सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए नौकरी और शिक्षण संस्थानों में 10 फीसदी आरक्षण देने के केंद्र सरकार के फैसले की सुप्रीम कोर्ट समीक्षा करेगा। हालांकि शीर्ष अदालत ने सरकार के इस फैसले पर फिलहाल स्टे नहीं लगाया है।
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने आर्थिक आरक्षण पर रोक के लिए दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए शुक्रवार को केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया। केंद्र सरकार को चार सप्ताह में इस मामले में अपना पक्ष अदालत के सामने रखना होगा।
जनहित अभियान और यूथ फॉर इक्वेलिटी जैसे संगठनों ने सरकार के इस फैसले को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है। याचिका में कहा गया है कि आरक्षण के लिए अधिकतम सीमा 50 फीसदी तय की गई है जिसका उल्लंघन किया गया है। इस संबंध में तहसीन पूनावाला की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद-16 में सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण देने की बात है। केंद्र सरकार ने संविधान में संशोधन कर उसमें आर्थिक आधार भी जोड़ा है, जबकि आर्थिक आधार पर आरक्षण का प्रावधान संविधान में नहीं है।
आर्थिक आरक्षण क्यों?
माना जा रहा है कि रोजगार के मोर्चे पर बुरी तरह फंसी केंद्र सरकार ने आम चुनावों से पहले सामान्य वर्ग के लोगों को रिझाने के लिए आर्थिक आरक्षण का दांव चला है। यही कारण है कि विपक्षी पार्टियां इसे मोदी सरकार का एक और जुमला बता रही हैं। लेकिन संसद में कुछ गिनती के अपवादों को छोड़कर किसी भी राजनैतिक पार्टी ने इसका विरोध नहीं किया। द्रविड़ मुनेत्र कझगम (द्रमुक) ने जरूर यह कहा है कि वह इसकी संवैधानिकता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी।
किनको फायदा
सरकार ने 10 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था सामान्य वर्ग के उन लोगों के लिए की है, जिनकी सालाना आय आठ लाख रुपये से कम और कृषि योग्य भूमि पांच एकड़ से कम है। यह भी प्रावधान किया गया है कि घर 1,000 वर्गफुट जमीन से कम में होना चाहिए, निगम में आवासीय प्लॉट 109 वर्गगज से कम होना चाहिए और निगम से बाहर के प्लॉट 209 वर्गगज से कम होने चाहिए। लेकिन इस आधार में भी कई खामियां हैं। बताया जा रहा है कि गरीब सवर्णों के लिए 10 फीसदी आरक्षण मौजूदा 50 फीसदी की सीमा से अलग होगा, लेकिन ऐसे में सवाल उठता है कि क्या संविधान में ऐसा बदलाव किया जा सकता है, जबकि समानता संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है। सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि संविधान की मूल संरचना से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है।