उन्होंने आज अदालत को बताया कि किसी और देश में एक साथ तीन तलाक का चलन नहीं है सिर्फ भारत में मुस्लिम पुरूष ऐसा करते हैं। उन्होंने कहा कि शरीअत के अनुसार तलाक तीन महीने के वक्त में अलग-अलग देना चाहिए और इस दौरान पति-पत्नी में सुलह की कोशिश होनी चाहिए।
कोर्ट के एक सवाल के जवाब में वरिष्ठ वकील ने कहा कि तीन तलाक घृणित है फिर भी भारत में वैध है जबकि दुनिया के बाकी देश इसे समाप्त कर चुके हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जो बात अल्लाह की निगाह में अपराध है वह कभी कानूनी रूप से सही नहीं हो सकता। खुर्शीद ने सुप्रीम कोर्ट को राय दी है कि तीन तलाक को एक कर देने से 90 फीसदी समस्या अपने आप हल हो जाएगी। हालांकि उन्होंने कोर्ट से अनुरोध किया कि वो इस बारे में कानून न बनाए बल्कि इस्लाम में इसके लिए जो तरीका बताया गया है उसी पर जोर दे। यानी तीन महीने के वक्त में तलाक देने की प्रक्रिया और इस दौरान पति-पत्नी में सुलह की कोशिश भी होनी चाहिए।
गौरतलब है कि कल ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से पेश हुए वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट से कहा था कि यह मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का मामला है। इस बारे में केंद्र सरकार चाहे तो नियम बनाए मगर इसमें अदालत को दखल नहीं देना चाहिए। दूसरी ओर केंद्र सरकार की ओर से पेश अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा था कि सरकार तीन तलाक को खत्म करने के पक्ष में है और देश की महिलाओं की बराबरी के लिए सरकार प्रयास करती रहेगी। इस मुद्दे पर वह सरकार का पक्ष 15 मई को अदालत के सामने रखेंगे।