बताया जा रहा है कि सीबीआई ने कॉरपोरेट घरानों द्वारा केंद्र सरकार के मंत्रालयों में जासूसी कराए जाने के कथित मामले में मुंबई के दो ठिकानों पर छापेमारी करके वित्त मंत्रालय के विदेशी निवेश संबर्द्धन बोर्ड (एफआईपीबी) सेक्शन के सहायक रामनिवास और चेताली एसोसिएट के सहयोगी परेश को गिरफ्तार किया था। इस मामले में दिल्ली पुलिस का कोई लेना-देना नहीं है। इससे पहले सीबीआई ने वित्त मंत्रालय के विनिवेश विभाग के अवर सचिव अशोक कुमार सिंह, आर्थिक मामलों के विभाग के सेक्शन ऑफिसर लालाराम शर्मा और मुंबई के चार्टेड अकाउंटेंट (सीए) खेमचंद गांधी को हिरासत में लिया था। इन तीनों पर विदेशी निवेश संबंधी गुप्त सरकारी दस्तावेज कॉरपोरेट घरानों को मुहैया कराने का आरोप है। गांधी के आवास से 60 लाख रूपए भी बरामद किए गए हैं। दोनों शहरों में छापे के दौरान लैपटॉप, टैबलेट और कंप्यूटर हार्ड डिस्क भी जब्त की गई हैं। अब सीबीआई ने भी एक नया मामला दर्ज किया है जिसमें चोरी और साजिश की धाराएं शामिल हैं।
दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक सीबीआई अपना काम कर रही है और हम अपना। सीबीआई ने दिल्ली के कुछ मंत्रालयों और मुंबई के कई ठिकानों पर छापे मारे थे। सीबीआई सूत्रों की मानें तो जांच एजेंसी की यह कार्रवाई इस मामले में दिल्ली पुलिस की जांच से अलग है।
गौरतलब है कि पेट्रोलियम मंत्रालय में जासूसी कांड की शुरूआत हुई थी उसके बाद कई मंत्रालयों तक पहुंच गई। दिल्ली पुलिस ने कुल 16 लोगों की गिरफ्तारियां की हैं। इनमें पांच कॉरपोरेट अफसर, दो ऊर्जा सलाहाकार, दो सरकारी कर्मचारी शामिल हैं। दिल्ली पुलिस ने अब तक दो मामले दर्ज किए हैं और इसकी जांच चल रही है।
संसद में केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धमेंन्द्र प्रधान ने बताया कि जांच रिपोर्ट में जो भी लोग दोषी पाएं जाएंगे। पहले हमें जांच रिपोर्ट आने देनी चाहिए क्योंकि अभी तक कुछ ठोस सामने नहीं आया है। लेकिन जैसा कि मैं पहले कह चुका हूं कि किसी को बख्शा नहीं जाएगा। लेकिन सवाल यह है कि दिल्ली पुलिस और सीबीआई की जांच में अभी तक किसी कॉरपारेट घराने को दोषी क्यों नहीं माना गया है।