क्लाइमेट चेंज यानी जलवायु परिवर्तन। ये एक ऐसा मुद्दा बन चुका है जिस पर किसी एक राज्य या भारत भर में ही नहीं बल्कि दुनिया के सभी देशों, चाहे गरीब हो या अमीर विकसित हो या विकासशील, में बहस हो रही है। देश अपनी विकास योजनाओं का एजेंडा भी पर्यावरण और क्लाइमेट चेंज को ध्यान में रखते हुए तैयार कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ भी गंभीरता से इस दिशा में काम कर रहा है। उसने तो यूएनईपी (UNEP) यानि यूनाइटेड नेशंस एनवायरमेंट प्रोग्राम के नाम से अपनी एक संस्था ही इसके लिए लगा रखी है, जो दुनिया भर में पर्यावरण और क्लाइमेट चेंज को लेकर जन जागरूकता फैलाने, गरीब देशों को इससे लड़ने के लिए सहयोग देने का काम करती है। अलग-अलग देशों की सरकारों और संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक संगठनों के स्तर पर किए जा रहे प्रयासों के अतिरिक्त कुछ ऐसे गिलहरी प्रयास भी हैं, जो प्रायः हमारी नजरों में नहीं आ पाते लेकिन उनकी भूमिका इतनी महत्वपूर्ण होती है कि भारत जैसे दुनिया की सर्वाधिक आबादी वाले देश में ऐसे अगर कुछ सौ लोग भी जागृत हो जाएं और इस निष्ठा के साथ काम करने लगे तो शायद पर्यावरण को लेकर भारत जैसे देशों की तस्वीर ही पूरी तरह से बदल सकती है और वैश्विक स्तर पर तापमान को 1.5℃ तक घटाने की मुहिम भी साकार हो सकती है। जहां अभी भी विकास योजनाओं को गति देने या प्रमुख पर्यावरण मानकों पर शिकंजा कसने के द्वंद में सरकारी संस्थाएं उलझी हुई हैं। ऐसी ही एक कहानी है मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के ओरछा जिले में स्थित कम्युनिटी रेडियो रेडियो बुंदेलखंड मैं बताओ और रेडियो जॉकी काम करने वाली 25 वर्षीय वर्षा रायकवार की। वर्षा की कहानी इसलिए भी खास है, क्योंकि उन्होंने रेडियो जॉकी की अपनी नौकरी को न केवल एक सामान्य नौकरी की तरह लिया बल्कि इसे बुंदेलखंड जैसे तुलनात्मक रूप से पिछड़े क्षेत्र में लोगों को जागरूक करने का एक माध्यम तो बनाया ही साथ ही इसे एक मिशन का रूप दे दिया।
इलाके की एकमात्र महिला रेडियो जॉकी वर्षा का रेडियो बुंदेलखंड पर प्रसारित होने वाला कार्यक्रम मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में पहले 150 गांवों के 5 लाख लोगों तक अपनी पहुंच बना चुका है। यूं तो कम्युनिटी रेडियो का कांसेप्ट कोई नया तो नहीं। देश के अनेकों विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थाओं आदि को समय-समय पर रचनात्मक उद्देश्य और जन जागरूकता के लिए कम्युनिटी रेडियो के लाइसेंस स्वीकृत किए गए। लेकिन वर्षा की तरह शायद ही कोई जुनूनी रेडियो जॉकी रहा होगा, जिसके कार्यक्रम लाखों लोगों तक पहुंचे होंगे और वह भी पर्यावरण जैसे संवेदनशील और हमारे भविष्य से जुड़े मुद्दे पर।
