देश में कोरोना संक्रमण के मामले एक लाख से अधिक हो गए हैं। मृतकों का आंकड़ा भी 3,400 को पार कर चुका है। लेकिन इस बीच कोरोना को लेकर नियमित रूप से सरकार की ओर से होने वाली प्रेस ब्रीफिंग पर विराम लग गया है। पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने भी इस पर चिंता जाहिर की है। सोशल मीडिया पर भी इसे लेकर प्रश्न उठाए जा रहे हैं कि आखिर भारत सरकार कोरोना संकट की घड़ी में रोज प्रेस ब्रीफिंग करने से क्यों बच रही है? जब मामले ज्यादा बढ़ रहे हैं तो सरकार क्यों सवालों से भाग रही है? हालांकि आउटलुक से बातचीत में स्वास्थ्य मंत्रालय और आईसीएमआर के अधिकारियों ने इसकी वजह साफ की है।
इस तरह कम होता गया प्रेस ब्रीफिंग का सिलिसिला
जब से कोविड-19 का संक्रमण देश में तेज़ी से फैलना शुरू हुआ है, तब से स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी लगातार मीडिया को इससे जुड़ी जानकारी साझा करते रहे। शुरुआत में कुछ दिन तक लगातार प्रेस ब्रीफिंग हुई। फिर सप्ताह में तीन से चार दिन और अब संबधित अधिकारी 11 मई के बाद सीधे 20 मई को मीडिया से मुखातिब हुए। गौर करने वाली बात है कि राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन 25 मार्च को लागू हुआ था। 25 मार्च से लेकर 20 अप्रैल के बीच स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोविद -19 पर नियमित रूप से प्रेस ब्रीफिंग की। इस दौरान रोजाना मीडिया से मुखातिब होने का सिलसिला जारी रहा। जबकि 21 अप्रैल से 20 मई के बीच के 20 दिनों में मंत्रालय ने सिर्फ 12 दिन ही प्रेस ब्रीफिंग की है। हालांकि 22 अप्रैल को सरकार ने फैसला किया था कि देश में कोरोना वायरस पर हालात की जानकारी देने के लिए हर रोज शाम चार बजे होने वाली स्वास्थ्य मंत्रालय की दैनिक स्वास्थ्य ब्रीफिंग अब सप्ताह में चार दिन होगी। साथ ही प्रेस विज्ञप्ति और कैबिनेट ब्रीफिंग वैकल्पिक दिनों पर की जाएगी। लेकिन अब सप्ताह में चार दिन भी प्रेस ब्रीफिंग नहीं हो रही है।
विपक्ष ने उठाए सवाल
सरकार की ओर से नियमित प्रेस कांन्फ्रेंस नहीं किये जाने को लेकर विपक्ष की ओर से भी सवाल उठाए जा रहे हैं। जयराम रमेश ने ट्वीट कर कहा है कि महामारी के इस दौर में देश की जनता को यह जानने का अधिकार है कि देश इस समय किस स्थिति से गुजर रहा है। कोरोना संक्रमण को लेकर देश में जिस तरह के हालात बन चुके हैं उसके बारे में जानकारी देने के लिए हर दिन स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े किसी बड़े डॉक्टर या फिर स्वास्थ मंत्रालय के किसी बड़े चेहरे को प्रेस ब्रीफिंग करनी चाहिए। उन्होंने कहा स्वास्थ्य मंत्री खुद एक डॉक्टर हैं इसलिए उन्हें हर दिन कोरोना से संबंधित ब्रीफिंग करनी चाहिए। उन्होंने इस दौरान सरकार को सुझाव देते हुए हा कि एम्स के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया को हर रोज प्रेस ब्रीफिंग करनी चाहिए और जनता के सामने देश के स्थिति को स्पष्ट करना चाहिए।
क्या कहते हैं अधिकारी?
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि सरकार कोरोना वायरस पर प्रेस कॉन्फ्रेंस करने से बच रही है, ऐसा बिल्कुल नहीं है। आउटलुक सेे उन्होंने कहा, "अभी डब्ल्यूएचओ का इंवेट था। इसके अलावा जो अधिकारी प्रेस कॉन्फ्रेंस करने जाते हैं वे अलग-अलग राज्यों का दौरा कर रहे हैं। इसलिए प्रेस ब्रीफिंग नहीं हो पाई। इसका कोई और कारण न निकाला जाए।"
वहीं आईसीएमआर के वैज्ञानिक और मीडिया कोऑर्डिनेटर डॉ. लोकेश शर्मा इसके पीछे अलग कारण बताते हैं। उन्होंने कहा, "प्रेस कॉन्फ्रेंस पीआईबी आयोजित कराती है और वही स्लॉट देती है। इससे पहले आर्थिक पैकेज को लेकर सरकार की ब्रीफिंग चल रही थी फिर अम्फन चक्रवात पर ब्रीफिंग होने लगी इसलिए कोविड-19 की ब्रीफिंग नहीं हो पाई।" उन्होंने आगे बताया कि ब्रीफिंग नहीं करने का सिलसिला ज्यादा लंबित न हो इसीलिए बुधवार को चक्रवात और कोविड-19 की ब्रीफिंग एक साथ हुई। डॉ शर्मा भी प्रेस कॉन्फ्रेंस से बचने के आरोप को खारिज करते हैं।
क्यों ज़रूरी है प्रेस ब्रीफिंग
अमेरिका जैसे देश में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प खुद नियमित प्रेस कॉन्फ़्रेंस करते हैं। कोरोना से संबंधित घटनाक्रम और सरकार का पक्ष वो खुद मीडिया के समक्ष रखते हैं। जबकि हमारे देश में स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी, आईसीएमआर के शीर्ष अधिकारी कोरोना पर मीडिया के सामने ब्रीफिंग करते हैं। ऐसी स्थिति में भी अब प्रेस ब्रीफिंग की संख्या घट रही है। सरकार फिलहाल नियमित प्रेस कॉन्फ्रेंस करने के बजाय अब प्रेस रिलीज के जरिये संबंधित जानकारियां उपलब्ध करा रही है। लेकिन प्रेस रिलीज प्रेस ब्रीफिंग का विकल्प नहीं हो सकता। प्रेस रिलीज एक पक्षीय संवाद है जबकि प्रेस ब्रीफिंग द्विपक्षीय चर्चा है। एक तरफा संवाद में कोई चैनल नहीं होता जिसके माध्यम से स्पष्टीकरण मांग सकते हैं या प्रश्न पूछ सकते हैं। जबकि मीडिया ब्रीफिंग में अधिकारियों के पास एक मंच होता है जहां वे विषय के बारे में विस्तार से बता सकते हैं, साथ ही मीडिया को स्पष्टीकरण मांगने का मौका भी मिलता है, और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि सरकार द्वारा दी गई सूचनाओं के अलावा अन्य मामलों पर सवाल पूछा जा सकता है। प्रेस ब्रीफिंग ज्यादा लोकतांत्रिक होती है। लिहाजा कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच प्रेस ब्रीफिंग की संख्या घटना परेशान करने वाली बात है।