- रिषभ
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बांध का उद्घाटन करने वाले थे। इससे पहले ही बांध टूट गया और बह गया। इनसे ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने जन्मदिन पर गुजरात में नर्मदा सागर बांध का उद्घाटन किया। कहा जा रहा है कि इससे सबको फायदा होगा।
इन सारी बातों में एक बात भुला दी गई है। 38 साल पहले गुजरात में एक बांध हादसा हुआ था जिसमें सरकारी आंकड़ों के मुताबिक एक हजार लोग मारे गये थे। विपक्ष के मुताबिक25 हजार लोग मरे थे। इसको 'एक्ट ऑफ गॉड' कहा गया था मतलब भगवान ने किया पर ऐसा नहीं था।
गुजरात के मोरबी में हुआ था हादसा
गुजरात में एक जगह है मोरबी। एक समय ये रियासत हुआ करती थी। माना जाता है कि एक वक्त यहां पर दूध दही की नदियां बहती थीं। यहां पर मुगल हों या अंग्रेज सबका शासन रहा। यहां के राजकुमार लखदीरजी ठाकुर ने बाद में यहां पावरहाउस और टेलीफोन एक्सचेंज भी बनवा दिया था। इंजीनियरिंग कॉलेज भी खोल दिया था। आजादी के बाद मोरबी में सेरामिक इंडस्ट्री और दीवाल घड़ियां बनाने के कारखाने खुल गये। ये एक इंडस्ट्रियलाइज्ड टाउन था। अभी इस जिले के उत्तर में कच्छ जिला है। पूर्व में सुरेंद्रनगर, दक्षिण में राजकोट और पश्चिम में जामनगर जिले हैं।
फोटो साभार- इंडिया टुडे
सुरेंद्रनगर, राजकोट और मोरबी से होते हुए माछू नदी बहती है। 1969 से 1972 तक लगातार 3 साल के काम के बाद माछू नदी पर माछू-2 बांध बना. माछू 1 पहले से था। मिट्टी, रबिश और कंक्रीट से बना था ये बांध। 12 हजार 7 सौ फीट लंबा और अधिकतम 60 फीट ऊंचाई का था। माछू 1 1959 में ही बन चुका था। ये वहां के महाराजा का सपना था।
12 अगस्त को मोरबी टाउन में पानी भरने लगा था। खूब बारिश हो रही थी। सबको लग रहा था कि ये नदी का पानी है। लोग घरों में सामान इकट्ठा कर रहे थे पर उनको ये पता नहीं था कि ये पानी माछू 2 बांध का है जो 11 अगस्त की शाम 3 बजे ही टूट चुका था। नदी के पानी का जायजा लिया जा सकता है, टूटे बांध के पानी का नहीं।
म्युनिसिपैलिटी प्रेसिडेंट का बेटा वापस नहीं लौटा
10 अगस्त की शाम को बारिश बहुत तेज हो रही थी। तब डैम पर नियुक्त इंजीनियर दोनों बांधों के बीच वांकानेर पहुंच गये थे, जहां से दोनों बांध को देखा जाता था। प्रशासन के मुताबिक सूचनाएं दी जाती रहीं कि बांध के गेट खोल दो। जब रात को पता चला कि पानी डेंजर लेवल से दो फीट नीचे रह गया है तब इंजीनियर खुद गये और गेट खोलने लगे पर बांध के गेट खोलने में वक्त लगता है। 15 गेट खोल चुकने के बाद जब वो 16वां खोल रहे थे तब तक जनरेटर बैठ गया। इंजीनियर और मिस्त्री लगातार प्रयास करने लगे इसको चलाने के लिए पर सुबह तक पानी डेंजर लेवल से 8 फीट ऊपर पहुंच गया था। ये लोग दौड़े दौड़े टाउन में गये। म्युनिसपैलिटी के प्रेसिडेंट रतिभाई देसाई से मिले। लोगों को माइक से बताया जाने लगा कि शहर खाली कर दो। पर लोगों ने ध्यान नहीं दिया। माछू 1 कुछ दिन पहले ही भरा और खाली भी हो गया था। तब भी ऐसे ही टाउन खाली कराया जा रहा था। जब इन लोगों ने ऊपर के स्तर पर प्रशासन को बताना चाहा तो पता चला कि टेलीफोन लाइन तो पहले ही ध्वस्त हो चुकी है। तब तक चारों ओर भयावह गति से बहता पानी दिखाई देने लगा।
हादसे की एक तस्वीर, फोटो साभार- इंडिया टुडे
रतिभाई अपने मोहल्ले की तरफ भागे। गली में घुसते-घुसते कमर तक पानी हो गया। छतों पर खड़े लोग चिल्लाने लगे। तभी उनके सामने एक छह साल का बच्चा बहता दिखाई दिया। उन्होंने उसे निकाल लिया। लेकर घर गये। कोशिश की खूब पर वो बच्चा मर गया। बाद में पता चला कि उनका 17 साल का लड़का संजय पहले ही निकल चुका है लोगों को बचाने के लिए। संजय नहीं लौटा। वो भी पानी से बचने के लिए एक पेशाबघर पर चढ़ा था और फिर धक्का आया और वो बह गया। रतिभाई फिर राहत काम में लग गये। मिनटों में पूरा शहर पागल हो रहे पानी से भर गया। बांध से एक किलोमीटर दूर का लीलापुर गांव खत्म हो गया। आज उसकी जगह पर न्यू लीलापुर गांव है।
19 अगस्त को गुजरात के तत्कालीन सीएम बाबूभाई पटेल ने मोरबी में ही सेक्रेटरिएट बैठा ली थी। वहीं जमे रहते थे। वहीं से सारा काम करते थे। जब पत्रकार पूछते कि बांध कैसे टूटा तो झल्ला जाते थे। कहते कि अभी जो कर रहे हैं वो देखो ना।
एक किताब से कई कमियां सामने आईं
2004 में सुनामी आई थी। गुजरात के ही उत्पल संदेसरा घर में बैठे थे। टीवी पर सुनामी की खबरें देखर उनकी मां रो रही थीं। मां ने बताया कि उन्होंने ऐसा ही कुछ मोरबी में देखा था। उत्पल अमेरिका में पढ़ते थे। वहीं के दोस्त टॉम वुटन से इस बारे में बात की। दोनों ने सोचा कि ये कैसे हो सकता है कि इतनी बड़ी घटना दफन हो गई। इसका जिक्र तक नहीं मिलता। दोनों ने इस पर काम करना शुरू किया। पहले उत्पल ने अपने जान पहचान वालों से बात की फिर बात करते करते 148 लोगों का इंटरव्यू ले लिया जिन्होंने इस आपदा को झेला था। फिर वो गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी तक पहुंच गये। सीएम ने अपने जमाने में खुद इस आपदा में काम किया था। सीएम ने उनको उस वक्त की सारी रिपोर्ट दे दी पढ़ने को। पता चला कि बांध बहुत बुरा बना था। डिजाइन तो खराब था ही, ऊपरी हिस्सा तो बिल्कुल डर्ट का बना था। दोनों लड़कों ने मिलकर इस घटना पर एक किताब लिख दी। No One Had A Tongue To Speak.
