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सरकार काम करने वाले एनजीओ को डराना चाहती है

केंद्र सरकार और गैर सरकारी संस्थाओं के बीच खाई बढ़ती जा रही है। हाल ही में सरकार ने विदेशी चंदा हासिल कर रहे गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) पर कड़ी कार्रवाई करते हुए लगभग 9,000 एनजीओ के लाइसेंस रद्द कर दिए।
सरकार काम करने वाले एनजीओ को डराना चाहती है

इसी मुद्दे पर चर्चा के लिए आज दिल्ली के वाईडब्ल्यूसीए में एक सेमिनार का आयोजन किया गया। जिसमें लगभग 50 एनजीओ प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

 जनअधिकार संघर्ष समिति की ओर से आयोजित इस बैठक में एनजीओ के खिलाफ सरकार की कार्रवाई की सख्त आलोचना की गई। मुख्य वक्ताओं में ग्रीनपीस की प्रिया पिल्लई, सबरंग संस्था की ओर से अचिन वानाइक, इंसाफ की ओर से अनिल चौधरी, और विल्फ्रेड डिकॉस्टा युवा वकील कबीर दीक्षित आदि ने भाग लिया। इससे पहले सरकार ग्रीनपीस फाउंडेशन की प्रिया पिल्लई और गुजरात सरकार के लिए परेशानी खड़ी करने वाली मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ के खिलाफ सरकार मोर्चा खोल चुकी है।

हाल ही में सरकार ने एनजीओ के खिलाफ जो कार्रवाई की है वह विदेशी चंदा नियमन कानून (एफसीआरए) के कथित उल्लंघन करने के संबंध में है। सेमिनार में इस बात पर विस्तार से चर्चा हुई कि सरकार एनजीओ के खिलाफ कार्रवाई करके जनता को भटकाना चाहती है। ताकि जनता भूमि अधिग्रहण, रोजगार, पर्यावरण और आदिवासी मुद्दों पर न सोच सके। बेशक जिन एनजीओ ने सरकार को अपने काम का लेखा-जोखा नहीं दिया है सरकार उनके खिलाफ कदम उठाए लेकिन उन एनजीओ को निशाना बनाना एकदम गलत है जिन्होंने सरकार को अपनी फंडिंग और व्यय संबंधी तमाम कागजात जमा करा दिए हैं। सेमिनार में कहा गया कि जो एनजीओ असल में काम कर रहे हैं, सरकार इस प्रकार की कार्रवाई से उन्हें डराना चाहती है।

 

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