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केदारनाथ यात्रा होगा और सुगम! पुराने रामबाड़ा पैदल मार्ग फिर से शुरू करने की तैयारी

उत्तराखंड में 2013 की भीषण त्रासदी में बह गए रामबाड़ा-केदारनाथ पुराने पैदल मार्ग को दोबारा बनाने का काम...
केदारनाथ यात्रा होगा और सुगम! पुराने रामबाड़ा पैदल मार्ग फिर से शुरू करने की तैयारी

उत्तराखंड में 2013 की भीषण त्रासदी में बह गए रामबाड़ा-केदारनाथ पुराने पैदल मार्ग को दोबारा बनाने का काम अंतिम चरण में पहुंच चुका है और राज्य सरकार को उम्मीद है कि इस साल यह श्रद्धालुओं के लिए शुरू कर दिया जाएगा।

लोक निर्माण विभाग के सचिव पंकज पांडेय ने यहां बताया कि यह मार्ग करीब 80 फीसदी तैयार हो चुका है और इस यात्रा सीजन में इसके पूरी तरह चालू हो जाने की उम्मीद है।
 
बारह साल पहले आयी आपदा में गौरीकुंड से लेकर केदारनाथ तक का 16 किलोमीटर का पैदल मार्ग पूरी तरह से ध्वस्त हो गया था । प्रशासन ने गौरीकुंड से रामबाड़ा तक के मार्ग को मरम्मत करके चलने लायक बना दिया लेकिन रामबाड़ा से केदारनाथ के लिए नया मार्ग बनाया गया जो पुराने मार्ग की अपेक्षा करीब दो किलोमीटर लंबा है ।
 
लंबा होने के साथ ही नया मार्ग कठिन है और इसमें अक्सर भूस्खलन की भी समस्या बनी रहती है।

सचिव ने कहा कि पुराने मार्ग को दोबारा चालू करने का उद्देश्य यात्रियों को आसान और सुरक्षित विकल्प देना है।

पांडेय ने बताया कि पुराना मार्ग वन्यजीव अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान के तहत आता है जिस कारण इसकी मरम्मत और पुनर्निर्माण के लिए पर्यावरणीय स्वीकृतियां लेने में काफी समय लग गया।

उनके मुताबिक, हालांकि, पिछले वर्ष इस परियोजना को मंज़ूरी मिलने के बाद मार्च से निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया । उन्होंने बताया कि छोटे आकार की जेसीबी और कटिंग मशीनों को ‘एयरलिफ्ट’ कर मार्ग निर्माण में लगाया गया।

पांडेय के अनुसार, इस रास्ते के खुलने से श्रद्धालुओं को रामबाड़ा से केदारनाथ धाम तक दो अलग-अलग मार्ग उपलब्ध होंगे और जिला प्रशासन और स्थानीय पुलिस चाहें तो एक रास्ते का इस्तेमाल घोड़े-खच्चरों के लिए और दूसरे रास्ते का उपयोग पैदल यात्रियों के लिए कर सकते हैं ।

उन्होंने कहा कि इससे यात्रा का प्रबंधन बेहतर होने के साथ ही श्रद्धालुओं को भी अधिक सुविधा मिल सकेगी।

केदारनाथ यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं की भारी संख्या को देखते हुए धाम के लिए और भी वैकल्पिक मार्गों की तलाश की जा रही है । हालांकि, पर्यावरणीय दृष्टि से बेहद संवेदनशील होने के कारण इनके लिए अनुमति मिलने में समय लगता है।

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