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हम असहिष्णुता के लिए सहिष्णु हैं – प्रो. सेन

नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफ्रेसर अमर्त्य सेन ने अपने नाम ‘अमर्त्य’ से अपनी बात शुरू करते हुए बताया कि कैसे गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ने उनका नाम रखा और अपने चाचा जोतिर्मय सेन के अंग्रेजों की गुलामी के प्रति संघर्ष जारी रखा ताकि देश आजाद हो सके। लेकिन क्या वाकई देश वैसा ‘आजाद’ हुआ है। यह बात उन्होंने एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के राजेन्द्र माथुर स्मृति व्याख्यानमाला में कहे। उन्होंने इंडियन पीनल कोड से बात शुरू करते हुए अभिव्यक्ति की आजादी के संदर्भ में बहुत सी बाते रखीं।
हम असहिष्णुता के लिए सहिष्णु हैं – प्रो. सेन

प्रो. सेन ने कहा कि हम असहिष्णुता के प्रति भी बहुत सहिष्णु हैं। हिंदुवाद और हिंदू में उतना ही फर्क है जितना, कैंसर (बीमारी) और कैंसर (राशि) में है। उन्होंने धारा 377 का उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे सुप्रीम कोर्ट ने पहले आपराधिक श्रेणी में आने वाले इस संबंध पर दोबार विचार किया वैसे ही अन्य मुद्दों पर भी होना चाहिए। मुख्य तौर पर उन्होंने धारा 295(ए) जो सन 1927 में लाया गया था, पर बात की जिसमें कुछ भी बोलने या लिखने से किसी की धार्मिक भावनाएं आहत होने की बात है।

उन्होंने कहा कि भारतीयों को आजादी और स्वतंत्रता के बीच का फर्क समझ कर हर बात का इल्जाम संविधान पर डालना भी बंद करना होगा।   

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