आखिरकार मध्य प्रदेश सरकार ने सरदार सरोवर बांध के लगातार बढ़ते जल स्तर से डूबने वाले गांवों की संख्या में संशोधन करने का आश्वासन दिया है। सरकार ने माना है कि डूब प्रभावित गांवों की संख्या 76 नहीं, बल्कि 178 है। इससे हजारों परिवारों को उनके हक मिलने की संभावना है।
नर्मदा बचाओ आंदोलन की ओर से मीडिया को जारी बयान में बताया गया कि सरकार ने 2017 में 76 गांवों में मात्र 6000 प्रभावित परिवारों के डूब क्षेत्र में निवासरत होने का दावा किया था। हालांकि सरकार ने न तो इन गांवों के नाम सार्वजनिक किए थे और न ही गांववार प्रभावितों की संख्या। आंदोलन द्वारा इस आंकड़ों को चुनौती दी गई जिसके बाद अब सरकार ने मान लिया है कि 178 गांवों में प्रभावित निवास कर रहे हैं। आंदोलन का कहना है, “प्रभावितों की सही संख्या का निर्धारण आंदोलन के साथ सर्वे कर निर्धारित किया जाएगा। सरकार द्वारा इस तथ्य को स्वीकार किया जाना सच्चाई की जीत है।”
वहीं आंदोलन ने दावा किया कि केन्द्र सरकार के समर्थन से गुजरात सरकार द्वारा लाई जा रही गैरकानूनी डूब से लाखों पेड़-पौधे डूबे हैं। यदि हर गांव में औसत 1000 पेड़ है तो 178 गांवों में पौने दो लाख पेड़ या तो डूब चुके हैं या फिर डूबने वाले हैं। इन जैविक पर्दाथों के सड़ने से उत्पन्न विषैली गैसें स्थानीय पर्यावरण पर लंबे समय पर विपरीत प्रभाव डालेगी।
‘सरदार सरोवर में जलभराव के साथ क्षेत्र में भूगर्भीय हलचलें तेज’
आंदोलन ने बताया, “सरदार सरोवर में जलभराव के साथ क्षेत्र में भूगर्भीय हलचलें तेज हुई है। अब इसका विस्तार होने लगा है। बड़वानी जिले के भमोरी से 9 अगस्त से भूकंप के झटके शुरु हुए थे। ये झटके साकड, हरिबड़, उमरिया, सिवई, बिलवा रोड़, मंदिल, सुराणा, बाण्डी, देवझिरी गांव से आगे बढ़ते हुए अब झोलपिपरी (अंजड़) तक पहुँच गए हैं। यह पूरी नर्मदा घाटी की सुरक्षा के लिए खतरे संकेत है।”
प्रभावित लोगों को अपने भविष्य की चिंता
आंदोलन का कहना है कि बिना पुनर्वास डूब के कारण प्रभावित हुए लोग अपने भविष्य की चिंता को लेकर गहरे अवसाद में हैं। डूब के बावजूद कई प्रभावितों का अपने घरों को छोड़ना मुश्किल हो रहा है। सेमल्दा में नानुराम प्रजापति की केले की खेती और घर दोनों डूब चुके हैं। उन्हें कृषि जमीन की पात्रता है लेकिन एनवीडीए ने अभी तक जमीन उपलब्ध नहीं करवाई है। इसलिए उन्होंने अपना घर से छोड़ने से इंकार कर दिया है। खापरखेड़ा की रंजना गोरे घर में 3 फूट पानी भरने तक घर में ही रही तथा घर छोड़ने से इंकार कर दिया था। चिखल्दा में अचानक आई डूब के शिकार लोग फूट पड़े थे और पूरे गांव में गमगीन माहौल हो गया था। आज खापरखेड़ा के प्रवीण विश्वककर्मा ने पुल से कूद कर आत्महत्या करने की थी लेकिन उन्हें बचा लिया गया।
डूब का प्रभाव व्यापक, टापू बने दर्जनों गांव
आंदोलन का दावा है कि पिछोड़ी में 35 मकान डूब चुके हैं लेकिन लोग गांव में डटे हुए हैं। जांगरवा और सोंदूल की सीमा पर बसे जिन लोगों को डूब से बाहर बताया गया था उनके मकानों में पानी भर गया है। जांगरवा के 110 परिवार टापू बन गए हैं और उनका बाहर से सड़क संपर्क टूट हो गया है। इन परिवारों को आज तक पुनर्वास के लाभ मिलना शेष है। अवल्दा, भवती, सोदूल, मोरकट्टा, बिजासन, अमलाली, राजघाट, भीलखेड़ा, नंदगांव, पेण्ड्रा , जामदा, छोटी कसरावद, कुण्डिया, देहदला, बगूद, पिपलुद, आवली, दतवाड़ा, मोहीपुरा, सेगांवा, एक्क,लबारा, सेमल्दा, कवठी, पेरखड़, उरदना, गांगली जैसे गांवों के सैकड़ों मकानों में या तो पानी घुस चुका है या फिर घुसने की तैयारी में है। इनमे से हजारों परिवारों का पुनर्वास शेष है। गांवों की बिजली काट दिए जाने से गांवों में पेयजल की समस्या खड़ी हो गई है। बड़वानी और धार जिले की हजारों हेक्टर जमीन टापू बन रही है। करोंदिया, बाजरीखेड़ा, खापरखेड़ा, गेहलगांव, एक्कलबारा, सेमल्दा, कसरावद, कुण्डिया, कालीबेड़ी, एकलरा, सनगांव, देहदला, सेगांवा, जांगरवा, पिछोड़ी, बोरखेड़ी, दतवाड़ा एवं अन्य गांवों की कृषि भूमि टापू बन रही है। जिसका आज तक एनवीडीए द्वारा सर्वेक्षण तक नहीं किया गया है।