वर्षा का कहना है उन्होंने कोई भारी-भरकम शब्दावली वाले कार्यक्रम की बजाय लोगों की भाषा में उनसे जुड़ने का प्रयास किया। ताकि उनको बिजली की बचत, पानी के संरक्षण और पेड़ लगाने जैसे छोटे-छोटे लेकिन क्लाइमेट चेंज जैसी समस्याओं से लड़ने में अत्यंत महत्वपूर्ण चीजों के बारे में बताया जा सके। वर्ष 2017 में रेडियो जॉकी की अपनी पूर्णकालिक नौकरी शुरू करने वाली वर्षा कहती हैं कि शुरुआती दिनों में उन्हें क्लाइमेट चेंज और पर्यावरण की गहराइयों के बारे में नहीं पता था और इसका तो बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि कम्युनिटी रेडियो को एक हथियार बनाकर इतने बड़े तबके को जागरूक किया जा सकता है, पर इसकी नींव भी घर से ही पड़ी।
अपने पिता को किसान के रूप में काम करते हुए देखकर बड़ी हुई वर्षा कहती हैं कि उन्होंने देखा कि पहले उनके पिता की फसलें प्रचुर मात्रा में होती थीं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में सूखे और अनियमित जल आपूर्ति के कारण उनकी उपज धीरे-धीरे कम होने लगी थी। जब मैंने अपने पिता से पूछा कि ऐसा क्यों हो रहा है, तो उन्होंने बस इतना कहा कि यह भगवान की इच्छा होगी। लेकिन मैं इस बात से पूरी तरह आश्वस्त नहीं हुई और तब से ही सोच रही थी कि हो ना हो कहीं ना कहीं हम इंसानों की भी इसमें कोई गलती जरूर होगी।
वर्षा कहती है धीरे-धीरे उनकी जिज्ञासा बढ़ती गई और उन्होंने इस बारे में जब पढ़ना शुरू किया, विशेषज्ञों को सुना, वैज्ञानिकों की राय को जाना तो यह समझ में आया कि यह भारत ही नहीं बल्कि वैश्विक स्तर की फिलहाल सबसे बड़ी समस्या है जो मानव जीवन के अस्तित्व से सीधे तौर पर जुड़ी हुई है। इसके बाद वर्षा को समझ में आया कि क्यों आखिर इसका सीधा असर किसानों की उपज और उनकी आमदनी पर पड़ रहा है। धीरे-धीरे उन्हें यह भी समझ में आने लगा था कि कम जागरूक किसानों को फसलों पर पड़ने वाले पर्यावरण के सीधे असर की जानकारी ही नहीं है। इस बीच वर्षा जोकि रेडियो जॉकी की नौकरी शुरू कर चुकी थीं तो उन्हें लगा कि ऐसे ग्रामीणों के साथ, जो नियमित तौर पर ना तो अखबार पढ़ते हैं, न ही टीवी देखते हैं, उनके लिए रेडियो इस गैप को भरने का एक अहम जरिया हो सकता है।
हालांकि वर्षा की राह इतनी आसान भी नहीं थी। वह कहती हैं कि एक पारंपरिक बुंदेलखंडी परिवार से आने के कारण वहां महिलाओं का नौकरी करना अच्छा नहीं माना जाता। इसलिए 'रेडियो बुंदेलखंड' के माध्यम से शुरू हुई पर्यावरण जन-जागरूकता की यह यात्रा इतनी आसान भी नहीं थी। उनका परिवार चाहता था कि कम उम्र में ही उनकी शादी कर कर दी जाए और वह अपना घर बसा लें। वर्षा कहती हैं कि, "मैं उस परंपरा को तोड़ना चाहती थी, और मौजूदा नियमों का पालन करने के बजाय कुछ अलग करना चाहती थी।" हालांकि इतना आसान भी नहीं था क्योंकि सबसे बड़ी चुनौती थी पारंपरिक श्रोताओं के सामने क्लाईमेट चेंज जैसे मुद्दे को लेकर रुचि पैदा करना। इसके लिए वर्षा ने अपने सहयोगियों के साथ 'भैरो भौजी' नाम का कार्यक्रम रेडियो बुंदेलखंड पर ब्रॉडकास्ट करना प्रारंभ किया। इस कार्यक्रम की रूपरेखा कुछ यूं थी कि एक ग्रामीण महिला पर्यावरण और क्लाइमेट चेंज के प्रति लापरवाह अपने देवर को स्थानीय भाषा में हंसी मजाक वाले अंदाज में जागरूक करती है।
