साल के अंत में हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इसको लेकर राज्य में तैयारियां भी शुरू हो चुकी हैं। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने ऐलान किया है कि वह अपने बेटे विक्रमादित्य सिंह के लिए अपनी विधानसभा सीट छोड़ेंगे। इसे भी कांग्रेस के एक और वंशवाद की तरह देखा जा सकता है। वीरभद्र सिंह आजकल एक परिवार के लिए एक टिकट की भी वकालत कर रहे हैं।
मंगलवार को पीटरहॉफ में शिमला ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र कांग्रेस पार्टी महासम्मेलन हुआ, जिसमें कार्यकर्ताओं ने विक्रमादित्य को इस सीट से चुनाव लड़ाने का प्रस्ताव पारित किया। वीरभद्र सिंह नई पीढ़ी को बागडोर देना चाहते हैं लेकिन खुद की भूमिका पर उन्होंने ज्यादा बात नहीं की।
इस सम्मेलन में बोलते हुए वीरभद्र सिंह भावुक हो गए। उन्होंने कहा, 'युवाओं में जोश के साथ होश भी है। एक वक्त आता है जब आदमी को आराम करना चाहिए। मैं समझता हूं कि नौजवानों को आगे आना चाहिए। मुझे खुशी है कि कि शिमला ग्रामीण में मुझे काम करने का मौका मिला। मेरा और शिमला ग्रामीण की जनता का अटूट संबंध है।' हालांकि वीरभद्र खुद कहां से चुनाव लड़ेंगे, ये सवाल पूछे जाने पर उन्होंने कहा, 'मेरे पास कई विकल्प हैं।'
पिता के साथ विक्रमादित्य सिंह, फाइल फोटो
विक्रमादित्य सिंह का बैकग्राउंड
पहला परिचय तो विक्रमादित्य सिंह का यही है कि वह वीरभद्र सिंह के बेटे हैं। इसके बाद वह हिमाचल प्रदेश यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष हैं। 1989 में पैदा हुए विक्रमादित्य ने शिमला के बिशप स्कूल से पढ़ाई की है। साथ ही उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के हंसराज कॉलेज से इतिहास में बीए ऑनर्स और सेंट स्टीफेंस से लॉ की पढ़ाई की है।
उनका एक एनजीओ है- हिमाचल प्रदेश स्पोर्ट्स कल्चर एंड एनवायर्नमेंट एसोसिएशन (HPSCEA)। इसके तहत वो वॉलीबाल और क्रिकेट टूर्नामेंट आयोजित करवाते रहे हैं। इसके अलावा पर्यावरण और जल संरक्षण जैसे मुद्दे भी वह इस एनजीओ की तरफ से उठाते हैं।
विक्रमादित्य सिंह, फाइल फोटो
नवंबर 2011 में उन्होंने हिमाचल यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा। उन्होंने अपने पिता के प्रतिद्वंदी जीएस बाली के बेटे रघुबीर सिंह को हराया लेकिन इस चुनाव को अमान्य घोषित कर दिया गया। उन पर आचार संहिता के उल्लंघन का आरोप लगा और उनकी दावेदारी को खारिज कर दिया गया।
विक्रमादित्य खेलों में शूटिंग में रुचि रखते हैं। उन्होंने नेशनल लेवल पर राज्य का प्रतिनिधित्व किया है और 2007 में बेहद कम उम्र में ट्रैप शूटिंग कंपीटिशन में कांस्य पदक भी जीता।
2012 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने पिता के लिए चुनाव अभियान चलाया। माना जा रहा है कि इस बार विक्रमादित्य की शिमला ग्रामीण से लांचिंग पहले से तय थी। इस पर पिछले करीब दो सालों से काम चल रहा था। कांग्रेस के लिहाज से यह सुरक्षित सीट भी है। विक्रमादित्य इस सीट पर लम्बे समय से नजर भी आते रहे हैं और काफी सक्रिय रहे हैं।
हिमाचल की राजनीति में भविष्य में उन्हें भाजपा नेता और हमीरपुर से सांसद अनुराग ठाकुर के सामने देखा जा सकता है। अनुराग ठाकुर हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के बेटे हैं और प्रदेश में उनकी राजनीतिक विरासत अनुराग ठाकुर के कंधों पर होगी। इस लिहाज से आगे चलकर विक्रमादित्य सिंह और अनुराग ठाकुर को हिमाचल की राजनीति के दो बड़े चेहरों में गिना जा सकता है।
अनुराग ठाकुर
विक्रमादित्य ने कहा, ‘टिकट किसे देना है, किसे नहीं यह पार्टी आलाकमान तय करेगी लेकिन शिमला ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र की हर रिपोर्ट मेरे पास है। पहले लोग कहते थे कि वीरभद्र अगर चुनाव लड़ते हैं तो उन्हें आने की भी जरूरत नहीं और दूसरा कोई प्रत्याशी होता है तो विचार करेंगे।‘
वीरभद्र सिंह क्या संकेत दे रहे हैं?
वीरभद्र छह बार हिमाचल प्रदेश के सीएम रह चुके हैं। अगर वह चुनाव लड़ते हैं तो उनकी सीट कौन सी रहेगी इसकी अटकलें लगाई जा रही हैं। चर्चा है कि वे अर्की विधानसभा क्षेत्र को चुन सकते हैं क्योंकि पिछले एक साल से उनका ज्यादा ध्यान वहां पर रहा है। इसके अलावा चौपाल विधानसभा क्षेत्र और शिमला शहरी सीट हैं। वैसे उनके चुनाव लड़ने पर भी असमंजस है क्योंकि वे कई मौकों पर बोल चुके हैं कि चुनाव नहीं लड़ेंगे। उन्होंने यहां भी मंच से कहा कि एक उम्र में आराम करना चाहिए। लेकिन उन्होंने यह भी कहा है कि उनके पास कई विकल्प है। यानी अभी वीरभद्र क्या संकेत देना चाह रहे हैं, इस पर कुछ कहना जल्दबाजी होगी।
शिमला ग्रामीण सीट
शिमला ग्रामीण सीट में कुल 68,326 मतदाता हैं। 2012 में यहां 40423 वोट पड़े जिनमें वीरभद्र सिंह को 28892 वोट मिले और उनके प्रतिद्वंदी ईश्वर रोहाल को 8892 वोट मिले यानी जीत का अंतर 20,000 वोटों का है। देखना ये है कि शिमला ग्रामीण सीट पर वीरभद्र के बेटे विक्रमादित्य क्या कमाल दिखाते हैं।