पिछले महीने सीबीएसई के साथ-साथ 32 अन्य माध्यमिक शिक्षा बोर्ड मॉडरेशन नीति समाप्त करने पर सहमत हुए थे। इस नीति के तहत कठिन या त्रुटिपूर्ण सवालों के लिए परीक्षार्थियों को अतिरिक्त अंक देने की व्यवस्था है। लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट ने मॉडरेशन नीति खत्म करने पर रोक लगा दी है। अब दिक्कत यह है कि राजस्थान, कर्नाटक, पंजाब और मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों के बोर्ड 12वीं के परिणाम जारी कर चुके हैं।
कुछ राज्यों में मॉडरेशन नीति लागू रहे और कुछ राज्यों में नहीं, इससे परीक्षार्थियों के अंकों के बीच विसंगति पैदा हो जाएगी। इसका असर दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों की प्रवेश प्रक्रिया पर भी पड़ सकता है, जहां दाखिले 12वीं के अंकों की मेरिट के आधार पर होते हैं। सीबीएसई की ओर से अधिकतम 15 फीसदी ग्रेस अंक दिए जाते थे। कई बोर्ड अपने रिजल्ट प्रतिशत को बेहतर दिखाने के लिए भी ग्रेस मार्क्स देते हैं।
नेशनल प्रोग्रेसिव स्कूल्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष अशोक पांडे का कहना है कि अगर सीबीएसई मॉडरेशन को लागू करने का फैसला करता है तो इसका असर कट ऑफ और बाकी बोर्ड के छात्रों पर पड़ेगा। राजस्थान बोर्ड के अध्यक्ष बीएल चौधरी का कहना है कि उनके बोर्ड ने कभी मॉडरेशन नीति का पालन नहीं किया था, इसलिए सीबीएसई के फैसले का उनके छात्रों पर असर नहीं पड़ेगा। यूपी बोर्ड का कहना है कि इस मामले में वह सीबीएसई के फैसले का पालन करेगा। यूपी में अभी 12वीं का रिजल्ट घोषित नहीं हुआ है।
क्या है मामला?
दिल्ली हाईकोर्ट ने गत सोमवार को सीबीएसई की मॉडरेशन नीति को खत्म करने के फैसले पर रोक लगा दी थी। तभी से सीबीएसई के कक्षा 10 और 12 के रिजल्ट में देरी की आशंका पैदा हो गई है। हालांकि, केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने भरोसा दिलाया है कि सीबीएसई का 12वीं क्लास का रिजल्ट समय पर ही घोषित किया जाएगा। छात्रों को आश्वासन देते हुए उन्होंने कहा है कि 2017 में परीक्षा देने वाले किसी भी छात्र के साथ कोई अन्याय नहीं होगा।
इस बीच संकेत मिले हैं कि दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सीबीएसई सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। सीबीएसई के परिणाम में देरी की वजह से छात्रों के साथ-साथ अभिभावक भी चिंतित हैं। क्योंकि डीयू समेत के कई शिक्षण संस्थानों में प्रवेश प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।