अयोध्या मामले की सुनवाई को लेकर राजनीति गरमा गई है। इस मुद्दे पर भाजपा सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल और कांग्रेस को घेरने में जुटी है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने सुनवाई टलवाने की कपिल सिब्बल की कोशिशों पर सवाल उठाते हुए कहा कि कांग्रेस को इस पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। वह अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के पक्ष में है या नहीं।
दरअसल, कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से मामले की सुनवाई 2019 के आम चुनावों के बाद करने की मांग की थी। उनका कहना था कि मौजूदा माहौल सुनवाई के लिहाज से ठीक नहीं है। इसका राजनीतिक फायदा उठाया जा सकता है। देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे के लिहाज से यह एक संवेदनशील मामला है और अदालत के बाहर इसका असर पड़ सकता है।
इस बीच, बुधवार को मामले में नया मोड़ आया।सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अपने वकील कपिल सिब्बल की सुप्रीम कोर्ट में दी दलीलों से असहमति जताई है। सुन्नी वक्फ बोर्ड के हाजी महबूब ने कहा कि कपिल सिब्बल हमारे वकील हैं, लेकिन वह एक पार्टी के नेता भी हैं। सुनवाई टलवाने के लिए कल सुप्रीम कोर्ट में उन्होंने जो दलील दी, वह गलत थी। हम चाहते हैं कि राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद का समाधान जल्द से जल्द हो। हाजी महबूब के बयान के बाद भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने कपिल सिब्बल पर निशाना साधाते हुए कहा कि कपिल सिब्बल सुप्रीम कोर्ट में सुन्नी वक्फ बोर्ड की नहीं बल्कि कांग्रेस पार्टी की जुबान बोल रहे थे। राहुल गांधी को राम मंदिर पर कांग्रेस पार्टी का रुख स्पष्ट करना चाहिए।
कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी कपिल सिब्बल की दलीलों पर घोर आपत्ति व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि कपिल सिब्बल को यह नहीं भूलना चाहिए कि वह कानून मंत्री रहे हैं। इस बात से उनका क्या मतलब है कि 2019 तक अयोध्या मामले की सुनवाई नहीं होनी चाहिए क्योंकि अदालत के बाहर इसका असर पड़ सकता है? उनका यह बयान सरासर अनुचित और गैर-जिम्मेदाराना है।
गौरतलब है कि मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले की सुनवाई 2019 तक टालने की मांग खारिज कर दी थी, लेकिन सुनवाई के लिए 8 फरवरी, 2018 की तारीख तय की है। कपिल सिब्बल और राजीव धवन ने तुरंत सुनवाई की स्थिति में बहिष्कार करने तक की बात कह डाली थी। कपिल सिब्बल का कहना था कि राम मंदिर एनडीए के एजेंडे में है, उनके घोषणा पत्र का हिस्सा है इसलिए इस मामले की सुनवाई 2019 के बाद ही होनी चाहिए।