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धारा 377 के खिलाफ लामबंद होंगे लैंगिक अल्पसंख्यक

धारा 377 पर संसद में चर्चा तक नहीं हो सकी। भाजपा सांसदों ने विधेयक टेबल तक नहीं होने दिया। गौरतलब है कि गत दिवस लोकसभा में कांग्रेस नेता शशि थरूर ने धारा 377 संशोधन विधेयक पेश किया था। विधेयक को लोकसभा में हार का सामना करना पड़ा। इस विधेयक के खिलाफ 71 और पक्ष में कुल 24 वोट डले। इस दिन को लेस्बियन, गे, बाईसेक्सुअल एंड ट्रांसजेंडर (एलजीबीटी) समुदाय ने काला दिवस बताया।
धारा 377 के खिलाफ लामबंद होंगे लैंगिक अल्पसंख्यक

 

ट्रांसजेंडर समुदाय से निशा गुलूर का कहना है कि मौजूदा सरकार स्वदेशी का नारा देती है लेकिन असल में यह सरकार फिरंगी है। यह सरकार ऐसा कानून देश में बनाए रखना चाहती है जिसे फिरंगियों ने बनाया था। यह सरकार स्वच्छता अभियान, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ जैसे अभियान तो चला रही है लेकिन लैंगिक तौर पर अल्पसंख्यकों को साथ लेकर नहीं चल रही। गुलूर के अनुसार, ‘ हम लोग टैक्स देते हैं और मतदान भी करते हैं। छोटे-छोटे जिलों के लोगों को सभी ने मिलकर संसद में बिठाया है। विधेयक 377 पर चर्चा तक न होना बताता है कि हमारे नेताओं को न तो जानकारी है और न ताकत है कि वह लैंगिक मसले पर खुलकर बहस कर सकें।’

 

ट्रांसजेंडर अधिकारों पर काम करने वाली संस्था संगमा से राजेश उमादेवी का कहना है कि ट्रांसजेंडर और एलजीबीटी समुदाय की दिक्कत है कि धारा 377 की वजह से ये शिक्षा के अधिकार, स्वास्थ्य के अधिकार और रोजगार के अधिकार से वंचित हैं। बलात्कार संबंधी कानून में कहीं इनका जिक्र नहीं है। ये लोग बच्चा गोद नहीं सकते। इंश्योरेंस नहीं ले सकते। बैंक में खाता खोलने में दिक्कत आती है। सरकार की तमाम सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं उठा पाते। लेस्बियन समुदाय से शबनम का कहना है कि अगर एक भी आदमी अल्पसंख्यक है तो उसे अल्पसंख्यक होने के हक मिलने ही चाहिए जबकि एलजीबीटी और ट्रांसजेंडर लोगों की तादाद तो अब बहुत हो चुकी है और वे अब सामने भी आने लगे हैं। शबनम के अनुसार धारा 377 पर बहस तक न होना बताता है कि सरकार हमारे असितत्व तक को नकार रही है। गे समुदाय से यशमिंदर बताते हैं कि लैंगिक अल्पसंख्यक भारत में नई बात नहीं है। पुराने भारत में भी ऐसा था। गे, लेस्बियन और ट्रांसजेंडर भारत की पुरानी परंपरा का हिस्सा रहे हैं। इसलिए कोई भी अब इस समुदाय की अनदेखी नहीं कर सकता है। संगमा संस्था के प्रवक्ता का कहना है कि एलजीबीटी समुदाय अपने अधिकारों को लेकर अब आंदोलन तेज करेगा।    

 

क्या है धारा-377

आईपीसी की धारा 377 के तहत 2 लोग आपसी सहमति या असहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध बनाते हैं और दोषी करार दिए जाते हैं तो उन्हें 10 साल से लेकर उम्रकैद की सजा हो सकती है। यह अपराध संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है और यह गैर जमानती है।

 

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