वर्षा कहती हैं कि धीरे-धीरे उनके कार्यक्रम में ऑर्गेनिक फार्मिंग और समय से फसल उत्पादन जैसी चीजें भी चर्चा का हिस्सा बनने लगीं। उनका प्रयास होता था कि अधिकांश श्रोता ग्रामीण पृष्ठभूमि होने के कारण यह संवाद दो तरफा रखा जाए ताकि उनकी रूचि इसमें बनी रहे। इसके लिए धीरे-धीरे 'रेडियो बुंदेलखंड' के बैनर तले ही नुक्कड़ नाटक, वॉल पेंटिंग और दूसरी स्थानीय लोक कलाओं के जरिए क्लाइमेट चेंज जैसे जटिल विषय पर जागरूकता फैलाना शुरू कर दिया गया।
इसके अलावा क्लाइमेट चेंज से जुड़े जन-जागरूकता संबंधी अन्य कार्यक्रमों में वर्ल्ड बैंक द्वारा वित्त पोषित एक ग्रामीण रियलिटी शो 'कौन बनेगा शुभ कल का लीडर' भी प्रारंभ कर दिया गया। इसके लिए 100 गांवों को चुना गया और उनके निवासियों को रेन वाटर हार्वेस्टिंग और
किचन गार्डन जैसी गतिविधियों के लिए प्रोत्साहित किया जाने लगा। उनका कहना है क्योंकि यह एक रियलिटी शो था तो इसमें धीरे-धीरे लोगों को इससे बाहर भी करना पड़ता था लेकिन सबसे उत्साहजनक बात यह रही कि रियलिटी शो से बाहर होने के बाद भी पर्यावरण संबंधी जिन कार्यों को उन्होंने शुरू किया था, उन्हें बाद में भी जारी रखा वर्षा कहती हैं कि इस कार्यक्रम से क्लाइमेट चेंज को लेकर जागरूकता ही नहीं फैली बल्कि लोगों की दैनिक गतिविधियों और उनके व्यवहार में भी काफी बदलाव देखा गया। वह लोग आज भी उन्हें 'रेडियो बुंदेलखंड' में कॉल करते हैं और बताते हैं कि पर्यावरण के लिए फिलहाल वो क्या काम कर रहे हैं।
उनके कार्यक्रम का असर इतने बड़े पैमाने पर हुआ कि मध्य प्रदेश सरकार का कृषि विभाग भी अपने प्रशिक्षकों को इन ग्रामीणों को प्रशिक्षित करने के लिए समय-समय पर भेज रहा है। ताकि उन्हें एनवायरमेंट फ्रेंडली कृषि तकनीकों के बारे में बताया जा सके। वर्षा का कहना है कि उनकी सफलता का स्तर ये है कि अब उन्हें अपने कार्यक्रम के लिए प्रायोजकों की भी आवश्यकता नहीं है। स्थानीय निवासी खुद उनके पास आते हैं और उन्हें सहयोग की पेशकश करते हैं ताकि रेडियो बुंदेलखंड में वह अपना कार्यक्रम जारी रख सकें।
कम्युनिटी रेडियो के माध्यम से लोगों को ना केवल जागरूक करने बल्कि इस स्तर तक उन्हें स्व नियमन और भविष्य के प्रति स्थाई रूप से सचेत करने की यह कहानी आरजे वर्षा की एक अभिनव सफलता गाथा है। जिसने यह सिद्ध कर दिया संवाद के साधनों का बुद्धिमानी पूर्वक इस्तेमाल किया जाए तो कितने अप्रत्याशित सकारात्मक परिणाम सामने आते हैं।