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भ्रम फैलाने वालों को सजा

सावधान स्टार हों या नामी खिलाड़ी। कानून का प्रारूप बन गया है। संसद से औपचारिक स्वीकृति के बाद भारी जुर्माना होना तय है। जेल की सजा का प्रस्ताव फिलहाल लटका हुआ है। कारण है- करोड़ों लोगों के दिल-दिमाग को लुभाने वाले कलाकार या खिलाड़ी भ्रामक विज्ञापनों का चेहरा बनकर मार्केटिंग में शामिल होंगे, तो नए कानून के तहत 50 लाख रुपये का जुर्माना लगेगा और फिर भी ‘अपराध’ जारी रखने पर आजीवन किसी विज्ञापन में नहीं दिखने की सजा दे दी जाएगी।
भ्रम फैलाने वालों को सजा

सरकार और संसदीय समिति ने एक नए उपभोक्ता सुरक्षा कानून में भ्रामक विज्ञापनों से लाखों-करोड़ों लोगों को ठगे जाने की प्रवृत्ति के खिलाफ इस कानून का विधेयक संसद में रख दिया है। संसद के अगले किसी सत्र में पारित होने पर ऐसा कड़ा कानून लागू हो जाएगा। नामी फिल्मी सितारे किसी उपभोक्ता वस्तु के प्रचार-प्रसार की कुछ सेकेंड के विज्ञापन की एक दिन की शूटिंग में ढाई से सात करोड़ रुपया तक ले रहे हैं। भारत रत्न से विभूषित क्रिकेट सम्राट भी उपभोक्ता वस्तुओं की मार्केटिंग में नाम और चेहरा देने का करोड़ो रुपया ले रहे हैं। सरकार या संसद को नहीं संपूर्ण समाज को भ्रामक विज्ञापनों से नुकसान होता है। इसलिए उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने यह विधेयक तैयार किया है। खाने का सामान तो फिर भी सस्ता है, महंगे मकान या मोटरगाड़ी के विज्ञापनों में अतिशयोक्ति से देर-सबेर खरीदार ठगा सा महसूस करता है। इस ठगी से बचाने का रास्ता कानून ही हो सकता है। संसदीय समिति ने तो नायक के बदले उपभोक्ताओं के खलनायक बनने पर पांच साल की जेल की सजा की सिफारिश कर दी थी। संभव है, नरम कानून का उल्लंघन करने पर जेल जैसा संशोधन भी हो जाए। लेकिन जहां तक झूठे प्रचार-प्रसार की बात है, किसी मीडिया संस्‍थान या मीडिया कर्मी प्रिंट-टी.वी., डिजिटल इत्यादि द्वारा भ्रामक सूचनाएं फैलाए जाने पर भी कड़े दंड के प्रावधान पर विचार किया जाना चाहिए। यूं नेताओं को झूठे वायदों और भ्रामक नारों पर मतदाता बाद में चुनाव के वक्त हरवाकर सजा दे सकता है। लेकिन भारत देश में मतदाता दुबारा धोखा भी खा जाते हैं। इसलिए देर-सबेर सुप्रीम कोर्ट को ही सामान्य भोली-भाली जनता का भ्रामक प्रचार वाले नेताओं को दंडित करने का कोई रास्ता खोजना होगा।

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