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यूपी-तमिलनाडु की पत्थर खदानें नहीं करतीं सुरक्षा दिशानिर्देशों का पालन, बाल श्रम प्रमुख समस्या

राष्ट्रीय ग्रामीण विकास और पंचायती राज संस्थान (एनआईआरडीपीआर) का कहना है कि तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश...
यूपी-तमिलनाडु की पत्थर खदानें नहीं करतीं सुरक्षा दिशानिर्देशों का पालन, बाल श्रम प्रमुख समस्या

राष्ट्रीय ग्रामीण विकास और पंचायती राज संस्थान (एनआईआरडीपीआर) का कहना है कि तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश की अधिकतर पत्थर खदानों में श्रमिकों के लिए किसी सुरक्षा दिशानिर्देश का पालन नहीं किया जाता। अपने अध्यययन में संस्थान ने पाया कि इन राज्यों के पत्थर खदानों में बाल श्रम का भी प्रसार है। इसके अलावा यहां काम करने वाले श्रमिकों में विभिन्न स्वास्थ्य संबंधी खतरों का भी पता चला है जो खराब कामकाजी परिस्थितियों के कारण इसका सामना करते हैं।

हाल ही में एनआईआरडीपीआर ने तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में अंतरराज्यीय प्रवासी आबादी की कामकाजी परिस्थितियों और सामाजिक-आर्थिक स्थिति का विश्लेषण करने के लिए एक अध्ययन किया है। अध्ययन लोगों की मूवमेंट की गतिशीलता, स्थानीय के साथ-साथ राष्ट्रीय विकास में उनके योगदान पर प्रकाश डालता है। अध्ययन हाल ही में नेशनल जर्नल ऑफ लेबर एंड इंडस्ट्रियल लॉ में प्रकाशित हुआ है।

अध्ययन के अनुसार, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक से गरीब और अकुशल लोग तमिलनाडु जाते हैं, जबकि उत्तर प्रदेश बिहार, झारखंड और उत्तराखंड के गरीब प्रवासियों को आकर्षित करता है। मौसमी प्रवासी मजदूर तमिलनाडु में ग्रेनाइट खदानों में कार्यबल का एक महत्वपूर्ण घटक है और ज्यादातर निचले स्तर के कार्यों को करने के लिए कार्यरत हैं जो अत्यधिक जोखिम वाले हैं। पत्थर खदान के काम में लगे अधिकांश श्रमिक पिछड़ी जातियों और अनुसूचित जातियों से हैं। तमिलनाडु में इनकी संख्या 77.3% है।  हालांकि राज्य के स्वामित्व वाली कंपनियों द्वारा संचालित खदानों में श्रम की स्थिति थोड़ी बेहतर है।

विभिन्न स्वास्थ्य संबंधी खतरों से करते हैं सामना

अध्ययन में पाए गए प्रमुख मुद्दों में से एक पत्थर खदानों में बाल श्रम का प्रसार था। इसके अलावा, अध्ययन में विभिन्न स्वास्थ्य संबंधी खतरों का भी पता चला है जो इन लोगों को खराब जीवन और कामकाजी परिस्थितियों के कारण सामना करना पड़ता है। प्रवासी मजदूर विभिन्न श्वसन रोगों जैसे तपेदिक, ब्रोंकाइटिस और अस्थमा के शिकार हो जाते हैं। पौष्टिक भोजन की कमी के कारण महिलाएं और बच्चे मलेरिया और एनीमिया से पीड़ित हैं।

नहीं दिए जाते सुरक्षा उपकरण

तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में खदानों में किए गए दौरे के दौरान एनआईआरडीपीआर ने पाया कि अधिकांश खदानें किसी सुरक्षा दिशानिर्देश का पालन नहीं कर रही थीं। श्रमिकों को बिना किसी व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) के काम करते देखा गया। कई श्रमिकों ने दावा किया कि उन्हें किसी भी तरह के सुरक्षा उपकरण प्रदान नहीं किए गए हैं। बच्चों को अपने नंगे हाथों से हथौड़ों से काम करते देखा गया।

सरकारी सेवाओं के लाभ मिलने में कठिनाई

प्रवासियों को अक्सर आवश्यक सरकारी सेवाओं को प्राप्त करने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जिसमें अच्छी शिक्षा, बुनियादी सुविधाएं और बहुत कुछ शामिल हैं। जब महिलाओं की बात आती है, तो स्थिति और भी कठिन है। अपशिष्ट पत्थर प्रसंस्करण के काम में महिला श्रमिकों की प्रति दिन की मजदूरी आय 150 से 200 रुपये के बीच है जो आठ से नौ घंटे के काम के लिए अलग-अलग होती है। जबकि ये मजदूरी भी ग्रेनाइट खदानों में अकुशल श्रमिकों के लिए निर्धारित कानूनी न्यूनतम मजदूरी दरों से कम है।

सुरक्षात्मक और कल्याणकारी उपायों को लागू करने लिए पहल की जरूरत

अध्ययन के महत्वपूर्ण निष्कर्षों पर बोलते हुए  पेपर के सह-लेखक और सेंटर फॉर डिसेन्ट्रलाइज्ड प्लानिंग एनआईआरडीपीआर में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ चिन्नादुरई ने कहा, “किसी भी कार्य स्थल पर कोई भी श्रमिक संगठन पंजीकृत नहीं था। लेकिन अंतरराज्यीय खदान श्रमिकों के लिए कल्याण और कानूनी सहायता के लिए गैर सरकारी संगठन काम कर रहे हैं। भारत के संविधान के तहत श्रम से संबंधित विभिन्न कानूनों के अधिकारों और प्रावधानों के बारे में जागरूकता पैदा करना, कार्य स्थितियों की बेहतरी के लिए सुरक्षात्मक और कल्याणकारी उपायों को लागू करने के लिए पर्याप्त पहल करना समय की आवश्यकता है। ”

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