केंद्र की विशेष याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के 25 मई के आदेश में पैरा 66 में एसीबी के अधिकार क्षेत्र संबंधी आदेश को गैरजरूरी बताया है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि हाईकोर्ट इस मामले पर अलग से फैसला दे सकता है। जस्टिस एके सिकरी और यूयू ललित की बैंच ने कहा है कि हाईकोर्ट अपने 25 मई के फैसले की विवादित टिप्पणियों से प्रभावित हुए बिना केंद्र सरकार की अधिसूचना पर स्वतंत्र तरीके से निर्णय ले सकता है।
दिल्ली के अफसरों की नियुक्ति व तबादलों के मामले में उपराज्यपाल को पूरी शक्तियां को देने वाली केंद्र की इस अधिसूचना को दिल्ली हाईकोर्ट ने संदिग्ध करार दिया था। जिसके खिलाफ केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। दरअसल, यह पूरा मामला एसीबी द्वारा भ्रष्टाचार के मामले में दिल्ली पुलिस के एक सिपाही की गिरफ्तारी से शुरू हुआ था। सिपाही की जमानत पर फैसला सुनाते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र की 21 मई की अधिसूचना को संदिग्ध बताते हुए टिप्पणी की थी। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि केंद्र की 21 मई की अधिसूचना को संदिग्ध करार देने वाली हाईकोई की टिप्पणियों पर फिलहाल कोई रोक नहीं है। दिल्ली सरकार का जवाब मिलने के बाद इस गौर किया जाएगा।
दिल्ली के प्रशासन पर नियंत्रण के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की बैंच ने कहा, यह फैसला दिल्ली सरकार को करना है कि इस मामले का फैसला वह हाईकोर्ट से कराना चाहती है या फिर सुप्रीम कोर्ट से। क्योंकि दोनों मुद्दे केंद्र की अधिसूचना से जुड़े हैं। बैंच ने यह भी सुझाव दिया कि ये मामले हाईकोर्ट से शीर्ष न्यायालय में स्थानांतरित कर दिए जाएं। जिससे एक बार ही फैसला हो जाए। उधर, सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपनी याचिका में केंद्र ने कहा है कि हाईकोर्ट की गई टिप्पणियों ने अनिश्चितता पैदा कर दी है। इससे राष्टीय राजधानी में रोजमर्रा का प्रशासन मुश्किल हो गया है। केंद्र ने कहा है कि दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच के समीकरण में संतुलन लाने के लिए संविधान के अनुच्छेद 239 एए की स्पष्ट व्याख्या की जरूरत है।
उल्लेखनीय है कि दिल्ली सरकार भी केंद्र की अधिसूचना के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिका दायर कर चुकी है। इस प्रकार दिल्ली के प्रशासनिक नियंत्रण की जंग अब सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट तक पहुंच गई है। दोनों अदालतों में इस मुद्दे पर सुनवाई चल रही है और अंतिम निर्णय होना अभी बाकी है।