सूखे के कारण अन्ना के गांव रालेगण सिद्धि के किसानों का हाल बुरा है। अन्ना के हर आंदाेलन में भाग लेने वाले किसान इस बार अलग मूड में हैं। एक किसान ने कहा कि हम हर बार उनकी बात पर क्यों ध्यान दें। हमने हर बोरवेल पर करीब 50000 रुपए खर्च किए हैं। आज बोरवेल में पानी नहीं है। लेकिन मानसून के आने के बाद हमें पानी मिल जाएगा। हम अगर बोरवेल बंद कर देंगे तो हमारे पास पानी के लिए और विकल्प क्या रह जाएगा। ग्राम पंचायत के लोग जब बोरवेल भरने लगे तो अधिकांश किसानों ने उनका साथ नहीं दिया। हालांकि पंचायत के एक सदस्य ने जोर देकर कहा कि अन्ना ने आश्वस्त किया है कि बोरवेल भरने के बाद कुंओं में पानी आने लगेगा। उल्लेखनीय है कि अन्ना ने यह मुहिम उस समय छेड़ी है जब महाराष्ट्र के गांव सूखे की भारी चपेट में है। टैंकरों से पानी की पूर्ती कर रहे किसान और अन्य ग्रामीण अन्ना के जल संरक्षण मॉडल को देखने और सुनने के बाद एक दम से हैरान हैं। इधर अन्ना कहते हैं कि अभी मेरी कोई बात नहीं सुन रहा है लेकिन इन्हें बाद में पता चलेगा कि मैं सही कर रहा था। अन्ना ने कहा कि लोग पानी के लिए जो साधन अपना रहे हैं, उससे भूमिगत जल खतम होता जा रहा है। बोरवेल खोदने से भूमिगत जल संरक्षित नहीं किया जा सकता। एक बार यह भर दिए जाएंगे तो वाटर लेबल अपने आप सुधर जाएगा। ग्रामीणों की राय है कि इलाका सूख सा गया है। पानी की कमी से यहां का स्टील प्लांट बंद हो चुका है। 1700 लोगों का रोजगार खतम हो गया है। यहां 5000 से 6000 लीटर के टैंकर पर 1000 रुपए खर्च करने पड़ते हैं। गौर है कि अहमदनगर जिले में रालेगण के पास ही हिवड़े बाजार में जल संरक्षण की मुहिम को प्रधानमंत्री नरेंद्र माेदी ने भी पसंद किया है। यहां अन्ना हजारे के मॉडल को ही अपनाया गया है।
जानिएं, क्यूं रालेगण सिद्धि में ही अन्ना का हुआ विरोध
अन्ना के जल संरक्षण मॉडल से उनके गांव वाले ही उनसे नाराज हो गए हैं। अन्ना के सामाजिक जीवन में शायद यह पहली बार हो रहा है। जब उनके अपने लाेगों ने ही उनका विरोध किया है। गांव के किसान वाटर लेबल में सुधार के लिए बोरवेल भरे जाने की अन्ना की मुहिम को दरकिनार करते हुए एकमत होकर कहा है कि हम हर बार अन्ना की नहीं सुनेंगे।
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