इस किताब में उस घटना से जुड़ी तमाम कहानियां हैं। बाढ़ के दौरान एक हत्यारोपी ने 30 लोगों को अकेले बचाया था। उस आदमी पर हत्या का इल्जाम था। उसे माफ कर दिया गया पर 25 साल बाद उसको सजा हो गई क्योंकि उसने फिर किसी की हत्या कर दी थी। खुद उत्पल के दादा दादी घर से बाहर जा रहे थे पर एक कोबरा दरवाजे पर बैठ गया तो वो नहीं जा पाये इसलिए बच गये। जेल से निकला एक आदमी 70 लोगों को बचा ले गया। इतना थक गया था कि अंत में जब एक बूढ़ी औरत को बचाने पहुंचा तो हिल नहीं पा रहा था। ताकत इतनी खत्म हो गई कि वो औरत उसके हाथों से बह गई और वो देखता रह गया।
इस घटना की सबसे खतरनाक याद है एक तस्वीर। जिसमें दीवार से चिपकी हुई एक आदमी की लाश है। ऐसा लगता है कि ये लाश दीवार को धकेल रही है। बांह मरोड़ दी गई है। कमर टेढ़ी है। त्रिभंगी अवस्था में जिसमें भगवान कृष्ण कालियनाग के फन पर नाच रहे हैं। एक जवान वकील किशोर दफ्तरी मेगाफोन लेकर लोगों को तरह तरह के रास्ते सुझा रहा था।
पर उस वक्त के विधायक गोकुलभाई परमार का कहना था कि 11 अगस्त तक तो कोई गेट नहीं खुला था। खुला होता तो पानी बह गया होता। ये घटना नहीं हुई होती।
माछू नदी से जुड़ी है एक लोककथा
इस घटना के साथ एक कहानी भी जुड़ी है। मोरबी के राजा जीयाजी जडेजा एक बनिया औरत की तरफ आसक्त हो गये थे पर औरत को ये मंजूर नहीं था। राजा नहीं माने। वो औरत माछू नदी में कूद गई। उसने अपनी जान दे दी. उसने डूबने से पहले कहा था: सात पीढ़ियां जायेंगी फिर ना तुम्हारा वंश रहेगा, ना तुम्हारा शहर। इस कहानी पर तमाम लोकगीत भी बने हैं। 1978 में जब ये बांध पूरा हुआ जीयाजी के सातवें वंशज मयूरध्वज यूरोप में एक बार में किसी से लड़ पड़े और उनकी जान चली गई। अगले साल ये शहर भी बह गया।
'एक्ट ऑफ गॉड' नहीं था ये हादसा
किताब लिखने के दौरान उत्पल और टॉम वुटन को पता चला कि बांध का डिजाइन दिल्ली से अप्रूव नहीं हुआ था। पता था कि ये गलत है पर ये भी कह दिया गया था कि प्रोग्रेस नहीं रुकनी चाहिए। कहा गया कि देख लीजिए आप लोग इसलिए बांध बनने दिया गया।
फोटो साभार- इंडिया टुडे
बाद में माधव सोलंकी गुजरात के सीएम बने। मामले की जांच होती रही। कहा जाने लगा कि सोलंकी ठीक से जांच करवा नहीं रहे हैं। राज्य सरकार ने मामले को बंद करना चाहा पर एक एनजीओ (Consumer Education and Research Centre) ने हाई कोर्ट में इसे चुनौती दी। हाई कोर्ट ने 1981 में कहा कि मामले की जांच बंद कराने का कोई औचित्य ही नहीं है पर 1984 में सुप्रीम कोर्ट की एक तीन जजों की बेंच ने मामले को खत्म कर दिया। इस घटना के पीड़ितों को कभी कोई न्याय नहीं मिला। इसे 'एक्ट ऑफ गॉड' बना दिया गया जबकि ये मानवीय गलती थी। ब्यूरोक्रेसी की। अधिकारियों की। इंजीनियरों की। मंत्रियों की।
(स्रोत- No One Had A Tongue To Speak, इंडिया टु़डे-1979 अंक)