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मार्च फॉर इंडिया: इस विरोध के मायने क्या हैं

इंडिया गेट से राष्ट्रपति भवन तक एक हुजूम नारे लगाता चल रहा है। इसे सोशल मीडिया ने कलबुर्गी-पानसरे की हत्या के पक्ष में भी देखा। लेकिन वहां ‘राष्ट्रवादियों’ ‘संघियों’ और ‘भक्तों’ के अलावा भी कई लोग भारत के लिए आए थे।
मार्च फॉर इंडिया: इस विरोध के मायने क्या हैं

नितिन शर्मा एक स्विस कंपनी में काम करते हैं, वह आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र हैं। उन्हें इससे कोई लेना-देना नहीं है कि कौन किसको असहिष्णु कह रहा है, कौन किसके समर्थन में पुरस्कार लौटा रहा है और कौन किसके विरोध में है। वह इस रैली में देश के लिए आए थे। वह कहते हैं, ‘जहां लाखों साल पुरानी परंपरा में सहिष्णुता बसती हो वहां कोई कैसे कह सकता है कि भारत असहिष्णु होता जा रहा है। मेरा कहना बस इतना है कि राजनीति के लिए देश की छवि खराब नहीं होनी चाहिए।’

 

नितिन अकेले नहीं हैं जो इस तरह के विचार लेकर वहां मौजूद थे। मल्टीनेशनल में काम करने वाले अमित श्रीवास्तव, विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले विकास राठौर, थिएटर से जुड़े जुगनू प्रभात ऐसे युवा थे जिन्हें इस असहिष्णुता के नाम पर राजनीति करना नहीं सुहा रहा है।

 

वैसे इस ‘भीड़’ की अगुआई अनुपम खेर कर रहे थे। इस जुलूस में मधु किश्वर, वासुदेव कामत, नरेंद्र कोहली, डेविड फ्रॉले जैसे लोग शामिल हुए थे। डेविड फ्रॉले ने कहा, ‘मैं भारत को आज से नहीं बरसों से जानता हूं। मैंने यहां बहुत कुछ सीखा है। अब मुझे आश्चर्य होता है जब कोई कहता है कि भारत में असहिष्णुता बढ़ रही है।’ भीड़ में कुछ हैं जिन्होंने फ्रॉले को पढ़ा है। वे खुश हैं और उनसे बात करना चाहते हैं। फ्रॉले भारत की संसकृति, रहन-सहन, पुराणों, देवी-देवताओं पर खुल कर बात कर रहे हैं।

 

कैमरा की फ्लैश लाइट की चमक के बीच मालिनी अवस्थी, राजा बुंदेला और कई अन्य हस्तियां जगह बनाती हुई राष्ट्रपति भवन की ओर बढ़ रही हैं। मधु किश्वर कहती हैं, ‘मैंने जितना प्रधानमंत्री के कामकाज पर कहा उतना किसी ने नहीं कहा। अब क्या चंद मुट्ठी भर लोग हमें बताएंगे कि सहिष्णुता क्या होती है। मैं यहां देश के लिए आई हूं। इन लोगों को आदत छूट गई है कि कोई इनकी बात का जवाब दे। इन लोगों की हर बात निर्णय है। यह हमारे अस्तित्व की भी लड़ाई है। आखिर क्यों देश के बाहर जो लोग इनके गैंग में नहीं है उन्हें फासिस्ट समझा जाए। जो इनके साथ नहीं है वह खलनायक हो गया है।’

 

नरेन्द्र कोहली की भी चिंता इसी के आसपास है। वह कहते हैं, ‘अब तक उन लोगों ने लेखकों को अपने लिए इस्तेमाल किया। आखिर लेखक इसलिए तो नहीं होते न।’ कुछ हैं जो वहां कह रहे हैं, आज का सबसे बड़ा फैशनेबल शब्द, ‘असिष्णुता’ है। कलाकार वासुदेव कामत कहते हैं, अगर विचारधारा का स्वागत है तो फिर विचारों के लिए किसी को प्रताड़ित क्यों किया जाना चाहए। 

 

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