इसमें कोई शक नहीं कि हाल के वर्षों में प्राकृतिक विपदा के कारण महाराष्ट्र के कुछ इलाकों में किसानों के एक बड़े वर्ग को आर्थिक समस्याओं से जूझना पड़ा। दूसरी तरफ केंद्र या राज्य सरकारों के प्रयासों से हुई आर्थिक प्रगति का लाभ अब तक सब लोगों तक नहीं पहुंचा। लेकिन बिहार-उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों से महाराष्ट्र में सामान्य लोगों का जीवन स्तर बेहतर है। लेकिन विश्वनाथ प्रताप सिंह के सत्ताकाल में राजनीतिक हित के लिए शुरू हुआ आरक्षण की मांग का मुद्दा विभिन्न राज्यों में आज भी नए ढंग से उछलता रहता है। राजस्थान-हरियाणा में तो जाट आरक्षण पर हिंसक आंदोलन हुए हैं। राज्य सरकारों ने दबाव में मांगें स्वीकार कीं लेकिन संवैधानिक सीमाओं और अदालती हस्तक्षेप से सरकारी फैसले भी अटकते रहे।
विडंबना यह है कि सरकारों के पास न तो अधिक नौकरियां हैं औ न ही खजाने में रोजगार के लिए विपुल धनराशि। इसलिए जो संगठन आरक्षण की मांग उठाते हैं, वे समुदाय विशेष के युवाओं को भ्रमित करते हैं। फिर 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण व्यवस्था के लिए संसद में संविधान संशोधन विधेयक लाना होगा। अभी तो महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने की व्यावहारिक मांग पर दो तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित नहीं हो सकता। जी एस टी विधेयक कितनी जद्दोजहद के बाद पारित हो सका। ऐसी स्थिति में महाराष्ट्र की कानून-व्यवस्था बिगाड़ने के लिए मराठा आरक्षण आंदोलन चलाना कितना उचित होगा। सेना के मराठा रेजीमेंट पर गौरव के साथ गरबा के उत्सव में संपूर्ण समाज को जोड़ने के लिए अभियान चलाने से संपूर्ण महाराष्ट्र का भला होगा।