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समाज में आलोचना व सवाल उठाने के प्रति असहिष्‍णुता: उप राष्ट्रपति

देश में असहिष्‍णुता पर जारी बहस के बीच उप राष्ट्रपति एम. हामिद अंसारी ने कहा है कि समाज में आलोचना और सवाल उठाए जाने के प्रति असहिष्‍णुता है जिसकी वजह अवैज्ञानिक पूर्वाग्रहों पर आधारित अतार्किक आस्‍था और मत हैं। उन्‍होंने कहा कि वैज्ञानिक सोच के अभाव में ही अक्‍सर असहमति जाहिर करने वाले व्‍यक्ति के बहिष्‍कार या उसकी हत्‍या कर दिए जाने या फिर किताबों पर प्रतिबंध जैसी घटनाएं सामने आती हैं।
समाज में आलोचना व सवाल उठाने के प्रति असहिष्‍णुता: उप राष्ट्रपति

रविवार को राज्‍य सभा टीवी को नए रूप में लांच करने के बाद वैज्ञानिक प्रवृत्ति पर एक आयोजित परिचर्चा में उप राष्‍ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा कि हमारे रोजमर्रा के जीवन में वैज्ञानिक सोच की कमी अक्सर देखी जाती है। पारिवारिक जीवन में हम सवाल स्वीकार नहीं करते। ज्यादातर माता-पिता को नहीं पसंद होता है कि उनके बच्चे सवाल-जवाब करें। स्कूलों में नर्सरी से लेकर हाई स्कूल तक शिक्षक बच्चों द्वारा सवाल करने पर बरस पड़ते है। काॅलेज और विश्‍वविद्याालयों में सवालों को गुस्ताखी माना जाता है और समझा जाता है कि छात्र शिक्षक के ज्ञान पर संदेह कर रहा है। 

आलोचना एवं सवाल उठाए जाने के प्रति असहिष्‍णुता का दावा करते हुए हामिद अंसारी ने कहा, तथ्यों से मिथकों को, पौराणिक कथाओं से इतिहास को, वैज्ञानिक तौर पर सत्यापित तथ्यों से अास्‍था को अलग करने की कोशिशों पर लगातार हमले किए जा रहे हैं। और तो और, तंत्र-मंत्र को वैज्ञानिक और अंधविश्वास को संस्कृति कहा जा रहा है। एेसे रवैयों ने अक्सर अप्रिय एवं हिंसक मोड़ ले लिया है। किताबें प्रतिबंधित की गईं या उन्हें प्रसार से वापस ले लिया गया। पुस्तकालयों को जला दिया गया। असहमति जाहिर करने वाले लोगों का बहिष्कार किया गया या उन्हें जान से मार दिया गया। सामाजिक शांति भंग की गई और नागरिकों के साथ हिंसा की गई।

उप राष्‍ट्रपति ने कहा, इन सभी मामलों में आम धारणा ये है कि सवाल करने से भावनाएं आहत होंगी, मौजूदा व्यवस्था को नुकसान होगा, सामाजिक व्यवस्था बाधित होगी या यह कमजोर पड़ जाएगी।अंसारी ने कहा कि यहां तक कि वैज्ञानिक भी इन प्रथाओं के सामने झुक जाते हैं जिनसे वैज्ञानिक सोच को नुकसान होता है। उन्होंने कहा कि शिक्षा प्रणाली युवा मस्तिष्क में इस सोच का संचार करने के लिए पर्याप्त रूप से प्रभावी नहीं है। नवाचारों और वैज्ञानिक शोध के पोषण और उन्हें बनाए रखने की पूर्व शर्त समाज में वैज्ञानिक सोच की स्वीकार्यता है। 

 

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