एकसाथ तीन तलाक और बहुविवाह की व्यवस्था के खिलाफ सायरा बानो नामक महिला की ओर से दायर याचिका पर उच्चतम न्यायालय द्वारा केंद्र सरकार से जवाब मांगे जाने के बाद छिड़ी बहस के बीच ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस ए मुशावरत के अध्यक्ष नवैद हामिद ने कहा, इस मामले पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को गहराई से सोचना चाहिए। ईरान और सऊदी अरब जैसे देशों में इस पर बातचीत हुई और बदलाव हुआ है। उन्होंने कहा, एक साथ तीन बार तलाक कह कर तलाक देने की व्यवस्था मुख्य रूप से भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में है। पाकिस्तान में कानून के जरिये इसमें बदलाव हुआ लेकिन अभी जमीन पर यह अमल में नहीं आया है। हमारे यहां भी इस पर गुफ्तगू होनी चाहिए और यह पहल पर्सनल लॉ बोर्ड और उलेमाओं की ओर से होनी चाहिए।
हामिद ने कहा, उलेमाओं को इस पर गौर करना चाहिए कि कुरान और शरीयत के दायरे में रहकर इसमें क्या सुधार हो सकता है। यह आज के वक्त की मांग है कि हम इसको लेकर बातचीत करें। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि इस मामले में अदालत और सरकार का दखल नहीं होना चाहिए। हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने उत्तराखंड की महिला सायरा बानो की याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। सायरा ने अपनी याचिका में पर्सनल लॉ के तहत आने वाली तीन तलाक और बहुविवाह की व्यवस्था को गैरकानूनी करार दिए जाने की मांग की है। सायरा मामले में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने आपत्ति जताते हुए आरोप लगाया कि न्यायपालिका की ओर से शरीयत में दखल देने की कोशिश हो रही है और उसने केंद्र सरकार से अपील की है कि वह इस मामले में पूर्व की सरकारों की तरह दखल नहीं देने वाला रुख अपनाए।
हालांकि कई सामाजिक संगठन और खासकर मुस्लिम महिला संगठन एक साथ तीन बार तलाक कह कर तलाक देने की व्यवस्था को खत्म किए जाने की मांग लंबे समय से करती आ रही हैं। मुशावरत प्रमुख हामिद ने कहा, एक साथ तीन तलाक की यह व्यवस्था हजरत अबू बकर के जमाने में शुरू हुई थी, हालांकि इससे जुड़े नियमों का दुरूपयोग करने वालों के लिए सजा का भी प्रावधान था। मैं यह कहना चाहता हूं कि आज के दौर पर सिर्फ एक पहलू पर अमल हो रहा है। आज के समय में भी तीन तलाक की व्यवस्था का बेजा इस्तेमाल करने वालों के लिए सजा का प्रावधान किया जा सकता है। इस मामले पर प्रमुख मुस्लिम संगठन जमात ए इस्लामी हिंद के महासचिव इंजीनियर मोहम्मद सलीम ने कहा, तलाक की व्यस्था पर अलग-अलग राय है और सभी हदीस की रौशनी में अपनी राय रखते हैं। ऐसे में इसे पूरी तरह बदल देना मुमकिन नहीं हो पाएगा। हां, इसे लेकर जो गलतफहमियां हैं उसे दूर करने की जरूरत है। सलीम ने यह भी कहा कि इस पर्सनल लॉ के मामले में अदालत और सरकार के स्तर पर किसी तरह का दखल नहीं होना चाहिए।