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निजता को मौलिक अधिकार करार दिए जाने का आम आदमी पर क्या होगा असर

मीडिया पर भी इस फैसले का व्यापक असर पड़ सकता है।
निजता को मौलिक अधिकार करार दिए जाने का आम आदमी पर क्या होगा असर

निजता का अधिकार आपका मौलिक अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से निजता के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत "जीने के अधिकार" और "व्यक्तिगत स्वतंत्रता" का हिस्सा बताया।” हालांकि यह अधिकार परम नहीं है और इस पर उचित पाबंदियां लगाई जा सकती हैं। जीवन और स्वतंत्र के मौलिक अधिकार पर जो जिस तरह की सीमाएं हैं, वे निजता के अधिकार पर भी लागू होंगी। 

इस ऐतिहासिक फैसले के बाद अब सरकार, बैंक, टेलीकॉम कंपनियों, पुलिस, प्रशासन आदि पर नागरिकों की निजता के अधिकार को भंग न होने देने की जिम्मेदारी बढ़ गई है। साथ ही इसके अलावा और भी कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां इसका व्यापक असर पड़ सकता है।

-वकील प्रशांत भूषण ने बताया कि अगर सरकार रेलवे, एयरलाइन रिजर्वेशन के लिए भी जानकारी मांगती है तो ऐसी स्थिति में नागरिक की निजता का अधिकार हनन माना जाएगा।

- यह फैसला व्हाट्सएप की नई प्राइवेसी पॉलिसी को भी चुनौती देने वाला होगा। दिल्ली हाईकोर्ट ने 23 सितंबर, 2016 को एक आदेश दिया था जिसके मुताबिक वह अपनी नई प्राइवेसी पॉलिसी लागू कर सकता है। लेकिन 25 सितंबर, 2016 तक एकत्रित हुए डाटा को फेसबुक या अन्य कंपनियों को शेयर नहीं कर सकता है।

-संविधान की धारा 377 पर भी इसके असर पड़ने की बात कही जा रही है। किसी व्यक्ति के सेक्स के मामले में व्यक्तिगत रुझान को गुरुवार के फैसले में निजता के दायरे में माना गया है। बहुत थोड़े से लोगों के मामले में भी निजता के अधिकार का हनन नहीं किया जा सकता। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के 2 जजों की बेंच ने समलैंगिकता को अपराध बताने वाली धारा 377 को सही ठहराया था। लेकिन 9 जजों की बेंच ने इस फैसले को दोषपूर्ण बताया है। इस मामले पर लंबित याचिका पर निजता को मौलिक अधिकार करार दिए जाने का असर पर सकता है। आपसी सहमति से बने समलैंगिक संबंधों के अपराधमुक्त होने की उम्मीद बढ़ गई है। 

-राइट टू प्राइवेसी का असर बीफ बैन पर भी पड़ सकता है। कोर्ट ने कहा है, "मुझे नहीं लगता है कि किसी को राज्य द्वारा यह बताया जाना चाहिए कि उन्हें क्या खाना चाहिए, या वे कैसे कपड़े पहनें, या किसके साथ उन्हें व्यक्तिगत, सामाजिक राजनीतिक जीवन में शामिल होना चाहिए। अनुच्छेद 1 9 (1) (सी) के तहत नागरिकों को सामाजिक और राजनीतिक संघ की स्वतंत्रता की गारंटी है।"

- मीडिया पर भी इस फैसले का व्यापक असर पड़ सकता है। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के बाद मीडिया किसी की निजी जिंदगी को सार्वजनिक नहीं कर पाएगा। ऐसा करने पर उन्हें कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है।

 

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