केंद्रीय रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने सुंजवान आर्मी कैंप के पीछे चल रहे निर्माण को आतंकी हमले में समस्या माना है लेकिन क्या सरकार इस समस्या का समय रहते कोई हल नहीं निकाल सकती थी? आखिर हमलों के बाद ही सरकार को सीमाओँ से लगे सैन्य ठिकानों की सरहदों पर क्यों कमी दिखाई देने लगती है? पठानकोट हमले से आखिर सरकार ने क्यों सबक नहीं लिया?
सुंजवान और पठानकोट हमले में अगर कोई समानता दिखाई देती है तो वह है सैन्य ठिकानों की बाऊंड्री का खुला होना। जम्मू के सुंजवान आर्मी कैंप पर आतंकवादी हमले में जो बातें सामने आई हैं, उनके मुताबिक बेस में घुसपैठ शायद नाले के साथ लगते उस एरिया से हुई थी जो सिर्फ लोहे के पत्थर की चादरों से घिरी है। घुसपैठ के वक्त आतंकवादी किसी की नजर में नहीं आ पाए। यह हमला इस बात का संकेत है कि जम्मू-कश्मीर में सैन्य प्रतिष्ठान आस-पास सुरक्षा के पक्के ढांचागत इंतजाम नहीं होने के चलते आतंकवादी हमलों की जद में बने हुए हैं। ठीक इसी तरह पंजाब के पठानकोट एयरबेस पर हमला करने वाले आतंकी एयरबेस की बैकसाइड स्थित नलवा नाला से एयरबेस में घुसे थे और यहां भी पाकिस्तान से लगती खुली हुई थी।
सोमवार को रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने प्रेस कांफ्रेस कर सैन्य शिविरों के आसपास के सिविलियन निर्माण को समस्या माना है। उनका कहना था कि सेना के शिविर की बाउंड्रीवाल के बगल में ही नागरिक मकानों के निर्माण एक बड़ी समस्या बनते जा रहे हैं। बाउंड्री वॉल के बगल से ही असैन्य निर्माण कार्य चल रहे हैं, जिन्हें हटाना मुश्किल हैं क्योंकि ये काम बकायदा मंजूरी के साथ हो रहे हैं। अब उन्होंने इसका भी कोई हल निकालने की बात की है। सवाल यह है कि आखिर सरकार समय रहते कमियों पर ध्यान क्यों नहीं देती? क्या देश की सुरक्षा उसके लिए केवल बयानबाजी का हिस्सा रह गई है या फिर सैनिकों के शहीद होने पर उस पर मरहमपट्टी लगाना ही उसका काम रह गया है।