रदीप शर्मा

शर्मा ने अपनी नौकरी की शुरुआत माहिम पुलिस थाने से की थी। इसके बाद इनका ट्रांसफर कुछ सालों के लिए स्पेशल ब्रांच में किया गया। प्रदीप शर्मा के पास घाटकोपर और जुहू पुलिस स्टेशन जैसे बड़े थानों का भी चार्ज रहा। बताया जाता है, उस वक्त घाटकोपर थाने का चार्ज लेने से हर पुलिस वाला घबराता था लेकिन प्रदीप के आने के बाद से अपराधियों ने उस इलाके से किनारा कर लिया।

'दया नायक को मैंने बनाया'

ऐसा कहा जाता है कि अपने विरोधियों को निपटाने के लिए दाऊद ने पुलिस को कई एनकांउटर में इनपुट दिए। प्रदीप शर्मा से भी दाऊद का नाम जुड़ा। 1993 के सीरियल बम ब्लास्ट के बाद एनकांउटर होना आम बात हो चुकी थी। एनकांउटर स्पेशलिस्ट होना एक तमगा हो गया था। इसमें दया नायक का नाम सबसे आगे लिया जाता है।

दया नायक का नाम भी चर्चा में इसलिए ज्यादा आया क्योंकि उन्हें प्रदीप शर्मा का समर्थन हासिल था। शर्मा हल्के-फुल्के अंदाज में बताते हैं, 'वो मैं ही था, जिसने दया नायक की खोज की और उसे वेटर से एक प्रसिद्ध कॉप बनाया।' दया नायक पर नाना पाटेकर की 'अब तक छप्पन' फिल्म भी बन चुकी है।  

दया नायक

इस दौर में गैंगस्टर पुलिस के नाम से डरने लगे थे। ज्यादातर मुंबई छोड़कर भाग गए थे। धीरे-धीरे ये एनकांउटर स्पेशलिस्ट अपने बॉस से भी ताकतवर होने लगे थे। इस तरह की बातें होती हैं कि इनमें आपस में होड़ थी कि किसके हिस्से कितने एनकांउटर आते हैं।

लखन भइया एनकांउटर केस

अब तक प्रदीप शर्मा ने सैकड़ों मुंबईया गैंगस्टर को मारा है। 1989 से 2006 के बीच 17 साल के अपने करियर में उन्होंने लश्कर के आतंकियों से लेकर पाकिस्तान के कई ड्रग माफिया को मौत के घाट उतारा है। कहा जाता है कि उन्होंने 112 गैंगस्टरों का एनकांउटर किया है। उन पर आरोप हैं कि उन्होंने कई फर्जी एनकांउटर भी किए हैं।

 राम नारायण गुप्ता उर्फ लखन भइया , फोटो साभार- मिड डे

इसी सिलसिले में नवंबर 2006 के लखन भइया एनकांउटर केस में प्रदीप शर्मा को तीन साल बाद सस्पेंड कर दिया गया था। राम नारायण गुप्ता उर्फ लखन भइया पर शक था कि वह छोटा राजन का करीबी है। प्रदीप शर्मा 2009 से 2013 के बीच जेल में भी रहे। 2013 में एक ट्रायल कोर्ट ने उन्हें सबूतों के अभाव में बरी कर दिया।

पुलिस में वापसी

बरी होने के बाद से प्रदीप शर्मा को पुलिस में वापसी का इंतजार था, जो गृह मंत्रालय की मंजूरी के बाद खत्म हो गया। पिछले महीने 17 अगस्त को प्रदीप शर्मा ने ठाणे पुलिस में ऐंटी एक्सटॉर्शन सेल के चीफ के तौर पर जॉइन किया था।

2013 में जेल से छूटने के बाद शर्मा ने अंधेरी में एक सिक्योरिटी फर्म खोली थी। अर्बन हॉक सिक्योरिटी सर्विसेज। आज ये काफी मशहूर है और पुलिस में लौटने के बाद भी प्रदीप शर्मा ने इसे बंद नहीं किया है। वो कहते हैं कि 2020 में मेरे रिटायर होने के बाद ये मेरी सर्वायवल किट है। शर्मा इन एनकांउटर केस के बारे में बात करने से बचते हैं।

 

(इस आर्टिकल के कुछ इनपुट एस. हुसैन जैदी के लेख से लिए गए हैं।) 

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad