बाप के कंधे पर बेटी की लाश और वो बदहवास पैदल चला जा रहा है। कदम जो भारी हो चुके हैं क्योंकि उसने कंधे पर सिर्फ अपनी बेटी की लाश नहीं व्यवस्था की लाश उठा रखी है, जिसकी वजह से उसकी बेटी मर गई। उसने कंधे पर इंसानियत की लाश उठा रखी है, जो हर बार ऐसी घटना के बाद शर्मसार होती है लेकिन इंसानियत मर चुकी है। यह उसी की लाश है।
बिहार की एक घटना से ओडिशा के दाना मांझी याद आते है, जिन्हें अपनी पत्नी की लाश कंधे पर उठाकर 10 किलोमीटर तक चलना पड़ा था, क्योंकि लाश को उनके गांव ले जाने के लिए सरकारी अस्पताल से एंबुलेंस की मदद नहीं दी गई थी।
पत्नी की लाश कंधे पर ले जाते दाना मांझी. फाइल फोटो.
बिहार की राजधानी पटना से सटे फुलवारी शरीफ में रामबालक अपनी बेटी का इलाज कराने के लिए जमुई से मंगलवार को पटना के एम्स पहुंचा। गरीब रामबालक, जो जमुई में मजदूरी करता है, अपनी पत्नी संजू के साथ बेटी रोशन का इलाज कराने के लिए एम्स आया मगर बिहार के इतने बड़े अस्पताल में उसे व्यवस्था की जटिलताएं समझ में ना आईं। बड़ी जगहों की व्यवस्थाओं को इसीलिए जटिल रखा गया है ताकि वो गरीबों की समझ में ना आएं।
Man carried daughter's body in #Patna in the absence of any ambulance claims family, says #AIIMS doctors didn't attend to the ailing girl. pic.twitter.com/HUCMjLNExm
— ANI (@ANI) October 18, 2017
अपनी बीमार बेटी के साथ एम्स पहुंचने के बाद रामबालक से वहां खड़े गार्ड ने उसे बेटी का रजिस्ट्रेशन कराने के लिए कहा। इतने बड़े अस्पताल में रामबालक को समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर उसे रजिस्ट्रेशन कहां करवाना है और कैसे करवाना है। इस वजह से वह एक काउंटर से दूसरे काउंटर तक भटकता रहा। रामबालक अस्पताल में धक्के खाता रहा और अपनी बीमार बेटी का हवाला देता रहा मगर उसके बावजूद भी कोई डॉक्टर या अस्पताल का कर्मचारी उसकी मदद करने के लिए सामने नहीं आया।
आखिरकार, जब रामबालक को समझ में आया कि पंजीकरण कराने के लिए उसे कौन से काउंटर पर खड़ा होना है तो वह वहां जाकर लाइन में लग गया मगर जब तक उसका नंबर आया उसे बताया गया कि ओपीडी का समय खत्म हो गया है और वह अगले दिन आए। इसी दौरान रामबालक की बेटी की हालत और बिगड़ गई और अस्पताल के अंदर ही उसकी मौत हो गई।
इतना ही नहीं, गरीबी की वजह से अपनी बेटी की लाश को एंबुलेंस से घर ले जाने के पैसे भी उसके पास नहीं थे और परिवार का आरोप है कि अस्पताल ने भी उसकी कोई मदद नहीं की।
आखिरकार, रामबालक ने अपनी बेटी की लाश को अपने कंधे पर उठाया और अपनी पत्नी के साथ 2 किलोमीटर तक चलता हुआ फुलवारीशरीफ टेंपो स्टैंड पहुंचा और वहां से वह किसी तरीके से पटना रेलवे स्टेशन आया। उसके बाद ट्रेन पकड़ कर अपनी बेटी की लाश के साथ वापस जमुई चला गया।
इन घटनाओं के बाद कुछ कहने के लिए शब्द नहीं बचते। कुछ रोज आक्रोशित होकर फिर सब वैसे ही चलने लगता है। किससे गुहार लगाई जाए, किस-किस कोसा जाए? किसी अपने की लाश को कंधे पर लेकर 2 किलोमीटर चलना पड़े या 10 किलोमीटर, ये सिर्फ चलने वाला जान सकता है।
झारखंड में आधार कार्ड, राशन कार्ड से लिंक ना होने की वजह से भूख से एक बच्ची की मौत का मामला सामने आया है। इस तरह की एक भी घटना जब तक इस देश में मौजूद है तब तक किसी भी वादे-इरादे पर भरोसा करना बेमानी लगता है।