प्रो. सेन ने कहा कि हम असहिष्णुता के प्रति भी बहुत सहिष्णु हैं। हिंदुवाद और हिंदू में उतना ही फर्क है जितना, कैंसर (बीमारी) और कैंसर (राशि) में है। उन्होंने धारा 377 का उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे सुप्रीम कोर्ट ने पहले आपराधिक श्रेणी में आने वाले इस संबंध पर दोबार विचार किया वैसे ही अन्य मुद्दों पर भी होना चाहिए। मुख्य तौर पर उन्होंने धारा 295(ए) जो सन 1927 में लाया गया था, पर बात की जिसमें कुछ भी बोलने या लिखने से किसी की धार्मिक भावनाएं आहत होने की बात है।
उन्होंने कहा कि भारतीयों को आजादी और स्वतंत्रता के बीच का फर्क समझ कर हर बात का इल्जाम संविधान पर डालना भी बंद करना होगा।