न्यायमूर्ति मदन बी. लोकूर और न्यायमूर्ति उदय यू ललित की पीठ ने कहा कि 2010 की हिंसा से प्रभावित व्यक्तियों के पुनर्वास के मसले पर उच्च न्यायालय गौर करेगा। मिर्चपुर गांव में 2010 में प्रभावशाली जाट समुदाय के सदस्यों ने एक वृद्ध दलित और उसकी अशक्त पुत्री की हत्या कर दी थी। इस घटना के बाद गांव के दलितों में भय व्याप्त हो गया था। इससे पहले, न्यायालय ने कहा था कि वह मिर्चपुर गांव में दलित समुदाय का कथित रूप से सामाजिक बहिष्कार समाप्त करने के बारे में कोई आदेश नहीं दे सकता क्योंकि यह प्रभावी नहीं होगा।
न्यायालय ने हरियाणा सरकार के वकील को यह बताने का निर्देश दिया था कि क्या इस घटना के बारे में न्यायमूर्ति इकबाल सिंह की अध्यक्षता वाले न्यायिक आयोग ने अपनी रिपोर्ट सौंपी है। दलित समुदाय के सदस्यों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोन्साल्विज ने कहा था कि इस प्रभावशाली समुदाय के सदस्यों की निरंतर धमकियों के बीच दलित भय के माहौल में जिंदगी गुजार रहे हैं। जाट समुदाय को लगता है कि उनकी वजह से ही उनके समाज के कुछ सदस्यों को इस मामले में सजा हुई है।
हरियाणा सरकार के वकील ने कहा था कि गांव में 2010 से ही केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की एक कंपनी डेरा डाले हुए है और इस घटना के बाद से दलित समुदाय के सदस्यों के खिलाफ कोई घटना नहीं हुई है। इस मामले में दिल्ली की अदालत ने 24 सितंबर, 2011 को जाट समुदाय के 15 व्यक्तियों को दोषी ठहराया था। इनमें से तीन आरोपियों को 31 अक्तूबर, 2011 को अदालत ने उम्र कैद और पांच अन्य को पांच साल तक की कैद की सजा सुनाई थी। अदालत ने सात अन्य दोषियों को एक साल की परिवीक्षा पर छोड़ दिया था।