प्रिय श्रीमती बच्चन,
आप संसद में खड़े होकर कहती हैं कि बलात्कार जैसे जघन्य अपराध करने वालों की एक मात्र सजा ‘पब्लिक लिंचिंग’ है और यही ऐसे अपराधों की पुनरावृत्ति को रोकेगी। एक और सांसद टीएमसी की मिमी चक्रवर्ती ने भी जब कहा, ‘तत्काल न्याय की जरूरत है’ तो यह जैसे आपकी ही आवाज की प्रतिध्वनि थी।
अब आप संतुष्ट होंगी, दोषियों को मार दिया गया है। भले ही यह ‘पब्लिक लिंचिंग’ न हो लेकिन उसी से मिलता-जुलता, ‘पुलिस एनकाउंटर’ है। जहां अपराधियों का एनकाउंटर हुआ वहां जनता ने पुलिस वालों पर फूल बरसाए, यह दृश्य देख कर यकीनन आपकी आत्मा को शांति मिली होगी। लेकिन क्या इससे बलात्कार होना रुक जाएगा? इससे क्या रोज होने वाला वह भेदभाव रुक जाएगा, जिसका सामना महिलाएं करती हैं? क्या तेलंगाना पुलिस का यह कृत्य “संभावित बलात्कारियों” के मन में इतना भय पैदा कर देगा कि वे महिलाओं पर हमला करने से पहले दो बार सोचेंगे?
जब हमने तेलंगाना की 27 साल की पशु चिकित्सक के साथ हुए बलात्कार और हत्या के बारे में सुना था तो हमें भी उतना ही झटका लगा था। हम सब चाहते थे कि जल्द से जल्द न्याय हो। हम सब चाहते थे कि दोषियों को सबक सिखाया जाए। लेकिन इसका हल एनकाउंटर नहीं है। पब्लिक लिंचिंग उस सोच का समाधान नहीं है जो अब भी महिलाओं को अपनी संपत्ति समझता है। भारत में पुलिस एनकाउंटर कोई नई बात नहीं है, जहां भीड़ के न्याय ने जनता और यहां तक कि सत्ता में रहने वालों की भी मंजूरी हासिल कर ली है। आपके दावे को पुष्ट करने का कोई अनुभवजन्य साक्ष्य नहीं है कि पब्लिक लिंचिंग से समाज में किसी भी प्रकार के अपराध को कम किया जा सकता है। क्या पुलिस तय करती है कि कोई दोषी है या नहीं? जघन्य अपराधों के मामले में क्या न्यायिक व्यवस्था को क्या इसलिए पूरी तरह से दरकिनार किया जाना चाहिए क्योंकि प्रक्रिया में लंबा समय लगता है? कल को पुलिस यह तय कर ले कि इस तरह का न्याय कम जघन्य अपराधों के लिए भी तेजी से काम करेगा।
भारत शुक्रवार की सुबह इस खबर के साथ जागा कि तेलंगाना बलात्कार और हत्या मामले में सभी चारों ‘आरोपी’ मुठभेड़ में मारे गए। साइबराबाद के पुलिस कमिश्नर वी. सी. सज्जनर ने बताया कि “अपराधी सुबह 3-6 बजे के बीच गोलीबारी में मारे गए। उन्होंने पुलिस टीम पर गोलीबारी की और हमने आत्मरक्षा में जवाबी कार्रवाई की। हमारे दो लोग भी घटना में घायल हुए हैं।”
किसी को भी इस बात पर आश्चर्य हो सकता है कि यह सब सामने कैसे आया। क्या उन सभी ने पुलिस से हथियार छीनने की कोशिश होगी? क्या अभियुक्तों के हाथ बंधे हुए नहीं थे? क्या वे सभी भागने की अच्छी योजना बना कर आए थे और पुलिस के पास उन्हें मारने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था? क्या उन्हें पैर में गोली नहीं मारी जा सकती थी?
भावनाओं से भरे और ‘तत्काल सजा के आग्रही’ संविधान की उस किताब से मुंह नहीं मोड़ सकते जो हर इंसान के अधिकार की रक्षा करती है। शुक्रवार तड़के तेलंगाना पुलिस ने जो कुछ किया, वह अतिरिक्त न्यायिक हत्याओं के अलावा कुछ भी नहीं है जिसके लिए, विभिन्न राज्यों की पुलिस पहले से कुख्यात रही है। आरोपी अदालत द्वारा अभी तक दोषी साबित नहीं हुए थे।
बीजेपी सांसद राज्यवर्धन राठौर ने बिना समय गंवाए हैदराबाद पुलिस को बधाई दी। राठौर ने ट्विट किया, “मैं हैदराबाद पुलिस और नेतृत्व को बधाई देता हूं जिसने पुलिस को पुलिस की तरह काम करने की अनुमति दी। सभी जानते हैं कि यह वह देश है जहां जहां अच्छाई हमेशा बुराई पर हावी रहेगी।"
उनके ट्विट में उन लोगों के लिए डिस्क्लेमर है, जो एनकाउंटर पर सवाल उठा रहे हैं। यह रवैया और भी नुकसान पहुंचाता है क्योंकि वे भी ऐसे सांसदों की सूची में शामिल हो गए हैं जो 21वीं सदी में ऐसे न्याय को ठीक मानते हैं। ऐसे समय में जब लिंचिंग सामान्य होती जा रही है और अपराधियों को मालाएं पहनाई जा रही हैं, सांसदों द्वारा इसे सही मान लेना खतरनाक मिसाल कायम करता है।
और हम सब भी जो मीडिया में हैं, यदि ऐसे भयावह अपराधों की शिकार महिलाओं के परिवारों का पीछा करना छोड़ दें तो यह भी देश के लिए बड़ा काम होगा और हम राष्ट्र के लिए महान न्याय करेंगे। जैसे ही एनकाउंटर हुआ वैसे ही रिपोर्टर तेलंगाना पशु चिकित्सक के पिता और 2012 में चलती बस में गैंग रेप की शिकार हुई निर्भया की मां के पास उनका मत लेने पहुंच गए। वे संतुष्ट थे। उन्होंने कहा, “अब मेरी बेटी की आत्मा को शांति मिली होगी।” उनकी भावनाओं को समझना मुश्किल नहीं है क्योंकि वे इससे गुजर चुके हैं।
लेकिन तेलंगाना में आज जो कुछ हुआ है, वह एक भयानक उदाहरण है और कानूनविदों द्वारा इसकी मंजूरी से पुलिस को केवल यह विश्वास होगा कि वे भी लोगों की भावनाओं और आक्रोश से खेलते हुए बच सकते हैं। पुलिस ने कार्रवाई कर दी। अब तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की बारी है।