हैदराबाद यूनिवर्सिटी के छात्र रोहित वेमुला के आत्महत्या मामले की एक जांच रिपोर्ट मंगलवार को सामने आई है। इस रिपोर्ट का दावा है कि रोहित वेमुला ने यूनिवर्सिटी प्रशासन से तंग आकर अपनी जान नहीं दी थी, बल्कि उसकी आत्महत्या का कारण उसकी निजी परेशानियां थीं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि रोहित वेमुला दलित नहीं था।
मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा गठित इस न्यायिक पैनल की अध्यक्षता कर रहे इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश अशोक कुमार रूपनवाल ने कहा, 'रोहित वेमुला ने अपने सुसाइड नोट में निजी कारणों से परेशान होने की बात कही है। साथ ही वह अपनी जिंदगी से नाखुश भी था। उसने किसी को भी अपनी मौत के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया है।'
बता दें कि रोहित की आत्महत्या के मामले में राजनीतिक उठा-पटक काफी तेज हो गई थी। इस मामले में तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी और बीजेपी नेता बंडारू दत्तात्रेय का भी जिक्र हुआ और बताया गया कि इन भाजपा नेताओं के दबाव में आकर यूनिवर्सिटी प्रशासन ने रोहित के खिलाफ कार्रवाई की थी लेकिन रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर रोहित यूनिवर्सिटी की कार्रवाई से परेशान होता तो उसका जिक्र अपने सुसाइड नोट में जरूर करता। साथ ही रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि रोहित की आत्महत्या से स्मृति ईरानी और बंडारू दत्तात्रेय का कोई लेना-देना नहीं है।
रोहित वेमुला ने 17 जनवरी 2016 को हॉस्टल के कमरे में सुसाइड कर लिया था। इससे पहले रोहित पर एबीवीपी के छात्र नेता को पीटने का आरोप भी लगा था। इसके बाद रोहित को उसके पांच साथियों के साथ कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया था। निष्कासित छात्रों को कॉलेज में रुकने की इजाजत नहीं थी, लेकिन उन्हें लेक्चर और रिसर्च करने की पूरी छूट थी। सुसाइड के बाद प्रदर्शन कर रहे संगठनों की तरफ से इन छात्रों को लगातार दलित बताया जा रहा था। हालांकि आयोग की जारी रिपोर्ट में रोहित के दलित होने की बात को भी नकार दिया गया है।