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नजमा बोलीं, तीन तलाक की हो रही गैर इस्‍लामी व्‍याख्‍या

मणिपुर की राज्यपाल नजमा हेपतुल्ला ने कहा है कि देश में कुछ तबको के द्वारा तीन तलाक परंपरा की गैर इस्लामी व्याख्या की जा रही है। उन्होंने कहा कि इस्लाम असमानता का धर्म नहीं हैै। उन्‍होंने कहा कि 'तीन तलाक' (लगातार तीन बार तलाक बोल कर वैवाहिक संबंध तोड़ना) की परंपरा की व्याख्या सही ढंग से नहीं की जा रही है। नजमा के अनुसार इस्‍लाम में एक बार में तीन तलाक की कोई संकल्‍पना नहीं है।
नजमा बोलीं, तीन तलाक की हो रही गैर इस्‍लामी व्‍याख्‍या

 

केंद्र की मोदी सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट से इस परंपरा को खत्म करने का अनुरोध करने के मामले में नजमा ने कोई टिप्‍पणी नहीं की। उन्‍होंने कहा यह कोई ऐसा मुद्दा नहीं है जहां मैं सकारात्मक या नकारात्मक जवाब दे सकूं कि मैं केंद्र के रुख से सहमत हूं या नहीं। मैं इस मुद्दे पर सिर्फ अपने विचार और जो मैं महसूस कर रही हूं उसे ही व्‍यक्‍त कर सकती हूं।

राज्‍यपाल बनने से पहले वह अल्पसंख्यक मामलों की केंद्रीय मंत्री थीं। वह मुसलमानों में तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह की परंपरा का उच्चतम न्यायालय में विरोध किए जाने के केंद्र के रुख के बारे में अपने विचारों को लेकर सवालों का जवाब दे रही थीं।

 

हिंदू धर्म की तर्ज पर इस्लाम में बहुविवाह की परंपरा को खत्म करने के बारे में हेपतुल्ला ने कहा कि लोगों को इस बारे में सोचना चाहिए और इस्लाम के नाम पर किया जाने वाला कोई भी अन्याय सही नहीं है। उन्होंने कहा कि ज्यादातर इस्लामिक देशों ने इस्लाम की सही व्याख्या की है। उन्होंने कहा कि कुरान और पैगंबर मुहम्मद ने कहा है कि जिन्होंने इंसान के साथ अन्याय किया है वे ठीक से धर्म का पालन नहीं कर रहे हैं।

उन्होंने कहा, ''जो इस्लाम का दुरुपयोग कर रहे हैं और महिलाओं से समान बर्ताव नहीं कर रहे हैं, वे गलत हैं। मैं जो कहती हूं उसमें यकीन रखती हूं। यहां तक कि एक महिला भी निर्ममता, अन्याय और अन्य हालात में शादी तोड़ने की मांग कर सकती है, लेकिन इस बारे में कोई बात नहीं करता।

नजमा ने कहा कि एक साथ 'तीन बार तलाक' कह कर तलाक नहीं दिया जा सकता। इसके लिए तीन महीनों में तीन मौकों पर ऐसा किया जाता है। मध्यस्थता की प्रक्रिया का पालन करना होता है। उसके बाद ही तलाक होता है। जिस तरह से वे इसकी व्याख्या कर रहे हैं वह इस्लामी नहीं है और सही नहीं है।

 

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