उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव परिणामों का असर केवल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के राजनैतिक करियर पर ही पड़ेगा, बल्कि उसकी गूंज अगले महीने होने वाले गुजरात विधान सभा चुनाव पर भी सुनाई देगी।
निकाय चुनाव का परिणाम एक दिसम्बर को आ जाएगा, जबकि गुजरात चुनाव दो चरणों में दिसम्बर 9 और 11 को संपन्न होंगे। इसलिए अगर निकाय चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा का प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं आता है तो गुजरात में विपक्ष को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा को घेरना का एक मौका मिल जायेगा, वहीं जनता में भाजपा के विरुद्ध माहौल का सन्देश जाएगा।
खासतौर पर हाल ही में लागू GST के सन्दर्भ में यह सन्देश काफी अहम होगा और लोगों की वोट देने की प्राथमिकता और पसंद को भी प्रभावित करेगा।
अभी हाल ही में मध्य प्रदेश की एक सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस नें अपनी सीट बरकरार रखी। इस छोटे चुनाव परिणाम को सत्तारूढ़ बीजेपी और शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली मध्य प्रदेश सरकार के विरुद्ध माना गया। इस परिपेक्ष में उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव काफी बड़े स्तर पर होने जा रहे हैं।
यही नहीं, भाजपा पारंपरिक रूप से उत्तर प्रदेश के शहरी निकाय चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करती आई है, जबकि वह पिछले 15 से अधिक सालों से उप्र के विपक्ष में बैठती रही है। अब जबकि भाजपा पूर्ण बहुमत वाली सरकार चला रही है तो पार्टी से केवल जीत ही नहीं बल्कि अपने जीत के अंतर को और बड़ा करने की अपेक्षा होगी।
इसके साथ ही, उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव से ना केवल गुजरात विधान सभा चुनावों के रुख पर असर पड़ेगा बल्कि 2019 में होने वाले लोक सभा चुनाव का भी माहौल बनेगा।
राजनीतिक विश्लेषक हेमंत तिवारी के अनुसार, भाजपा उप्र के निकाय चुनावों को लेकर कोई रिस्क नहीं लेना चाहती इसलिए उसने योगी समेत पार्टी के अन्य स्टार प्रचारकों को मैदान में उतार दिया है। स्वयं योगी करीब तीन दर्जन चुनावी जनसभाओं को संबोधित करेंगे, जिसकी शुरुआत उन्होंने आज धार्मिक नगरी अयोध्या से कर दी है।
इस बात के भी संकेत हैं कि अगर भाजपा के लिए चुनाव परिणाम उम्मीद से कम आते हैं तो विभिन्न जिलों के प्रभारी मंत्रियों की कुर्सी भी जा सकती है।